तेल कंपनियों के शोर में सच कुछ और

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 4:44 AM IST

ईंधन की बिक्री पर हो रहे नुकसान को लेकर तेल मार्केटिंग कंपनियों ने चाहे जितनी हाय तौबा मचाई हो, पर विशेषज्ञों का मानना है कि  नुकसान के आंकड़े को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है।


नुकसान को इन कंपनियों की ओर से कम से कम 15 फीसदी बढ़ाकर बताया गया है। हालांकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि इन कंपनियों को ईंधन की बिक्री से मुनाफा हो रहा है, पर इन्होंने पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और केरोसीन की बिक्री पर नुकसान को लेकर जितनी हाय तौबा मचाई, सच्चाई दरअसल कुछ और ही है।

दिल्ली के एक विश्लेषक बताते हैं कि तेल कंपनियों ने नुकसान की जो गणना की है वह पूरी तरीके से ठीक नहीं है। जब तेल कंपनियां नुकसान की बात करती हैं तो वे दरअसल ईंधन के आयात, उसके शोधन और उसकी ढुलाई के लागत को जोड़कर उसका वास्तविक मूल्य निकालती हैं। जबकि सच्चाई तो यह है कि पिछले साल जितने पेट्रोल की खपत देश में हुई थी उसका महज तीन फीसदी विदेशों से आयात किया गया था और डीजल के मामले में यह आयात महज छह फीसदी का ही था।

वहीं देश में जितनी एलपीजी की खपत होती है उसका 23 फीसदी और केरोसीन का 52 फीसदी आयात किया जाता है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक प्रवक्ता ने बताया, ‘हम सरकारी नीतियों के अनुसार नुकसान का आकलन करते हैं। कीमतों की गणना अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत के हिसाब से की जाती है और रिफाइनरी गेट पर जो कीमत होती है वहीं हमारे लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत होती है।’

वहीं हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नुकसान का आकलन करने में कंपनियों की भागीदारी बहुत कम होती है। उन्होंने कहा, ‘यह सरकार की ओर से निर्धारित फार्मूला होता है।’ तेल कंपनियों को कितना नुकसान हो रहा है यह जानना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी के आधार पर सरकार ऑयल बॉन्ड्स जारी करती है और तेल उत्पादन कंपनियां भी अपनी ओर से इस पर रियायत देती हैं।

एक सलाहकार इकाई के विश्लेषक का कहना है कि नुकसान का आकलन सटीक नहीं होता क्योंकि देश में पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और रसोई गैस का बहुत ही सीमित अनुपात में आयात किया जाता है। ऐसे में नुकसान के आकलन के लिए आयात शुल्क को शामिल करना ठीक नहीं है। हालांकि, वित्त मंत्रालय को भी इस बात का थोड़ा बहुत अंदेशा है कि तेल कंपनियों की ओर से नुकसान के आंकड़े को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।

यही वजह है कि जब आईओसी, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने पिछले वर्ष (2007-08) हुए नुकसान को 78,000 करोड़ रुपये का बताया था तो सरकार ने इसे खारिज करते हुए वास्तविक नुकसान को 70,000 करोड़ रुपये कर दिया था। सरकार का कहना था कि रिफाइनरी मार्जिन को हटाकर ही नुकसान का पता लगाया जा सकता है।

आईओसी के ही एक अन्य अधिकारी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में सुधार की बात छोड़ दी जाए, अगर केवल नुकसान के गणना की विधि को ही दुरुस्त कर लिया जाए तो अभी ये कंपनियां जितने नुकसान का दावा कर रही हैं, उसमें 15 फीसदी की कमी आ जाएगी।

कंपनियों की ओर से नुकसान को 15 फीसदी बढ़ा कर बताया गया
नुकसान का आकलन हो रहा सरकारी फार्मूले के आधार पर
आकलन में आयात शुल्क जुटता है, जबकि आयात काफी कम
सरकार ने भी नुकसान के आकलन को ज्यादा बताया था

First Published : June 10, 2008 | 10:38 PM IST