अर्थव्यवस्था

रिजर्व बैंक और सरकार में थे सबसे अच्छे संबंध : शक्तिकांत दास

भारतीय रिजर्व बैंक के निवर्तमान गवर्नर शक्तिकांत दास ने केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच संबंध विकसित होने पर बातचीत की।

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- December 10, 2024 | 11:09 PM IST

जब आप आरबीआई के गवर्नर बने तो वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक के बीच मतभेद को लेकर चिंताएं थीं। आज जब आपका कार्यकाल समाप्त हो रहा है, तो आप अब इस रिश्ते को कैसे देखते हैं और आपका अनुभव कैसा रहा?
सरकार, वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के रिश्ते बेहतरीन रहे हैं। कोविड के पहले, दौरान और बाद में भी हमारे बीच जबरदस्त सहयोग और समन्वय रहा। यूक्रेन युद्ध के बाद मुद्रास्फीति में इजाफे के चलते भी हमने कई चुनौतियों का सामना किया। सरकार ने आपूर्ति क्षेत्र में कई उपाय अपनाए जिन्होंने रिजर्व बैंक को भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में मदद की। इस समय भी उसी स्तर का समन्वय है।

क्या आपको लगता है कि एमपीसी ढांचे के तहत तथा नियमन को लेकर मशविरे वाले रुख के बीच केंद्रीय बैंक की भूमिका मजबूत हुई है?
यकीनन नियमन को लेकर मशविरे वाले रुख, मुद्रास्फीति को लक्षित करने की लचीली व्यवस्था और विमल जालान समिति जो दरअसल सरकार के साथ स्थापित की गई। सदस्यों का चयन भी सरकार, वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक द्वारा मिलकर किया गया। इसका गठन मेरे रिजर्व बैंक में आने के तत्काल बाद किया गया।

आप अपनी आलोचनाओं के बारे में क्या कहेंगे जिनमें कहा जा रहा है कि वृद्धि से समझौता किया गया, मौद्रिक नीति बहुत सख्त रही और मुद्रास्फीति अभी भी केंद्रीय बैंक के लक्ष्य से परे है?
अभी मैं इस पर ज्यादा नहीं बोल सकता। मैं बस कुछ बातें कहना चाहता हूं। लोग अपने विचार रखने को स्वतंत्र हैं। रिजर्व बैंक के भीतर भी लोगों के अलग-अलग नजरिये हैं। एमपीसी में भी कई अलग-अलग नजरिये हैं और यह बेहद सामान्य बात है। मुझे लगता है वृद्धि कई कारणों से प्रभावित हुई न कि केवल रीपो दर के कारण। तेज या धीमी वृद्धि के पीछे कई कारण होते हैं, उसका सामान्यीकरण नहीं करना चाहिए। हमारी कोशिश रही है मौद्रिक नीति को यथासंभव उपयुक्त रखने की। मेरा मानना है कि रिजर्व बैंक के भीतर और एमपीसी के भीतर भी हमें यकीन है कि हमने हालात के मुताबिक उपलब्ध विकल्पों में बेहतरीन का इस्तेमाल किया।

आप रिजर्व बैंक के ऐसे चुनिंदा गवर्नरों में हैं जिनके कार्यकाल में कई बैंक नाकाम हुए। परंतु 2024 में अगर आपको चीजों से नए ढंग से निपटने का मौका मिलता तो आप क्या करते?
हमारी कोशिश हमेशा यह रही कि जनता के धन का नुकसान न हो। हमने हर हालात से निपटने की कोशिश की। ऐसी दिक्कतों से निपटने के लिए किसी मानक का अनुसरण नहीं किया जा सकता है क्योंकि हर बैंक या एनबीएफसी की समस्या अलग होती है। इसलिए हर मामले से अलग तरह से निपटा जाता है। ऐसा हर मौका हमारे लिए सबक रहा। हमने सबक लेकर निगरानी बढ़ा दी है। मुझे लगता है कि अब रिजर्व बैंक की निगरानी पहले से अधिक तीक्ष्ण है। हमारी कोशिश हमेशा यह रही कि संभावित समस्या का अनुमान लगाकर तत्काल काम किया जाए। यानी समय रहते उससे निपटा जाए।

हमने देखा कि आपके कार्यकाल में रिजर्व बैंक ने कारोबारी प्रतिबंध भी लगाए। क्या आपको लगता है कि रिजर्व बैंक के भीतर इसने संस्थागत स्वरूप ले लिया है?
कारोबारी प्रतिबंध हमेशा आखिरी उपाय होता है। हम हमेशा ऐसे हालात से बचना चाहते हैं। हम बैंकों और एनबीएफसी के साथ महीनों तक संपर्क में रहते हैं। वास्तव में एक या दो मामलों में तो यह एक वर्ष से अधिक समय तक चला। कुछ ही संस्थान ऐसे हैं जिनका मामला सार्वजनिक नहीं हुआ। प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की मदद से हमने समस्याओं को हल करने में कामयाब रहे और संबंधित संस्थाओं ने शीघ्र प्रतिक्रिया दी। हम प्रतिबंधों को अनावश्यक खींचना नहीं चाहते। हाल ही में चार सूक्ष्म वित्त कर्जदाताओं पर प्रतिबंध लगे और उनमें से एक के प्रतिबंध दो माह से भी कम समय में हटा लिए गए। ऐसा इसलिए क्योंकि तत्काल अनुपालन देखने को मिला और जल्दी कदम उठाए गए।

आपकी विदाई के साथ एक नई एमपीसी है। क्या आपको लगता है कि एमपीसी के ढांचे और कामकाज में एक किस्म की निरंतरता होनी चाहिए।
एमपीसी एक संस्थान है। वह चलता रहेगा। नए सदस्य पहले ही दो बैठकों में हिस्सा ले चुके हैं और रिजर्व बैंक का मौद्रिक नीति विभाग भी है जो सारा शोध और प्रस्तुतियां तैयार करता है। मुझे नहीं लगता यह कोई मुद्दा होना चाहिए।

First Published : December 10, 2024 | 10:53 PM IST