जहां बाजार कंपनियों को उनके अच्छे प्रदर्शन के लिए उनके शेयर भाव को उच्च स्तर पर पहुंचा कर पुरस्कृत कर सकता है, वहीं स्थिति प्रतिकूल होने पर उन्हें गर्त में भी धकेल सकता है।
यह बैंकिंग शेयरों के मामले में बिल्कुल सटीक दिखता है। कुछ महीने पहले बढ़ती ब्याज दरों से चुनौती के बीच बैंकिंग कंपनियों का प्रदर्शन शानदार था लेकिन अब इसमें सावधानी बरतने की जरूरत है। बीएसई सेंसेक्स में बैंकेक्स का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा जबकि जनवरी के मध्य में वह सर्वकालिक ऊंचाई पर पहुंच गया था। बैंकिंग स्टॉक के भाव 30-50 प्रतिशत तक गिर गए।
आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक जैसे निजी बैंक भी कोई अपवाद नहीं रहे। सरकारी बैंक, जो बाजार में उथल-पुथल से पहले 1.5-2.5 गुना की रेंज में कारोबार कर रहे थे, अब 1-1.5 गुना के बीच है। इसी तरह निजी बैंकों का मूल्य निर्धारण 4.5-6 गुना से घट कर 2.5-3.5 गुना पर सिमट गया है।
हालांकि बैंकिंग शेयरों पर ताजा संकट इस उद्योग के लिए सकारात्मक नहीं होगा। मुद्रास्फीति दर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 5 प्रतिशत के लक्षित स्तर से अधिक है। पिछले कुछ महीनों में कई बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बावजूद क्रेडिट में इजाफा नहीं हुआ है।
विश्लेषकों का मानना है कि इन सभी समस्याओं से बाजार प्रभावित हुआ है और निवेशकों को दीर्घावधि सीमा के साथ बाजार में प्रवेश करना चाहिए तथा कम मात्रा में शेयरों की खरीद शुरू करनी चाहिए। लेकिन इसमें प्रवेश करने से पहले बैंक शेयरों के परिदृश्य पर अच्छी तरह से सोच-विचार करना होगा और वित्तीय वर्ष 2008 की अंतिम तिमाही में इस क्षेत्र के प्रदर्शन का मूल्यांकन भी करना होगा। स्मार्ट इन्वेस्टर इस बारे में गहन पड़ताल कर रहा है।
मुद्रास्फीति और ब्याज दरें
बढ़ती मुद्रास्फीति (मौजूदा समय में 7 प्रतिशत से थोड़ी अधिक) का बाजार पर प्रतिकूल असर पड़ा है और भारत में अनुकूल ब्याज दर परिदृश्य प्रभावित हुआ है। 17 अप्रैल, 2008 को आरबीआई द्वारा कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) में आधा प्रतिशत की बढ़ोतरी कर इसे 8 प्रतिशत कर दिया गया है।
यह बढ़ोतरी दो चरणों में की जाएगी। यह फैसला 29 अप्रैल को होने वाली इसकी पॉलिसी मीटिंग से कुछ दिन पहले आया है। इस फैसले के बाद इस उद्योग के अधिकांश विशेषज्ञों ने प्रस्तावित पॉलिसी मीटिंग में किसी आगामी मुद्रा नियंत्रण मानक की संभावना से इनकार कर दिया है। इस प्रयास से इस विश्वास को मजबूती मिली है कि यह स्थिर ब्याज दर परिदृश्य कुछ और समय तक बना रहेगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेग निस्चर कहती हैं, ‘फरवरी में उधारी दरों में की गई कटौती पर मार्जिन के संरक्षण के क्रम में फिर से विचार किया जाएगा।’ लेकिन उन्होंने उच्च मुद्रास्फीति के कारण जमा दरों में कटौती की संभावना नहीं जताई है। हालांकि मार्जिन के लिए परिदृश्य, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए, चिंताजनक है।
कर्ज में कम वृद्धि
ऋण बढ़ोतरी में गिरावट आई है। यह बढ़ोतरी पिछले वर्ष 30 प्रतिशत थी जो 28 मार्च तक तकरीबन 22 प्रतिशत रही। यह वित्तीय वर्ष 2008 के लिए आरबीआई के 24-25 प्रतिशत से कम है। यदि दरें उच्च स्तरों पर ही बनी रहती हैं या इनमें मामूली सुधार होता है तो यह देश की आर्थिक विकास दर और ऋण वृध्दि के लिए खतरनाक हो सकता है।
दूसरे शब्दों में, इसका सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर अधिक नकारात्मक असर पड़ेगा जो अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट ऋण पर ब्याज के रूप में हासिल करते हैं। निजी बैंकों के लिए रिटेल क्रेडिट में कमी नुकसानदायक साबित होगी।
अन्य आय में कमी
बैंकों को अन्य आमदनी में बढ़ोतरी में भी संभावित मंदी का सामना करना पड़ सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए बॉन्ड बाजार और म्युचुअल फंड एवं बीमा जैसे उत्पाद राजकोषीय लाभ हासिल करने के लिए अन्य आय के प्रमुख स्रोत हैं।
बैंकों ने क्रेडिट में इजाफा कर भारी-भरकम रकम एकत्रित की है जिसे निवेश के तौर पर लगाया गया है। बढ़ती मुद्रास्फीति के साथ सरकारी प्रतिभूतियों की प्राप्तियों में भी पिछले कुछ सप्ताह से कमी आई है। शेयर बाजार की खराब हालत से म्युचुअल फंड और बीमा आदि का प्रवाह भी मंद पड़ सकता है।
निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए अन्य आय में कमी का बड़ा खतरा है। ये बैंक अन्य आय में इजाफा के कारण मजबूत स्थिति में रहे हैं। इससे इन बैंकों पर न सिर्फ फॉरेन एक्सचेंज डेरिवेटिव नुकसान की मार पड़ेगी बल्कि डेरिवेटिव कारोबार हासिल करने का इनका भविष्य का परिदृश्य भी प्रभावित होगा।
किसानों को कर्ज माफी
वित्त मंत्री द्वारा किसानों के 60,000 करोड़ रुपये के लोन को माफ किए जाने की घोषणा के तुरंत बाद सरकारी बैंकों के शेयरों में 15-20 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई थी। वैसे, वाणिज्यिक बैंकों की भागीदारी 35 प्रतिशत या अनुमानित रूप से 21,000 करोड़ रुपये है जिन्हें तीन वर्षों की अवधि में कैश दिया जाएगा। इससे ग्रामीण इलाकों में अपनी दमदार उपस्थिति रखने वाले भारतीय स्टेट बैंक और पंजाब नेशनल बैंक जैसे बैंक अधिक लाभान्वित होंगे।
चौथी तिमाही के नतीजे: एक नजर
मार्च, 2008 की तिमाही मंद क्रेडिट बढ़ोतरी, उच्च जमा दरों, जैसे मुद्दों के कारण तुलनात्मक रूप से धीमी रहने की संभावना है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कुल ब्याज आमदनी और परिचालन लाभ में साल दर साल सिंगल डिजिट की बढ़ोतरी की संभावना है।
श्रेष्ठ मामले में 15 प्रतिशत का इजाफा होने की संभावना है, वहीं कुछ बैंकों को इसमें गिरावट का सामना भी करना पड़ सकता है। शुद्ध मुनाफा के भी इसी रेंज में बढ़ने की संभावना है। इस मामले में निजी बैंकों द्वारा सरकारी बैंकों की तुलना में अधिक अच्छा प्रदर्शन करने की संभावना है।
उनकी कुल ब्याज आय, अन्य आय और परिचालन लाभ अधिक वृद्धि के साथ बढ़ने की उम्मीद है। विश्लेषकों को आईसीआईसीआई बैंक को छोड़कर अन्य प्रमुख निजी बैंकों के शुद्ध मुनाफे में अच्छा इजाफा होने की संभावना है।
क्या होगा आगे ?
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि बैंकों द्वारा दरों में बढ़ोतरी से भारतीय आर्थिक विकास को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे सरकार बचने की कोशिश करेगी। इसके अलावा हालिया सीआरआर बढ़ोतरी को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए एक मानक के तौर पर देखा गया। वैसे, निकट भविष्य में परिदृश्य सतर्क बना हुआ है।
वैसे, कारोबार शुरू करने और कम मात्रा में बैंकों के शेयर खरीदने के लिए यह अच्छा समय है, लेकिन दीर्घावधि का परिदृश्य एक वर्ष से अधिक होना चाहिए। बिड़ला सन लाइफ म्युचुअल फंड के सह-प्रमुख (इक्विटी निवेश) महेश पाटिल कहते हैं, ‘यदि कोई 9 महीने से एक वर्ष तक की अवधि पर ध्यान केंद्रित करता है तो यह अच्छा होगा।’ वे मानते हैं कि हालांकि छोटी अवधि में लाभप्रदता पर दबाव पड़ेगा। सभी चिंताएं अगली कुछ तिमाहियों में दूर हो जाएंगी।
प्रभुदास लीलाधर के विश्लेषक अभिजीत मजूमदार निजी बैंकों के लिए स्थिति फायदेमंद मानते हैं। वे सभी रिस्क फैक्टर पर विचार कर 15-18 महीने तक की अवधि को एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और ऐक्सिस बैंक के लिए सकारात्मक मानते हैं। आईसीआईसीआई बैंक के मामले में वैश्विक कारोबार को लेकर इस बैंक कुछ मंदी का सामना करना पड़ सकता है और एमटीएम लॉसेस में इजाफा हो सकता है।
निवेशकों को सतर्कता बरतने की जरूरत है और उन्हें अपने अंतर्राष्ट्रीय और फॉरेन एक्सचेंज डेरिवेटिव कारोबार को लेकर अधिक स्पष्टता के लिए ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति पर चलना होगा। अपने गैर-जमानती और अन्य रिटेल ऋणों पर बैंक के एनपीए पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके अलावा बैंक को अपनी ब्रोकिंग सहयोगी कंपनी आईसीआईसीआई सिक्युरिटीज की प्रस्तावित लिस्टिंग को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है।
बाजार विश्लेषक कुछ सरकारी बैंकों के लिए भी स्थिति सकारात्मक बता रहे हैं। इन विश्लेषकों का मानना है कि ये बैंक 12 महीनों में 30 प्रतिशत प्रतिलाभ देने में सक्षम हैं। इन बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को अधिक तरजीही दी गई है।
चुनिंदा बैंक
एचडीएफसी बैंक
एचडीएफसी बैंक और सेंचुरियन बैंक ऑफ पंजाब (सीबीओपी) का विलय दीर्घावधि परिदृश्य के लिए सकारात्मक है और इससे एचडीएफसी बैंक को संक्षिप्त अवधि में अपना भौगोलिक दायरा बढ़ाने में मदद मिलेगी। सीबीओपी का मजबूत रिटेल और एसएमई (लघु एवं मझोले उद्यम) पोर्टफोलियो इसकी रिटेल मजबूती के लिए सहायक होगा। फॉरेक्स डेरिवेटिव में संभावित मार्क टु मार्केट के मद्देनजर भी इसका अधिकांश निवेश लार्ज-कैप कंपनियों में है जो उनकी उम्मीदों को पूरा कर सकती हैं।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) को क्रेडिट वृद्धि में गिरावट पर ध्यान केंद्रित करने और अगले वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही से मार्जिन पर ध्यान केंद्रित करने के अपने प्रयासों से लाभान्वित होने की संभावना है। वैसे, इसके द्वारा हाल ही में की गई जमा दरों में कटौती के कारण इसके मार्जिन में सुधार आने की संभावना है। इसके अलावा बैंक की मौजूदा 2384 शाखाओं में 200 नई शाखाएं शामिल किए जाने और अपनी शाखाओं को 100 प्रतिशत सीबीएस (कोर बिजनेस सॉल्युशन) के अधीन लाने से इस वित्तीय वष्र में इसके सीएएसए में तकरीबन 35 प्रतिशत का सुधार होगा।
ऐक्सिस बैंक
ऐक्सिस बैंक उच्च विकास परिदृश्य के कारण श्रेष्ठ निजी बैंकों में शुमार है। पिछले कुछ वर्षों में बैंक के डिपोजिट में सुधार आया है अग्रिम मोर्चे पर बैंक ने कॉरपोरेट और रिटेल लोन के बीच अच्छा मिश्रण किया है। इसके अलावा फॉरेक्स डेरिवेटिव अनुबंधों में इसका निवेश अल्पतम है। यह कुल राजकोषीय आय का तकरीबन 12 प्रतिशत और इसके कर के बाद कुल लाभ का 5 प्रतिशत से कम है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को 16,736 करोड़ रुपये के ताजा राइट इश्यू से अपनी बाजार भागीदारी को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। एसबीआई सर्वाधिक सीएएसए और नेट इंटरेस्ट मार्जिन (एनआईएम) वाले सरकारी बैंकों में से एक है। इसके अलावा यह बैंक बीमा जैसे गैर-बैंकिंग कारोबार और सहयोगी बैंकों के विलय आदि से भी जुड़ा रहा है जो भविष्य के लिए अनिवार्य है।
पंजाब नेशनल बैंक
दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक नए चेयरमैन के. सी. चक्रबर्ती के नेतृत्व में अपने विकास को नई रफ्तार दे रहा है। आधारभूत रूप से यह बैंक 3.7 प्रतिशत से भी अधिक एनआईएम वाला बैंक है। बैंक अपनी शाखाओं के विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। ग्रामीण इलाकों अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कर चुका यह बैंक अपने शाखा विस्तार कार्यक्रम के तहत 200 नई शाखाओं से लैस हो जाएगा। इसके साथ ही वित्तीय वर्ष 2009 में इसकी कुल शाखाओं की संख्या 4,319 हो जाएगी।