अगले साल का कोहरा क्या सूरज की खिली-खिली धूप के साथ छंट जाएगा या मंदी का बुखार पहले की तरह भारतीय उद्योगों को अपने ज्वर से परेशान करेगा?
यह आज से 12 महीने पहले भी हो सकता था, जब कुछ लोगों का मानना था कि 2008 में वैश्विक मंदी देखी जा सकती है। और ठीक इसी तरह हो सकता है कि जल्द ही 2009 में मंदी से छुटकारा भी मिल जाए।
लेकिन ऐसा होने की उम्मीद नहीं है। इस बात की ज्यादा उम्मीद है कि मूल अर्थव्यवस्था बेहतर होने से पहले बदतर माहौल का मुंह जरूर देखेगी।
अगर भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर युध्द छिड़ जाता है तो अर्थव्यवस्था की हालत और भी खस्ता हो जाएगी, ऐसे में वह और भी बुरा समय होगा।
देश के भीतर राजनीतिक अनिश्चितता पहले से ही बरकरार है। देश और विदेश दोनों जगह नकदी का संकट फैला हुआ है, जिसके फलस्वरूप परियोजनाओं में देरी होना तय है।
अगली दो तिमाहियों तक कमाई या तो समान स्तर पर बरकरार रहेगी या इसमें कमी देखी जाएगी, लेकिन इसके बढ़ने की उम्मीद न के बराबर है।
वित्त वर्ष 2009-2010 के दौरान नकद प्रवाह की स्थिति काफी कड़ी बनी रहेगी, जिसका मतलब है कि कर्ज का भुगतान काफी मुश्किलों भरा रहेगा और हो सकता है ऐसे में बैंकों और कर्जदाताओं को अधिक डिफॉल्ट का सामना करना पड़े।
इस धुंधले माहौल पर मूल्यांकनों का कितना प्रभाव है? जनवरी से अब तक बाजार लगभग 50 प्रतिशत से अधिक तक गिरावट देख चुके है और वह भी बुरे दौर के आने की आशंका को देखते हुए। क्या भविष्य को लेकर की गई कमतर गणना के साथ मौजूदा मूल्यांकन पर बाजार में खरीद उचित है?
महामंदी के दौरान बेन ग्राहम के मूल्यांकन के लिए पसंदीदा तरीके में अधिक जोर ब्रेक-अप कीमत पर था और भविष्य में होने वाले मुनाफे को उसमें अनदेखा किया गया था।
उनका कहना था कि अगर दिवालिया होने की आशंका अधिक है तो वे शेयर कीमत को बुक-वैल्यू से कमतर चाहेंगे या कम से कम वे यह चाहेंगे कि शेयर की कीमत बुक वैल्यू जितनी हो उससे अधिक नहीं।
इस तरह अगर कारोबार मुनाफा दे रहा था तो उसमें निश्चित तौर पर उछाल रहा होगा और अगर वह दिवालिया हो चुका है तो उसे उसकी पूंजी वापस मिल जाएगा। निफ्टी 2.5 से कम पीबीवी से भी गिर गया है, जबकि बाजार में उछाल के समय यह 6 से भी अधिक थी।
ऐतिहासिक भारतीय मानकों के हिसाब से तो यह खरीदारी का सुनहरा मौका था क्योंकि बाजार मुश्किलों से इतने कम स्तर तक गिरता है और आमतौर पर वह पीबीवी 3 से ऊपर ही कारोबार करता है।
लेकिन ग्राहम के पारंपरिक तरीके से भविष्य में मुनाफे की अभी ओर बड़ी गुंजाइश है और इसलिए अभी इन कीमतों पर खरीदने में अधिक जोखिम है।
इसके बाद ग्राहम की ही सोच पर कई और प्रक्रिया भी देखने को मिली हैं, जिनमें टोबिन का ‘क्यू’ अनुपात भी शामिल है। ‘क्यू’ कारोबार की प्रतिस्थापन कीमत की तुलना कारोबार की मौजूदा बाजार कीमत से करता है।
इसलिए अगर चालू कारोबार की प्रतिस्थापन कीमत ‘क’ है और उसकी मौजूदा बाजार कीमत ‘ख’ है तो ‘क्यू’ ख: क के बराबर है।
आमतौर पर ‘क्यू’ की गणना (बाजार कीमत + देनदारियां) को (चुकता पूंजी + फ्री रिजर्व + देनदारियां) से भाग देकर की जाती है। कारोबार में ‘क्यू’ लगभग पीबीवी के जैसा ही है। टोबिन के सिध्दांत के अनुसार कम ‘क्यू’ अवधि के दौरान नया निवेश कम होता है क्योंकि तब चालू कारोबारों को खरीदना सस्ता होता है।
इसी तरह अगर ‘क्यू’ अधिक होता हैतो नई-नई निवेश योजनाएं काफी सामान्य बात है, क्योंकि ऐसे में चालू कारोबारों के मुकाबले नया निवेश सस्ता होता है।
इसलिए कम ‘क्यू’पीबीवी बाजार सेकेंडरी बाजार में निवेश को आकर्षित करता है, जिससे अपने आप ‘क्यू’ बढ़ जाता है, जबकि उच्च ‘क्यू’ बाजार आईपीओ में दिलचस्पी को बढ़ाता है।
बेशक 2008 में आईपीओ में निवेशकों की दिलचस्पी काफी कम रही और इसके 2009 के दौरान भी कम रहने की आशंका है। क्या पीबीवी इतना कम है कि वह अभी सेकेंडरी बाजार को आकर्षित कर सकता है? शायद नहीं।?
राजनीतिक संकट और भारत-पाक के बीच युध्द की आशंका होने के खतरे से हो सकता है कि निवेश पर पाबंदी लग जाए। और अगर ऐसा होता है तो कीमतों के 2009 के मध्य तक बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है।
आज की स्थितियों को देखते हुए निवेशक ‘निवेश करने के लिए इंतजार’ करने की नीति अपना सकता है जो लगभग-लगभग 6 महीने तक के लिए हो सकती है।
चलिए मानते हैं कि आपने अपने पूंजी को संरक्षित करने का फैसला लिया है, तो अभी निवेश करने से बेहतर है कि आप ऐसे में अपनी पूंजी को एक जगह संजो कर रखें और जून, 2009 और में भारी निवेश करें।
आप ऐसा मान कर चल रहे हैं कि जून, 2009 में भी बाजार मौजूदा स्तर के आस-पास यानी 3500 के नीचे ही रहने वाला है। जून, 2009 में 4,000 निफ्टी कॉल पर ताजातरीन प्रीमियम लगभग 2010 या 5 प्रतिशत था। आम तौर पर यह 10 प्रतिशत होता है और जो मौजूदा पूंजी की लागत से काफी कम है।
इस लिए ऐसा माना जा रहा है कि इसमें 6 महीने के लिए हेज के साथ इंतजार करना फायदेमंद होगा। इंतजार के हक में ज्यादा फैसला हो रहा है, बावजूद इस बात के कि आप बाजार में सकारात्मक रिटर्न कमा सकते हैं, जब ब्याज दरें गिर रही हैं और उनमें आगे भी गिरावट देखी जाएगी।
अगली तिमाही में डेट फंड में अल्पावधि लाभ कमाने की संभावनाएं अधिक हैं। निवेश करने के लिए इंतजार करने से बेहतर एक तरीका यह भी हो सकता है कि आप सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी सिप फॉर्मूला को अपनाए। अगर बाजार गिरता है तो अपने निवेश की कीमतों का सही आकलन करें।
लेकिन अगले दो वित्त वर्षों तक बराबर मासिक किश्तों वाले सिप पर ध्यान देना होगा। वैकल्पिक तौर पर अगर कीमतें गिरती है तो आपको सिप में अपने निवेश को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।