अप्रत्यक्ष कर में सुधार पर अभी तय करनी है लंबी राह

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 6:08 PM IST

भारत में पारदर्शी ‘एक राष्ट्र एक कर’ प्रणाली की व्यवस्था शुरू करने और व्यापक सहकारी संघवाद की शुरुआत करने के मकसद के साथ-साथ केंद्र और राज्य के करों की अधिकता को दूर करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पेशकश पांच साल पहले की गई थी।
जीएसटी के लागू करने को लेकर ऐसी उम्मीदें थीं कि इससे राजस्व में तेजी आने के साथ ही, व्यापार सुगमता के स्तर में सुधार होगा और कई छिपे हुए कर भी समाप्त किए जा सकेंगे। हालांकि जीएसटी का सफर मिला-जुला रहा है। अब राजस्व में तेजी आनी शुरू हो गई है और इसका अंदाजा इस तथ्य से लगता है कि मई में लगातार तीसरे महीने राजस्व संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक बना रहा।
केंद्रीय बजट से मिले आंकड़े रूढ़िवादी अनुमानों के कारण इस वित्तीय वर्ष में निराशाजनक तस्वीर को दर्शाते हैं। वित्त वर्ष 2023 के पहले दो महीनों में हरेक में औसतन 1.54 लाख करोड़ रुपये का राजस्व, बजट अनुमानों के 1.2 लाख करोड़ रुपये से कहीं अधिक है।
बड़ी कंपनियां बेहतर व्यापार सुगमता और लागत बचत की स्थिति देख रही हैं क्योंकि अब उन्हें अपनी आपूर्ति श्रृंखला को कम कर वाले क्षेत्रों से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है। ग्राहकों को भी अब कई छिपे हुए कर से राहत मिल गई है जो जटिल करों से जुड़े हुए थे।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के प्रमुख (अप्रत्यक्ष कर ) प्रतीक जैन ने कहा, ‘जीएसटी ने संरचनात्मक स्तर पर भी कई तरह की सहूलियत दे दी है क्योंकि कई कानूनों और अनुपालनों को सामान्य तरह के एकसमान कानूनों के साथ बदल दिया गया है। बड़ी कंपनियों के लिए, कारोबार करना अब आसान हो गया है और सामान्य तौर पर कर भार में कमी आई है जिससे उपभोक्ताओं को मदद मिली है।’
हालांकि, छोटी कंपनियों की शिकायत है कि उनका नकदी प्रवाह बाधित होता है क्योंकि बड़ी कंपनियां उनपर जीएसटी लगाती हैं। भले ही ये छोटी कंपनियां विक्रेता क्यों न हों। एसएमई चैंबर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष चंद्रकांत अनंत सालुंखे ने कहा कि यह एक अहम समस्या है। इसके अलावा, उन्हें अपना रिटर्न दाखिल करने के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा ली जाने वाली मोटी फीस का भुगतान भी करना होता है।
व्यापक संदर्भों में भी जीएसटी प्रणाली को अब कुछ गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, जीएसटी परिषद ने अब तक लॉटरी के लिए कर दरों और कोविड के चलते लॉकडाउन लगाए जाने के कारण मुआवजा उपकर में कमी को पूरा करने के लिए उधार लेने के मुद्दे से जुड़े कुछ शुरुआती मतभेदों के मौके को छोड़कर अधिकांश फैसलों में अपना सामंजस्य दिखाया है।
ऐसा प्रतीत होता है कि यह सामंजस्यपूर्ण व्यवस्था अब राह दिखा रही है या कम से कम आम सहमति के दृष्टिकोण को लेकर अनिश्चितता है क्योंकि राज्य इस महीने के बाद भी मुआवजे में विस्तार की मांग कर रहे हैं और साथ ही उच्चतम न्यायालय ने भी हाल में एक फैसला दिया है।
छत्तीसगढ़ के वाणिज्यिक कर (जीएसटी) मंत्री टी एस सिंह देव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्यों को वर्ष 2015-16 के आधार वर्ष के लिहाज से हर साल जीएसटी में 14 प्रतिशत वृद्धि की गारंटी दी गई थी। उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था में अनुमान के अनुसार तेजी नहीं आने के कारण, राज्यों के लिए कम से कम और पांच वर्षों के लिए मुआवजे के विस्तार की मांग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’ उन्होंने कहा कि परिषद की आगामी बैठक में मांग उठाई जाएगी।
हालांकि जीएसटी कानून जो कहता है वहीं उच्चतम न्यायालय ने भी दोहराया कि परिषद एक सिफारिशी निकाय है और यह फैसला ऐसे वक्त पर आया है जब राज्य, केंद्र से विभिन्न चीजों की मांग कर रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु ने जीएसटी के विशेष संदर्भ में राज्य और केंद्र की राजकोषीय शक्तियों पर अप्रैल में एक सलाहकार परिषद का गठन किया था।  उच्चतम न्यायालय में इस मामले में जिरह करने वाली खेतान ऐंड कंपनी के अधिकारी, अभिषेक रस्तोगी ने कहा, ‘यह (उच्चतम न्यायालय का फैसला) इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचता है कि परिषद के भीतर दरार होगी क्योंकि यह निकाय बेहद परिपक्वता और व्यावहारिकता के साथ प्रदर्शन कर रहा है।’
इसके अलावा भी जीएसटी को कई क्षेत्रों में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मसलन आईटी तंत्र का प्रबंधन जीएसटीनेटवर्क करती है जिसमें अक्सर दिक्कत आई हैं और जिसकी वजह से शुरुआती चरण में कुछ रिटर्न लंबित करने पड़े और फिर ई-वे बिल का दौर आया। इन दिक्कतों के चलते अप्रैल में रिटर्न दाखिल करने की तारीख भी बढ़ाने की बात शुरू हुई जब जीएसटी अपने पांचवें साल की आखिरी तिमाही में था।  
राष्ट्रीय मुनाफारोधी प्राधिकरण की संवैधानिक वैधता के खिलाफ कई अदालतों में याचिका दाखिल की गई, अग्रिम फैसले के लिए अधिकारियों द्वारा परस्पर विरोधी निर्णय लिए गए और जीएसटी का सीमित दायरा रहा क्योंकि पेट्रोलियम, रियल एस्टेट के कुछ सेगमेंट और बिजली इसके दायरे के बाहर रहा। इसके अलावा स्लैब घटाने का अधूरा एजेंडा भी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के लिए चुनौती बना हुआ है। ग्राहकों को बिल नहीं देने और फर्जी इनवॉयस देने जैसी मुश्किलें बनी हुई हैं।

First Published : June 21, 2022 | 12:27 AM IST