विश्व में एक के बाद एक कई बैंक धराशायी होते जा रहे हैं। हालांकि भारत में बैंकों को इस तरह का कोई खतरा नहीं है। पर वे तूफान का सामना तो कर ही रहे हैं।
सिटी-दक्षिण एशिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) संजय नायर ने अनिरुध्द लस्कर और सिध्दार्थ से बातचीत की। उन्होंने बताया कि वैश्विक संकट का असर भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर कितना पड़ेगा। साथ ही सिटी भारत में इस कठिन समय में क्या कर रहा है।
वैश्विक बैंकिंग सिस्टम में गहराए संकट का भारत पर क्या असर पड़ेगा?
अभी मुझे इसका बड़ा असर पड़ता नहीं दिख रहा है। हालांकि हमें स्थानीय और वैश्विक दोनों विषयों पर निगरानी करनी होती है। लेकिन कुल मिलाकर भारत के बैंक अच्छी स्थिति में हैं। ताजा संकट से निपटने के लिए हमें लंबी अवधि की संरचनात्मक तरलता निर्मित करनी होगी।
मांग की बात करें तो इसमें घरेलू कारकों के कारण थोड़ी कमी आई है। इसके लिए बढ़ती ब्याज दर और मुद्रास्फीति का दबाव और घटते प्रॉफिट मार्जिन जैसे कारक जिम्मेदार हैं। इन्हीं कारकों और लंबी अवधि की जमाओं के अभाव के चलते मुझे नहीं लगता कि आगे कर्ज की दरों में कमी आने वाली है। बैंकिंग सिस्टम में लाभ कमाने की स्थितियों में बदलाव हो रहा है। लेकिन कुल मिलाकर भारत वैश्विक संकट से लगभग अछूता है।
यह कंपनियों और नए प्रोजेक्टों को किस तरह से प्रभावित करेगा ?
वे निर्माणाधीन प्रोजेक्ट जिनको फंड मिल चुका है, उन्हें कोई समस्या नहीं है। लेकिन जो सिर्फ योजना तक ही सीमित हैं, उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ेगा। अब तक बैंक जितने प्रोजेक्टों को फंड देते थे, उनकी संख्या में कमी आएगी।
जिन प्रोजेक्टों को बैंक वित्तीय मदद देंगे तो भी उसकी लागत अधिक होगी। इसके चलते वे सोचने पर विवश होंगे कि क्या इतनी लागत के प्रोजेक्ट का कोई अर्थ निकलने वाला है। यानी कि परियोजनाओं को मिलने वाली वित्तीय मदद और सलाहकार कारोबारों में क्रेडिट ग्रोथ में कमी आएगी।
आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि आपके कर्मचारियों की संख्या में पिछले साल कमी आई है। क्या यह एक रणनीति के तहत किया गया है ?
सिटी एक ग्लोबल बैंक है जो भारत में हर ग्राहक वर्ग को ध्यान में रख सेवाएं दे रहा है। वैश्विक बैंक का मॉडल एक सा नहीं है। इसके चलते अगर एक कारोबार अच्छा चलता है तो दूसरा कमजोर। पिछले छह साल में हमारे बैंक में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या पांच हजार से बढ़कर ग्यारह हजार हो गई है। इसमें कटौती का कोई इरादा नहीं है।
आज बैंक का कारोबार हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। सिर्फ असुरक्षित कर्ज के क्षेत्र को छोड़कर। अगर अप्रैल-मई में जब एमबीएस कंपनी में शामिल हुए थे, के आंकड़ों से दिसंबर के आंकड़ों की तुलना करें तो हमारा आंकड़ा बढ़ा ही है। आरबीआई के आंकड़े केवल एक ही समय के आंकड़े हैं।
सिटी लागत घटाने और री-इंजीनियरिंग कुछ ऐसे विषय हैं जिस पर लगातार निगाह रख रहा है। वर्तमान में वे बेहद फोकस्ड हैं। हमने ऑटो फाइनेंसिंग और वेल्थ मैनेजमेंट जैसे कारोबारों पर कम ही जोर दे रहे हैं। कैपिटल मार्केट में भी हमारी गतिविधियां बेहद कम हैं लेकिन हमारे पास सौदों की एक लंबी फेहरिश्त है।
एक बार स्थिति के सुधरने के बाद भी यह संदेह रहेगा कि कैपिटल मार्केट फिर से शुरु होगा। कानून और एचआर मामले के साथ कंप्लायंस सर्विस जैसी कामन गतिविधियों को हम संयोजित कर रहे हैं। साथ ही हम मध्य कार्यालयों का भी एक कर रहे हैं। इसके तहत बैक ऑफिसों का एक कर रहे हैं।
फ्रंट ऑफिस में हम अपनी बिक्री टीम को फिर से प्रशिक्षित कर रहे हैं क्योंकि अब उत्पाद पर आधारित एप्रोच की जगह उपभोक्ता पर आधारित मॉडल अपना रहे हैं। नए मॉडल में हमारी शाखा में जाने वाले ग्राहक को हर कर्मचारी सबकुछ बेच सकता है। हर बिक्री के लिए अलग-अलग टीम नहीं होगी। इसके दृष्टिगत कई री-इंजीनियरिंग और समझबुझ भरी री-इंजीनियरिंग का काम जारी है।
अगले दो सालों में आप का कारोबार किस तरह बढ़ेगा?
कारोबार को बढ़ाने के लिए हमारी जरूरी चलन पर आधारित अपनी ऑर्गेनिक ग्रोथ रणनीति है। इसमें सबसे पहली बात यह है कि भारत में जनसंख्या की संरचना में फेरबदल हो रहा है। शहरीकरण के साथ उपभोक्ता की जीवन शैली बदल रही है। दूसरा यह की भारतीय कंपनियों में हमेशा से प्रबंधन टीम में अच्छी खासी प्रतिभा रही है जिसका उपयोग वे विदेशों में अधिग्रहण करने के लिए कर रहे हैं।
इसके बाद देश में बचत की दर में तेजी से इजाफा हो रहा है। उसका इक्विटी में एक्सपोजर में महज 10 फीसदी ही है। इसी के चलते अधिग्रहण को बढ़ाव मिल रहा है। हमारी बैंक के लिए तकनीकी उन्नयन खासा अहम है। इसमें सी टू सी पेमेंट स्पेस को अत्याधुनिक बनाना अहम है। जहां तक हमारे विशेष कारोबार की बात है।
हम वेल्थ मैनेजमेंट, वाणिज्यिक और एसएमई बैंकिंग, रीटेल बैंकिंग और बड़े कारपोरेटों के लिए बैंकिंग आदि कारोबार पर जोर दे रहे हैं। हमारी रिटेल क्रेडिट में 15 फीसदी सालाना वृध्दि हो रही है। कॉरपोरेट क्षेत्र में हमारी विकास दर 18-20 फीसदी है।
पिछले तीन सालों में एसएमई को दिए जाने वाले कर्ज का कारोबार 25 फीसदी सालाना की दर से विकसित हो रहा है। हम इसे जारी रखना चाहते हैं। अगर इसमें विकास दर 15 फीसदी से कम रहती तो हम इस कारोबार से हट जाएंगे। लेकिन यह रिश्तों से बाहर निकलने का समय नहीं हैं।
कारोबार में होने वाली चूक का स्तर क्या है? खासकर के असुरक्षित लोन और क्रेडिट कार्डस को लेकर?
जहां तक क्रेडिट कार्ड की बात है। इस समय यह क्षेत्र 11-12 फीसदी की दर से विकास कर रहा है। सिटी की यह दर आधी है। असुरक्षित लोन की बात करें तो पूरे क्षेत्र की तुलना में हमारी स्थिति बेहतर है।