मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) द्वारा की गई अंतिम नीतिगत समीक्षा में यथास्थिति बनाए रखने और देखो और इंतजार करो की नीति अपनाने को लेकर सदस्यों में दुर्लभ एकजुटता नजर आई। समिति का विचार था कि धीरे -धीरे आर्थिक गतिविधियां गति पकड़ेंगी, भले ही पिछले 6 महीनों में निर्धारित 6 प्रतिशत की तुलना में महंगाई दर ऊपरी सीमा के आसपास रही है।
रिजर्व बैंक की ओर से आज जारी बैठक के ब्योरे के मुताबिक महंगाई में तेजी की मुख्य वजह पिछले 6 महीनों के दौरान खाद्य वस्तुओं की कीमतें रहीं और एमपीसी के सदस्यों ने पाया कि इसमें कमी आ रही है, हालांकि निकट भविष्य में इसमें उतार चढ़ाव की संभावना है।
मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के हाद से नीतिगत रीपो रेट में 135 आधार अंक की कटौती के बाद सदस्यों ने रीपो रेट में कोई बदलाव न करके 4 प्रतिशत पर स्थिर रखने का फैसला किया और इसे समावेशी रखा है। रीपो रेट में कटौती फरवरी 2019 से हो रही है। 4 अगस्त से 6 अगस्त के बीच चली बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘घरेलू अर्थव्यवस्था का परिदृश्य बहुत ही अनिश्चित बना हुआ है। कोविड-19 का असर शुरुआती अनुमानों की तुलना में कहीं ज्यादा गंभीर है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अति संवेदनशील हो गई है, क्योंकि सामुदायिक प्रसार बढ़ रहा है और इसके दोबारा प्रसार का डर बना हुआ है।’
दास ने कहा, ‘हालांकि कुछ संकेतकों से पता चलता है कि जुलाई में कुछ हलचल हुई है, लेकिन निकट के हिसाब से परिदृश्य अभी अस्थिर बना हुआ है, जिसमें बड़ी गिरावट का जोखिम है।’ दास ने कहा कि वैश्विक वित्तीय बाजारों में तेजी और अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकतों के बीच संपर्क नजर नहीं आता।
गवर्ननर ने कहा कि घरेलू अर्थव्यवस्था में थोड़ा सुधार है, लेकिन जून में रिकवरी के शुरुआती संकेत मिले हैं और उसके बाद देश में गतिविधियां बहाल हुई, जिसमें फिर गिरावट आई, जिसकी प्रमुख वजह संक्रमण के प्रसार के कारण कुछ राज्यों व शहरों में लॉकडाउन लगाया जना है।
दास ने कहा, ‘कृषि क्षेत्र में उम्मीद की किरण बनी हुई है।’ उन्होंने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी रहेगी, जबकि औद्योगिक व सेवा गतिविधियों में धीरे धीरे सुधार होगा।
बहरहाल समिति के सदस्यों को भी उम्मीद थी कि अर्थव्यवस्था संभवत: सबसे बुरे दौर से निकल चुकी है।
बाहरी सदस्य चेतन घाटे ने कहा, ‘उत्पादन के नुकसान के हिसाब से देखें तो मेरा आकलन है कि सबसे बुरा दौर अब करीब हमारे पीछे छूट गया है (अगर महामारी का दूसरा झोंका नहीं आता है)।’
जुलाई 2020 में रिजर्व बैंक की ओर से कराए गए कंज्यूमर कॉन्फीडेंस सर्वे में कहा गया है कि कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति सूचकांक ऐतिहासिक निचले स्तर पर है। इसका हवाला देते हुए बाहरी सदस्य पामी दुआ ने कहा, ‘साफ है कि अर्थव्यवस्था बहाल करना और कोविड-19 महामारी के असर को सीमित करना अहम है, जिसमें मौद्रिक नीति के मकसद के मुताबिक कीमतों में स्थिरता बरकरार रखने के साथ वृद्धि का मकसद ध्यान में रखा जाना चाहिए।’
बहुत ज्यादा अनिश्चितता और मौजूदा व भविष्य की व्यापक अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ विरोधाभासी साक्ष्यों के बीच बाहरी सदस्य रवींद्र ढोलकिया देश में स्टैगफ्लेशन की स्थिति को लेकर संशयात्मक बने रहे। उन्होंने कहा, ‘हालांकि मौजूदा परिस्थितियां सच में अपवाद हैं, लेकिन एमपीसी का प्राथमिक लक्ष्य महंगाई को 4 प्रतिशत और ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत तक रखने का सम्मान किया जाना चाहिए।’ उन्होंनें कहा कि केंद्रीय बैंक को देखो और इंजजार करो की रणनीति अपनानी चाहिए। सितंबर में सभी 3 बाहरी सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है और अक्टूबर में नीतियों के बारे में नए 3 बाहरी सदस्यों को फैसला करना है। आंतरिक सदस्यों में कार्यकारी निदेशक मृदुल के सागर नए सदस्य थे, जिन्होंने जनकराज का स्थान लिया है।
सागर ने कहा, ‘इस समय 2020-21 के लिए वृद्धि का अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन अंतिम आंकड़े आने पर कुछ आम अनुमान लग सकात है। वहीं दूसरी ओर महंगाई बढ़ सकती है।’ डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र महंगाई को लेकर निराश थे और उन्होंने आपूर्ति में व्यवधान को इसकी प्रमुख वजह बताई। माइकल पात्र ने कहा, ‘परिदृश्य धूमिल है। यहां तक कि जब इसमें सुधार होगा, उम्मीद है कि उसकी रफ्तार धीमी रहेगी। स्थिति बेहतर होने से पहले और खराब हो सकती है।’
