अब कारोबारी समूहों और कंपनियों द्वारा खड़ी की गई होल्डिंग कंपनियां भी भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में आ सकेंगी। साथ ही इन कारोबारी समूहों के एनबीएफसी भी इसी दायरे में आएंगी।
उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर काफी दिन से बहस चल रही थी और आरबीआई ने अब सिध्दांत रूप में इसकी सहमति दे दी है। इस घटना पर निगाह रख रहे सूत्रों का कहना है कि कई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा फंड की कमी की शिकायतों के बाद सरकार ने आरबीआई से सलाह-मशविरा कर के इन कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान की थी।
लेकिन जांच और आयकर विभाग की रिपोर्ट के बाद यह पाया गया कि इनमें से कई एनबीएफसी ने बेहतर कारोबारी समय के दौरान अर्जित अपनी अतिरिक्त आय ऋण और लाभांश के तौर पर अपनी होल्डिंग कंपनी को दे दी।
ऐसा करके ये कंपनियां काफी हद तक अपने करों में बचत कर लेती थी। उल्लेखनीय है कि लाभांश देने वाली कंपनियों के लाभांश पर लाभांश वितरण कर के तहत 15 फीसदी का कर लगता है जबकि यही कंपनी अगर इस रकम को लाभ के तौर पर रखती है तो उस स्थिति में इनके कारोबारी आय पर 30 फीसदी का कर लगता है।
इस तरह के कई मामलों पर कर विभाग ने आरबीआई को अपनी रिपोर्ट मुहैया कराई है। गौरतलब है कि कई कंपनियों की एनबीएफसी शाखाओं ने अपनी आय को होल्डिंग कंपनी में रखने के बाद स्वयं को वित्तीय रूप कमजोर साबित कर सरकारी सहायता की हकदार हो गईं।
इसके अलावा कई एनबीएफसी बैंकों और वित्तीय संस्थानों से अपनी माली हालत को खस्ता बता ऋण की मांग करने लगे जिससे जोखिम की संभावनाओं में और बढ़ोतरी होती चली गई। ये सभी मामले सरसरी तौर फंडों की हेराफेरी को दर्शाते हैं।
आरबीआई ने अपने इस नए नियम के तहत आवश्यक शर्तें भी निर्धारित कर दी हैं। नए नियमों के तहत एसी कंपनियां जो बाजार में कारोबार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और जिसके प्रदर्शन में गिरावट से पूरी प्रणाली प्रभावित हो सकती है,को इस श्रेणी में रखा गया है।
इसके अलावा इनको मूल रूप में निवेश कंपनी माना गया है जिनका 90 फीसदी से ज्यादा का निवेश इसके अपने एनबीएफसी और अन्य कि सी एनबीएफसी के शेयरों में होता है।