वित्त-बीमा

ऋण पर 14 फीसदी स्प्रेड के कारण RBI सख्त, 2 MFI समेत 4 NBFC पर कर्ज देने से लगाई रोक

रिजर्व बैंक ने मार्च 2022 में सूक्ष्म वित्त ऋण पर प्राइसिंग की सीमा हटा दी थी, जो पहले किसी इकाई की फंड लागत से 12 फीसदी अधिक थी।

Published by
मनोजित साहा   
Last Updated- October 21, 2024 | 9:53 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक की नियामक कार्रवाई का सामना करने वाले 2 सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) सहित 4 गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) कम कर्ज लेने वालों से बहुत ज्यादा ब्याज वसूल रही थीं, जिससे उनका 14 फीसदी स्प्रेड बना रहे। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी है। इससे प्रभावित होने वालों में कमजोर वर्ग के बहुत छोटे कर्ज लेने वाले लोग हैं।

स्प्रेड, किसी फंड की लागत और उधारी दर के बीच का अंतर होता है। रिजर्व बैंक ने 17 अक्टूबर को 4 एनबीएफसी को कर्ज स्वीकृत और जारी करने से प्रतिबंधित कर दिया था, जिनमें आशीर्वाद माइक्रोफाइनैंस, आरोहण फाइनैंशियल सर्विसेज, डीएमआई फाइनैंस और नवी फिनसर्व शामिल हैं।

रिजर्व बैंक ने कम उधारी लेने वाले लोगों से बहुत ज्यादा ब्याज लेने का हवाला देते हुए इन पर रोक लगाई है। रिजर्व बैंक ने मार्च 2022 में सूक्ष्म वित्त ऋण पर प्राइसिंग की सीमा हटा दी थी, जो पहले किसी इकाई की फंड लागत से 12 फीसदी अधिक थी।

सूत्रों का कहना है कि मौके पर जाकर नियामक द्वारा की गई जांच से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 के लिए ज्यादातर सूक्ष्म वित्त संस्थान स्प्रेड 12 फीसदी से ऊपर बनाए हुए थे, कुछ में यह 13 फीसदी था।

जिन इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, उनका स्प्रेड 14 फीसदी पाया गया।

एक सूत्र ने कहा, ‘नियामक ने प्राइसिंग की सीमा हटाकर एमएफआई उद्योग को लचीलापन प्रदान किया था। उम्मीद की गई थी कि वे ग्राहकों के साथ व्यवहार में निष्पक्ष, पारदर्शी और भेदभाव रहित बनेंगी। साफ है कि ऐसा नहीं हुआ।’

स्प्रेड 14 फीसदी होने के कारण कर्ज पर ब्याज 26 से 28 फीसदी लगने लगा। नियामक ने फंड के लिए हुए समझौतों की समीक्षा भी की, जिसमें कुछ इकाइयों ने अपने निवेशकों को 30 फीसदी से ज्यादा रिटर्न देने का वादा किया था। इन निवेशकों में कई निजी इक्विटी इकाइयां हैं।

इस माह की शुरुआत में मौद्रिक नीति की समीक्षा पेश करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि एनबीएफसी कभी-कभी निवेशकों के दबाव में होती हैं, जिसकी वजह से वे उनकी इक्विटी पर ज्यादा रिटर्न दिलाने की कवायद करती हैं।

नियामक ने पहले के 2 वित्त वर्षों के स्प्रेड और फंड की लागत के आंकड़े इकट्ठे करने के बाद सूक्ष्म वित्त कारोबारियों व उद्योग निकाय से इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान बात कर अपनी राय रखी। लेकिन सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए।

सूत्रों ने यह भी कहा कि समाज के सबसे निचले तबके के कर्ज लेने वालों का शोषण नियामक की चिंता की मुख्य वजह थी। उदाहरण के किए मासिक किस्तों के भुगतान में कुछ दिन की देरी पर 500 से 1000 रुपये तक के शुल्क लिए गए, जबकि ऋण 40,000-50,000 रुपये का ही था। इसमें कोई मानक नहीं था, जबकि उद्योग की सामान्य गतिविधि यह है कि जुर्माना लगाने के पहले 6 दिन की छूट दी जाती है।

इस तरह की अवैध गतिविधियों के कारण ग्रामीण इलाकों में दबाव बढ़ा और इसके कारण रिजर्व बैंक को सख्त कार्रवाई करनी पड़ी। सूत्रों ने कहा कि इससे अन्य उद्योगों को भी संकेत गया है। सूक्ष्म वित्त क्षेत्र का कुल आकार करीब 3 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें कुछ बैंक भी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, इनमें बंधन बैंक, इंडसइंड और आरबीएल बैंक शामिल हैं।

First Published : October 21, 2024 | 9:53 PM IST