ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्स ने SBI और ICICI बैंक के शेयरों की रेटिंग कम कर दी है। पहले, गोल्डमैन सैक्स ने इन दोनों बैंकों के शेयरों को “सेल” करने की सलाह दी थी, लेकिन अब उसने इसे “न्यूट्रल” कर दिया है। गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि SBI के शेयरों की कीमत 4% तक गिर सकती है, और ICICI बैंक के शेयरों की कीमत 3% तक बढ़ सकती है।
गोल्डमैन सैक्स ने यस बैंक, बजाज फाइनेंस और एचडीएफसी बैंक के शेयरों की रेटिंग में भी बदलाव किया है। यस बैंक की रेटिंग को “न्यूट्रल” से “सेल” कर दिया गया है, और बजाज फाइनेंस को “सेल” से “न्यूट्रल” कर दिया गया है।
एचडीएफसी बैंक पर “सेल” की सलाह को बरकरार रखा गया है। ब्रोकरेज फर्म का मानना है कि यस बैंक के शेयरों की कीमत 37% तक गिर सकती है, और बजाज फाइनेंस के शेयरों की कीमत 2% तक बढ़ सकती है।
ब्रोकरेज फर्म का मानना है कि एचडीएफसी बैंक के शेयरों की कीमत 33% तक बढ़ सकती है।
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वित्तीय क्षेत्र का अच्छा समय खत्म हो गया है
ब्रोकरेज फर्म का कहना है कि वित्तीय क्षेत्र का अच्छा समय खत्म हो गया है। उन्होंने इसे “गोल्डिलॉक्स अवधि” कहा, जिसका अर्थ है कि जब अर्थव्यवस्था अच्छी तरह से बढ़ रही थी और कंपनियां अच्छा मुनाफा कमा रही थीं।
उनके मुताबिक यह अवधि अब समाप्त हो गई है और वित्तीय क्षेत्र के लिए आगे की राह कठिन होगी। उन्होंने वित्तीय क्षेत्र के लिए अच्छा समय खत्म होने के कई कारण बताए। जिनमें बढ़ती ब्याज दरें, मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था में मंदी शामिल हैं।
वित्तीय प्रणाली में भीतरी समस्याओं के कारण बैंकों को फंडिंग के लिए हाई कॉस्ट देनी पड़ रही है। यह, लोगों द्वारा अधिक ऋण लेने (उपभोक्ता उत्तोलन) के साथ ऋण रिकवरी में समस्याएँ पैदा कर सकता है और बैंकों का खर्च बढ़ सकता है।
ये फैक्टर्स एसेट क्वालिटी को खराब कर सकते हैं, विशेष रूप से असुरक्षित ऋण देने में। जब एसेट की क्वालिटी खराब होती है, तो ऋण चुकाने की संभावना कम होती है। ऐसे में बैंक की क्रेडिट लागत में वृद्धि होने की ज्यादा आशंका होती है।
बैंकों पर ऑपरेशन खर्च बढ़ने का दबाव
इसके अलावा, बढ़ती वेतन मुद्रास्फीति और डिपॉजिट वृद्धि की जरूरत के कारण, बैंकों पर ऑपरेशन खर्च बढ़ने का दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में, भविष्य में जमा राशि बढ़ाने के लिए, बैंकों को अपने वितरण नेटवर्क का विस्तार करना होगा।
आसान शब्दों में कहें तो, वेतन मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण, बैंकों को अपने कर्मचारियों को अधिक वेतन देना होगा। वहीं, भविष्य में जमा राशि बढ़ाने के लिए, बैंकों को अपने वितरण नेटवर्क का विस्तार करना होगा। यह भी बैंकों के लिए खर्चीला होगा।
पिछले कुछ सालों में भारतीय बैंकों ने रिटर्न ऑन एसेट्स (ROA) में तेज वृद्धि देखी है। यह वृद्धि FY20 से FY24 की तीसरी तिमाही तक खासी बढ़िया रही है। हालांकि, फर्म का कहना है कि ROA में वृद्धि का यह ट्रेंड कई कारणों से धीमा होने की उम्मीद है।
मार्जिन पर लगातार दबाव वित्त वर्ष 2025 तक जारी रहने की उम्मीद है। लोन ग्रोथ धीमा होने की आशंका है क्योंकि बैंकों के ऋण-जमा अनुपात बढ़ रहा है। ऐसे में बैंकों को अपने काम करने का तरीका बदलना होगा। उन्हें अपने ऋण और जमा का अनुपात ठीक करना होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन हालातों में, इस सेक्टर के सभी प्लेयर्स को या तो अपनी बाजार हिस्सेदारी बनाए रखनी होगी या मुनाफा कम करना होगा। यह एक मुश्किल चुनाव है।