टैरिफ की घोषणा करते अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप
अधिकतर भारतीय मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) चाहते हैं कि अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 26 फीसदी शुल्क लगाए जाने के बाद भारत सरकार जवाबी कार्रवाई करने के बजाय उससे व्यापार वार्ता करे। देश के शीर्ष मुख्य कार्याधिकारियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण से यह पता चला है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा कई देशों पर शुल्क लगाए जाने के बाद बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इस बारे में उद्योग जगत की राय जानने के लिए देश भर में 15 सीईओ के बीच सर्वेक्षण किया। इसमें पता चला कि इन सीईओ में से 80 फीसदी चाहते हैं कि भारत अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत करे। एक प्रमुख कंपनी के सीईओ ने नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया, ‘सरकार को जल्दबाजी में कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए। स्थिति पर नजर बनाए रखना सही तरीका है। सरकार को वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और कुछ देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।’
सर्वेक्षण में शामिल 73.33 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि ट्रंप शुल्क का उनके कारोबार पर असर नहीं पड़ेगा जबकि अन्य इसे अवसर और प्रतिकूल प्रभाव के रूप में देखते हैं। एक वाहन फर्म के प्रमुख ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर ज्यादा निर्भर रहने वाली अर्थव्यवस्थाएं सबसे अधिक प्रभावित होंगी। भारत उच्च उपभोग वाली अर्थव्यवस्था है इसलिए शुल्क का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा।’
एक बड़े कारोबार समूह के सीईओ ने कहा, ‘भारत सरकार को अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क की समीक्षा करनी चाहिए क्योंकि हमारा आयात बहुत कम है। कृषि वस्तुओं के अलावा अन्य चीजों में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।’
एक अन्य सीईओ ने कहा कि भारत को अमेरिका के साथ बातचीत करनी चाहिए और इसे एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते और अमेरिका से ज्यादा आयात के जरिये भारत बातचीत को आगे बढ़ा सकता है। इससे पहले महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने कहा कि भारत को शुल्क पर संतुलित प्रतिक्रिया देनी चाहिए और यह ऐसा होना चाहिए जिससे भारत के दीर्घकालिक, रणनीतिक हितों को कोई खतरा न हो। महिंद्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा, ‘हमें उन नीतियों का परिदृश्य तैयार करना चाहिए जिन्हें हम स्थिति का लाभ उठाने के लिए तेजी से अपना सकें और दुनिया भर के देशों के लिए पहला और सबसे विश्वसनीय आर्थिक भागीदार बन सकें।’
सर्वेक्षण से पता चला है कि अधिकांश भारतीय सीईओ (73.33 फीसदी) उच्च शुल्क की चुनौती से निपटने के लिए रणनीति में कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं। हालांकि 20 फीसदी सीईओ नई आपूर्ति श्रृंखला के लिए बातचीत कर रहे हैं जबकि अन्य नए निर्यात बाजार तलाश रहे हैं। एक मझोले आकार की फार्मा कंपनी के सीईओ ने कहा, ‘लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी क्योंकि कई बड़ी कंपनियां अमेरिकी बाजार से इतर बाजार तलाशेंगी।’ 40 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि शुल्क का दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है मगर करीब 40 फीसदी ने कहा कि इसका लंबे समय तक का प्रभाव नहीं पड़ेगा। लगभग सभी सीईओ ने कहा कि वे भारत में अधिक निवेश करेंगे जबकि 33.33 फीसदी ने कहा कि वे विदेशों में निवेश करेंगे।