भारत के 30,000 करोड़ रुपये के प्रथम समुद्री विकास निधि में घरेलू और विदेशी वित्तीय दिग्गजों की रुचि बढ़ रही है। इस निधि के प्रारूप को लेकर पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने शुरुआती बातचीत शुरू कर दी है। कई अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि केंद्र इस मामले में इक्विटी प्रतिबद्धताएं चाह रहा है और उसे कई संस्थानों की रुचि भी प्राप्त हुई हैं।
एक अधिकारी ने बताया, ‘हम दीर्घकालिक निवेशकों से इक्विटी जुटाने पर नजर रख रहे हैं। इस क्रम में बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और वित्तीय संस्थानों से कई दौर की बातचीत हुई है और उन्होंने इस कोष में शामिल होने की इच्छा जताई है।’
कई बैंकिंग सूत्रों ने पुष्टि की है कि वे चुनिंदा समुद्री परियोजनाओं के लिए ऋण देने के इच्छुक थे, लेकिन साझेदार प्रतिबद्ध कोष के इंतजार में हैं। यह कोष सभी आकार और प्रकार के घरेलू पोतों के निर्माण को बढ़ावा देगा और भारत की विदेशी पोतों पर निर्भरता कम करेगा। भारत की वैश्विक पोत निर्माण में हिस्सेदारी 1 फीसदी से भी कम है। वैश्विक पोत निर्माण के क्षेत्र में चीन, दक्षिण कोरिया और जापान का दबदबा है।
पोत परिवहन मंत्रालय ने कोष में संभावित निवेशकों की शुरुआती रुचि जानने के लिए जून में एक बैठक की थी। एक अधिकारी ने बताया, ‘इस बैठक में घरेलू व विदेशी निवेशकों और ऋणदाताओं ने हिस्सा लिया था। इनमें नामचीन संस्थानों जैसे एनआईआईएफ, आईएफएससी, एसबीआई, स्टैंडर्ड चार्टर्ड, डॉयचे बैंक और एचडीएफसी ने हिस्सा लिया था।’
अधिकारी ने बताया, ‘इसमें आईएफएससी-गिफ्ट जैसे संस्थान भी शामिल थे। मंत्रालय ने प्रस्तावित समुद्री विकास निधि कोष और प्रस्तावित शिप ओविंग ऐंड लीजिंग एंटिटी (एसओएलई) के कार्य का ढांचा पेश किया था।’
उम्मीद यह है कि सरकार इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये (49 फीसदी) अपने कोष से अदा करेगी और शेष राशि (51 फीसदी) अर्धसरकारी इकाइयों, निजी इक्विटी निवेशकों व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसयू) से आएगी।
अधिकारी ने बताया कि इस कोष में 12 प्रमुख बंदरगाह भी सक्रिय रूप से इक्विटी साझेदार होंगे। सभी संस्थागत निवेशकों से जवाब मिलने के बाद ही इक्विटी निवेशकों के साझेदार का सही पैटर्न और ढांचा स्पष्ट हो पाएगा। कई पूंजी कोष ने भी इसमें रुचि दिखाई है।