महंगाई के चलते बने कठिन कारोबारी माहौल के कारण बैंकों की दुश्वारियां बढ़ गई हैं उनके लिए मौजूदा माहौल में काम करना बेहद मुश्किल हो चला है।
महंगाई बढ़ने और इस पर नकेल कसने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा रेपो और सीआरआर दरों में बढ़ोत्तरी के कारण बैंकों के लिए पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्डों के एनपीए में तब्दील होने की चिंता सताने लगी है। पिछले पांच सालों के दरम्यान क्रेडिट ग्रोथ में सबसे अहम भूमिका रिटेल लोनों की रही है।
बल्कि आलम यह है कि कंपनियों को भी दिए गए कुछ कर्जों के बैड लोन में तब्दील होने के डर से बैंक खासे चिंतित है। यहां काबिलेगौर बात यह भी यह है कि बॉन्ड की कीमतों में भी गिरावट देखने को मिली है। इसका मतलब यह है कि बैंकों के द्वारा बॉन्डों के निवेश में कमी आई है और नतीजतन उन्हें अपने पहले तिमाही परिणामों इनके लिए प्रोविजन्स करने पड़ सकते हैं। लिहाजा बैंकों के सामने कुछ ऐसे मसले हैं जिनपर कदम लिए बिना काम नही बनने वाला है।
उन मसलों में सबसे अहम है कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होना क्योंकि इनकी कीमतों में इजाफों के कारण ही महंगाई दरों में इजाफा देखने को मिला है। इसके चलते बैंकों को एनपीए समेत मार्जिन पर दवाब बढ़ने के आसार साफ लग रहे हैं। एक बैंक प्रमुख का कहना है कि महंगाई के बढ़ने के चलते हमने जमा दरों में इजाफा तो किया है ताकि एकत्रित स्रोतों को बेहतर रिटर्न प्रदान कि या जा सके। हालांकि इस बाबत एक बैंक प्रमुख एच एस सिनॉर का कहना है कि जमा दर तो बढ़ा दिए गए हैं लेकिन लेंडिंग दरों में इजाफा करना फिलहाल मुमकिन नही है।
सिनॉर आगे कहते हैं कि इंट्रेस्ट मार्जिन के चलते भी कुछ एडवांसेज एनपीए में तब्दील हो सकते हैं क्योंकि लागत में इजाफा हो रहा है जबकि मांग में खासी गिरावट। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स पर ज्यादातर बैंकरों का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स मजबूत हैं और यह साल 2008-09 के दरम्यान आठ फीसदी की रफ्तार से अपनी विकास दर जारी रख सकता है।
इस बारे में सरकार के कदमों का जहां तक सवाल है तो सरकार ने पहले तो लेंडिंग दरों में इजाफे का विरोध किया लेकिन बाद में बेकाबू हो रही महंगाई को काबू में करने का भार आरबीआई को सौंप दिया और कहा कि महंगाई को काबू में करने के लिहाज से मौद्रिक नीति की समीक्षा पहला कदम है। आरबीआई ने बारबार लोगों को आगाह किया है कि वो अब बढ़ती वैश्विक कीमतों के साथ रहना सीख लें क्योंकि अभी कुछ महीनों तक इसका कोई हल नही है। यह ऊंची महंगाई दर का ही तकाजा था जिसने आरबीआई को रेपो रेट में इजाफे पर मजबूर किया।
रेपो रेट में कुल 75 बेसिस प्वाइंट का इजाफा किया गया है। जबकि सीआरआर दरों में अप्रैल से अब तक कुल 125 बेसिस प्वांइटों का इजाफा किया जा चुका है जो इस महीने के अंत तक कुल 8.75 फीसदी पर पहुंच जाने की उम्मीद है। लिहाजा बाजार को साफ लग रहा है कि मौद्रिक नीति को और सख्त किया जाएगा। गौरतलब है कि 29 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक की मुद्रानीति की तिमाही समीक्षा का नतीजा आने वाला है। बैंकरों को आशा है कि इसके बाद रिजर्व बैंक अपने प्रावधानों को और कड़ा कर सकता है।