भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा कि वित्त कंपनियों के काम काज का स्तर कम रहने तक शैडो बैंकिंग सेक्टर के लिए अलग विनियमन उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन जब आकार व जटिलता बढ़ती है, जिसकी वजह से वित्तीय व्यवस्था में जोखिम हो सकता है, तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि इस सेक्टर पर नियामकीय निगरानी बढ़ाई जाए।
भारतीय उद्योग परिसंघ की ओर से एनबीएफसी सेक्टर पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए हम स्केल आधारित नियामकीय ढांचे की अवधारणा तैयार कर सकते हैं, जो एनबीएफसी के बदलते जोखिम प्रोफाइल से जुड़ा हो और उसमें ढांचागत जोखिम के मसले का समाधान हो।
इस साल जनवरी में रिजर्व बैंक ने बड़ी इकाइयों को अलग करने और उन्हें बैंक की तरह नियमों के कड़े मानक में लाने का प्रस्ताव रखा था, जिससे कि वित्तीय स्थिरता की रक्षा की जा सकते और साथ ही यह भी सुनिश्चित हो सके कि छोटे एनबीएफसी पर हल्के कानून लागू हों और उनकी वृद्धि बेहतर बनी रहे।
बैंक की वेबसाइट पर जारी परिचर्चा पत्र में केंद्रीय बैंक ने सुझाव दिए थे कि इस सेक्टर के लिए 4 टियर पिरामिड का ढांचा बनाया जाए, जिसमें बेस लेयर, मिडिल लेयर, ऊपरी लेयर और संभावित शीर्ष लेयर का प्रावधान हो। बेस लेयर में पैसे जमा न कराने वाले, गैर व्यवस्थित महत्त्वपूर्ण एनबीएफसी हों, जिन्हें हल्के नियमन का लाभ मिले, लेकिन ज्यादा खुलासों और सुधरे प्रशासन मानकों के साथ इसमें पारदर्शिता बढ़ाए जाने की जरूरत है।
प्रस्तावित ढांचे में मिडिल लेयर में जमा लेने वाले एनबीएफसी और व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण जमा न लेने वाले एनबीएफसी हों, जिसमें नियामक एनबीएफसी और बैंकों के बीच पंचाट के रूप में हो। शीर्ष के 25-30 व्यवस्था के मुताबिक अहम एनबीएफसी ऊपरी लेयर में होंगे और यह रिजर्व बैंक के विवेकाधिकार में होंगे व इनकी नियामकीय व्यवस्था बढ़ाई जा सकती है। आखिर में वे एनबीएफसी आएंगे, जिन्हें रिजर्व बैंक व्यवस्था के मुताबिक ऊपरी लेयर में रखे और आदर्श रूप में यह जगह खाली बनी रह सकती है।
राव ने कहा, ‘स्केल आधारित नियामकीय ढांचा एनबीएफसी के ढांचागत महत्त्व के मुताबिक होगा और यह बेहतर तरीका हो सकता है, जहां नियमन व निगरानी एनबीएफसी के आकार, गतिविधि व जोखिम के मुताबिक होगी।’ उन्होंने यह भी कहा कि वित्तीय कंपनियों को मिल रहा कुछ आर्बिटरेज गंवाना पड़ सकता है, लेकिन स्केल आधारित तरीके में परिचालन संबंधी लचीलापन प्रभावित नहीं होगा, जिसका लाभ ये वित्तीय कंपनियां कारोबार करते समय लेती हैं।
31 मार्च, 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के शैडो बैंकिंग सेक्टर में 9,651 एनबीएफसी हैं, जो विभिन्न श्रेणियों में आती हैं। एनबीएफसी सेक्टर में हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां शामिल हैं, जिनकी कुल संपत्ति 54 लाख करोड़ रुपये है, जो बैंकिंग सेक्टर की संपत्ति के कुल आकार का करीब 25 प्रतिशत है। पिछले 5 साल से यह क्षेत्र करीब 18 प्रतिशत संयुक्त सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है।
राव ने कहा कि हाल की कुछ घटनाओं से इस क्षेत्र की छवि खराब हुई है। उन्होंने कहा कि जबरन वसूली के तरीकों, आंकड़ा गोपनीयता के उल्लंघन, धोखाधड़ी वाले लेनदेन में वृद्धि, साइबर अपराध, अत्यधिक ब्याज दरों और उत्पीडऩ को लेकर आरबीआई पास काफी संख्या शिकायतें आती हैं। उन्होंने कहा कि ग्राहकों की सुरक्षा से ैकोई समझौता नहीं किया जा सकता।
राव ने कहा कि रिजर्व बैंक अपने द्वारा उठाए जाने वाले किसी भी नियामक कदम में हमेशा व्यापक जनहित को अपने मूल विषय के रूप में रखता है और हम वित्तीय प्रणाली के लिए सामान्य रूप से सार्वजनिक हित के संबंध में अपनी ओर से हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। एक विस्तृत शिकायत निवारण तंत्र, रिजर्व बैंक लोकपाल योजना, उचित व्यवहार संहिता आदि की स्थापना इसका संकेत है।