चुनावी बॉन्ड की खरीद में शुरुआत से लेकर अब तक मुंबई की सर्वाधिक हिस्सेदारी है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस चंदे को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के मार्च, 2018 से जनवरी, 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक मुंबई में कुल 4009.4 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की बिक्री हुई। इसके बाद हैदराबाद, कोलकाता और नई दिल्ली की हिस्सेदारी है। इस तरह महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, दिल्ली जैसे चार राज्यों में बॉन्ड की कुल बिक्री 13,222 करोड़ रुपये की हुई।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि इस तरीके से चंदे का स्रोत गोपनीय ही रहता है। इसमें दान देने की कोई सीमा भी नहीं है। इसमें कॉरपोरेट से धन जुटाने की पहले लगी सीमा खत्म कर दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस योजना को खत्म करके इस तरह की सीमाओं को फिर से बहाल किया है।
न्यायालय ने इंगित किया कि व्यक्ति विशेष की तुलना में कारोबार का राजनीतिक प्रक्रिया पर अधिक प्रभाव होता है। कंपनियों से मिला दान नीतियों को प्रभावित कर सकता है। मुंबई में भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घराने हैं और यह शहर सरकार के लिए करों का सबसे बड़ा स्रोत है।
विभिन्न खेप में बेचे गए बॉन्ड की कुल कीमत करीब 2 अरब डॉलर है। यह योजना साल 2018 में शुरू हुई थी। अप्रैल, 2019 में चुनाव शुरू होने से पहले करीब 5,000 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे। इसके बाद दो गुना राशि के चुनावी बॉन्ड की बिक्री की गई। इसकी कुल राशि 16518.1 करोड़ रुपये पहुंच चुकी है।
एडीआर ने अक्टूबर 2023 में जानकारी दी थी कि चुनावी बॉन्ड योजना का प्रमुख तौर पर इस्तेमाल बेइंतहा संपत्ति वालों ने किया था जबकि बॉन्ड 1000 रुपये के कम मूल्य वर्ग पर भी उपलब्ध थे। इन बॉन्ड से ज्यादातर राशि 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग से आई।
नोट के मुताबिक, ‘कुल खरीदे गए बॉन्ड में 12,999 करोड़ रुपये या 94.25 फीसदी राशि एक करोड़ रुपये के मूल्य वर्ग से थी। ’