वित्त मंत्रालय ने ऋण वसूली पंचाटों (डीआरटी) और बैंकों को सलाह दी है कि उधारी लेने वालों के मामलों को पंचाट प्रक्रिया के बाहर निपटाने की कवायद करें, जिससे लंबित मामलों से निपटा जा सके।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘बड़ी संख्या में छोटे छोटे मामले डीआरटी के पास पड़े हैं, जिससे लंबित मामले बढ़ रहे हैं। हमने बैंकों व डीआरटी दोनों को उधारी लेने वालों से बात करने की सलाह दी है।
उदाहरण के लिए अगर 30 लाख रुपये का कर्ज वसूलने में 3 से 4 साल लगते हैं, जो समय लगने के कारण उस धन का मूल्य नहीं रह जाता। अगर उधारी लेने वाला मामले को निपटाना चाहता है तो हम लोक अदालतों जैसी विवाद समाधान व्यवस्थाओं के विकल्प तलाश सकते हैं और समाधान पर पहुंच सकते हैं।
इस तरह के समाधान भी डीआरटी के न्यायक्षेत्र में आते हैं जिससे मंजूरी की आधिकारिक मुहर होती है।’इस तरीके से तमाम मामलों को निपटाने में मदद मिल सकती है और डीआरटी पर छोटे मूल्य के मामलों से निपटने का बोझ कम हो सकता है।
अधिकारी ने डीआरटी में कम मूल्य के मामलों के बोझ का उल्लेख किया। अधिकारी ने कहा, ‘डीआरटी का अधिकार क्षेत्र 20 लाख रुपये से शुरू होता है। अगर आप 20 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच के मामले देखें तो आप पाएंगे कि मोटे तौर पर कुल लंबित मामलों में 75 प्रतिशत इसी सीमा के भीतर के हैं।’
वित्तीय सेवा विभाग के सचिव एम नागराजू ने शनिवार को नई दिल्ली में ऋण वसूली अपील पंचाटों (डीएआरटी) के चेयरपर्सन्स और डीआरटी के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता की। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के डिप्टी चीफ एग्जिक्यूटिव अधिकारी ने भी इसमें हिस्सा लिया।
अधिकारी ने कहा, ‘हमारी रणनीति अधिकतम रिकवरी पर केंद्रित है। हमने बैंकों और डीआरटी को 100 करोड़ रुपये और इससे बड़े मामलों को प्राथमिकता देने की सलाह दी है। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में स्थित 3 डीआरटी को इन मामलों से निपटने के लिए अधिकृत किया गया है। ज्यादा मूल्य के मामले छोटे हो सकते हैं, लेकिन व्यवस्था में फंसी कुल राशि का वे बड़ा हिस्सा होते हैं।’
देश में इस समय 39 डीआरटी और 5 डीआरएटी काम कर रहे हैं, जिसमें प्रत्येक की अध्यक्षता पीठासीन अधिकारी या चेयरपर्सन करते हैं।
अधिकारी ने आगे यह भी सलाह दी है कि बैंकों को रिकवरी के परंपरागत तरीकों पर फिर से विचार करना चाहिए। अधिकारी ने कहा, ‘अक्सर रिकवरी अधिकारियों या बैंकों द्वारा अन्य साधनों से वसूली कर लेने के बाद उधारी लेने वाले के पास कोई संपत्ति नहीं बचती। ऐसे मामलों में शेष राशि के लिए बैंक कवायद करते हैं और मामला लंबा खिंचता जाता है।’
ऐसे मामलों में याचिकाएं आने पर बैकलॉग बढ़ता है और आगे इसमें वसूली की संभावना कम होती है। अधिकारी ने कहा, ‘जब संपत्ति खत्म हो गई है तो बैंक को मामले वापस लेने पर विचार करने और नई संपदा सामने आने पर फिर से मामला दर्ज करने की सलाह दी गई है। अन्यथा मामला खिंचता ही जाएगा और रिकवरी का मकसद पूरा नहीं होगा।’