वाणिज्य विभाग डेवलपमेंट एंटरप्राइज ऐंड सर्विसेज हब (देश) विधेयक के तहत आने वाले रियायती कॉरपोरेट कर का प्रावधान खत्म कर सकता है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि इस पर एतराज जताते हुए वित्त मंत्रालय ने कहा है कि सभी कंपनियों के लिए कर की दर एकसमान होनी चाहिए।
जुलाई में वाणिज्य विभाग ने देश विधेयक पर दूसरे मंत्रालयों से टिप्पणी मांगी। इस विधेयक का मकसद मौजूदा विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) कानून की जगह लेना है। इस विधेयक में आयकर अधिनियम की धारा 115बीएबी के तहत इन औद्योगिक केंद्रों की नई इकाइयों और अधिगृहीत इकाइयों (कुछ शर्तों के साथ) के लिए 2032 तक 15 फीसदी की रियायती कॉरपोरेट कर दर निश्चित करने का प्रस्ताव था।
मगर वित्त मंत्रालय का राजस्व विभाग उन कंपनियों को किसी तरह की कर रियायत देने के पक्ष में नहीं था, जो इन विकास केंद्रों में अपने संयंत्र स्थापित कर रही हैं क्योंकि इससे एसईजेड के दायरे के बाहर या नए विकास केंद्रों से जुड़ी कंपनियों को भी प्रोत्साहन देने पर चर्चा शुरू हो सकती है।
ऊपर बताए गए व्यक्तियों में से एक ने बताया, ‘वाणिज्य विभाग ने रियायती कॉरपोरेट कर दर का प्रावधान खत्म करने का फैसला किया है। इसके अलावा विधेयक के कुछ प्रावधानों पर दोबारा काम किया जा रहा है क्योंकि राजस्व विभाग (लिखित टिप्पणी में) का विधेयक के तहत प्रस्तावित कुछ अन्य राजकोषीय व्यवस्थाओं/प्रोत्साहन के खिलाफ है।’
रियायती कॉरपोरेट कर के अलावा राजस्व विभाग ने देश के अन्य हिस्सों के साथ इन केंद्रों के बेहतर एकीकरण की अनुमति देने से जुड़ी शर्तों पर और कच्चे माल पर सीमा शुल्क टाले जाने पर भी एतराज जताया है। सूत्र ने बताया कि वाणिज्य विभाग अब इन बदलावों पर काम कर रहा है और इसे वित्त मंत्रालय के सामने पेश किया जा रहा है। इसके बाद विधेयक को संसद के बजट सत्र में पेश करने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की अनुमति ली जाएगी।
वित्त मंत्रालय की आंतरिक गणना के मुताबिक अगर विधेयक को मौजूदा स्वरूप में ही पारित कर दिया जाता है तब नए एसईजेड या विकास केंद्र की इकाइयों को देश के बाकी हिस्से में स्थापित इकाइयों की तुलना में 8-9 फीसदी कम दर से कर देना होगा। दूसरी ओर वाणिज्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह गणना सैद्धांतिक है और हकीकत इससे अलग है।
राजस्व विभाग का कहना है कि इस विधेयक में निर्यात की बड़ी बाध्यता के बगैर ही विकास केंद्रों को देसी बाजार के साथ जोड़ने के लिए ज्यादा रियायत दी जा रही हैं। इसीलिए वाणिज्य विभाग नए प्रावधानों पर काम कर रहा है, जिनमें कंपनियों को देसी बाजार में उत्पाद बेचने के बजाय निर्यात पर अधिक जोर देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
उस व्यक्ति ने कहा, ‘एसईजेड इकाइयों के मूल्यांकन के लिए विदेशी मुद्रा की शुद्ध आमदनी (एनईएफ) को पैमाना नहीं माने जाने से ये इकाइयां निर्यात पर जोर नहीं देंगी। वास्तव में एसईजेड की स्थापना का एक बड़ा मकसद ही निर्यात को बढ़ावा देना था।’
विधेयक के मुताबिक इन केंद्रों में संचालित हो रही इकाइयों को घरेलू बाजार में बिक्री करने की अनुमति होगी और तैयार उत्पाद के बजाय उन्हें इनपुट तथा आयातित कच्चे माल पर ही शुल्क देना होगा। मशीनरी, कंप्यूटर उपकरण जैसी पूंजीगत वस्तुओं और कच्चे माल पर सीमा शुल्क भी टाल दिया जाएगा।