सरकारी बैंकों ने भले ही ग्राहकों को लुभाने के लिए विशेष आवासीय ऋण योजना के तहत दरों में कटौती का एलान किया हो लेकिन इसके बावजूद ग्राहकों ने इनमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि आवासीय ऋणों पर ब्याज में 2 फीसदी की कटौती के बाद सरकारी बैंक मात्र 28,000 प्रस्तावों को ही मंजूरी दे पाई है और विशेष योजना के तहत मात्र 1,550 करोड रु पये ही आवंटित किया है।
मिसाल के तौर पर, बैंकिंग उद्योग और सरकारी आंकडों के अनुसार देश के दूसरे सबसे बड़े कर्जदाता बैंक पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) विशेष योजना के तहत ऋणों के केवल 35 प्रस्तावों को मंजूरी दी है और इसके तहत 1.70 करोड रुपये ही आवंटित कर पाई है। दूसरी तरफ देश के सबसे बड़े कर्जदाता बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने ऋण संबंधी 4,500 प्रस्तावों को मंजूरी दी है।
गौरतलब है कि मंदी की मार से तरप रहे रियल एस्टेट क्षेत्र को कुछ राहत पहुंचाने के लिए सरकारी प्रयासों के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पांच सालों के लिए 5 लाख रुपये तक के आवासीय ऋण पर ब्जाज की दर 8.5 फीसदी निर्धारित किया था। जबकि 5 लाख से 20 लाख रुपये के आवासीय ऋण पर 9.25 फीसदी का ब्याज तय किया गया था।
इसमें भी भारतीय स्टेट बैंक ने दो कदम आगे बढ़ते हुए अगले एक साल के दर को कम कर 8 फीसदी के स्तर पर कर दिया और कुछ दूसरे सरकारी बैंकों जैसे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने भी दरों को कम करने में इसी तरह का उत्साह दिखाया था।
यही नहीं ग्राहक 5 लाख रुपये तक के ऋण के लिए शुरुआत में मात्र 10 फीसदी के अपफ्रंट राशि का भुगतान कर सकते हैं जबकि 5 से 20 लाख रुपये के आवायीय ऋण केलिए 15 फीसदी के अप्रफंट राशि तय की गई है जो अन्य ऋणों के लिए दिए जाने वाले 25-30 फीसदी की तुलना में काफी कम है। लेकिन घर खरीदने के इच्छुक लोग घरों की कीमतों में और गिरावट की संभावनाओं के बीच तत्काल खरीदारी की योजना को टाल रहे हैं।
इस बाबत एक सरकारी बैंक के अधिकारी ने कहा कि रियल एस्टेट मांग में कमी की भीषण समस्या से जुझ रहे हैं और इन पर कर्जों की अदायगी का बोझ भी दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। अधिकारी ने कहा कि अपने पहले की परियोजना को ही बेचने के लिए रियल स्टेट क्षेत्र को बड़े स्तर पर कीमतों में कटौती करनी पड़ेगी और अगर ऐसा होता है तो हमें मांग में कुछ सुधार देखने को मिल सकता है।
हालांकि कीमतों में 30 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है लेकिन ग्राहक मासिक किस्तों (ईएमआई) को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आ रहे हैं। बैंकरों का कहना है कि अगर रियल एस्टेट की कीमतों में और कमी आती हे तो ईएमआई में भी गिरावट आएगी। ब्याज दरों के बारे में बैंकरों का मानना है कि यह मसला उतना गंभीर नहीं है।
कई बैंक तो ऐसे भी हैं जिन्हें अभी भी फं डों पर होने वाले खर्च की चिंता सता रही है और इसकी वजह से इन विशेष योजनाओं के तहत ऋण देने से कतरा रहे हैं। मुंबई स्थित ब्रोकरेज फर्म के एक विश्लेषक ने कहा कि ऊंची दरों पर फंड जुटाने से सरकारी बैंकों के कारोबार पर काफी असर पड़ेगा। फंड पर आने वाली लागत के अलावा बैंकों को जीवन बीमा कवर मुहैया कराने में भी खासी मशक्कत उठानी पड़ेगी।
इसके अलावा बैंकों को प्रसंस्करण शुल्क भी लगाने का अधिकार नहीं है जिससे बैंकों के खर्च में और ज्यादा बढ़ोतरी होगी। बैंकरों का यह भी कहना है कि रियल एस्टेट की कीमतों में होने वाली संभावित कमी के कारण सामान्य आवासीय ऋणों की मांग में भी कमी आई है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 21 दिसंबर 2007 तक की एक साल की अवधि में साल-दर-साल के आधार पर हुए 14.8 फीसदी के मुकाबले 19 दिसंबर 2008 तक की एक साल की अवधि के दौरान आवासीय ऋणों के कारोबार में 8.8 फीसदी तक की कमी आई है।
उल्लेखनीय है कि 17 दिसंबर 2007 के 12 महीने की अवधि में 31,780 करोड रुपयेकी तुलना में बैंकों ने 19 दिसंबर 2008 तक के एक साल की अवधि में बैंकों ने 21,989 करोड रुपये के आवासीय ऋण आवंटित किए हैं।