प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने कोविड के बाद अपनी हिस्सेदारी बैंकों को खाने के बाद फिर से वृद्धि की गति पकड़ ली है। इन एनबीएफसी में बजाज फाइनैंस, श्रीराम फाइनैंस, मुथूट फाइनैंस और आईआईएफएल फाइनैंस शामिल हैं। विविध ऋणदाताओं और स्वर्ण ऋण कंपनियों ने एनबीएफसी वृद्धि को गति दी है। हालांकि विकास वित्त संस्थाओं जैसे पॉवर फाइनैंस कॉरपोरेशन (पीएफसी), आरईसी और हाउसिंग ऐंड अर्बन डेवलपमेंट फाइनैंस कॉरपोरेशन (हुडको) की वृद्धि अपेक्षाकृत धीमी गति से हुई।
अप्रैल-सितंबर (वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही) में एनबीएफसी का ऋण या संयुक्त ऋण बही खाता सालाना आधार पर 16.6 प्रतिशत बढ़ा था जबकि इस अवधि में सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंकों की सालाना वृद्धि 11.7 प्रतिशत थी।
खुदरा एनबीएफसी की वृद्धि वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में वित्त वर्ष 25 में सालाना वृद्धि 16 प्रतिशत से अधिक रही। इसकी तुलना में वित्त वर्ष 25 में बैंकों की संयुक्त ऋण पुस्तिकाओं में सालाना आधार पर 11.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। खुदरा एनबीएफसी ने लगातार चौथे वर्ष बैंकों की तुलना में अधिक वृद्धि दर्ज की। इस वृद्धि के बूते एनबीएफसी ने कोविड के बाद की अवधि में बैंकों के हिस्से में गई अपनी हिस्सेदारी को फिर से हासिल किया।
खुदरा एनबीएफसी की संयुक्त ऋण पुस्तिकाओं में वित्त वर्ष 19 से वित्त वर्ष 22 के दौरान केवल 4.5 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से वृद्धि हुई जबकि वाणिज्यिक बैंकों के लिए यह 8.7 प्रतिशत था।
सरकारी स्वामित्व वाले विकास वित्त संस्थानों (डीएफआई) जैसे पीएफसी, हुडको, आरईसी और भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) ने हाल के वर्षों में ऋण वितरण में मंदी की सूचना दी जबकि इनमें वित्त वर्ष 17 से वित्त वर्ष 21 के दौरान तेजी से वृद्धि हुई थी। डीएफआई का वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में संयुक्त ऋण बही खाता सालाना आधार पर 8.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा और इसमें वित्त वर्ष 24 और वित्त वर्ष 25 की सालाना वृद्धि 10.4 प्रतिशत की तुलना में गिरावट आई।