मंदी की मार से कराह रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक और चोट पडी है। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की ताजा प्रकाशित रिपोर्ट में भारत की सॉवरिन रेटिंग का आउटलुक स्थायी से घटाकर ऋणात्मक कर दिया है।
रेटिंग एजेंसी के सॉवरिन और अंतरराष्ट्रीय पब्लिक फाइनैंस रेटिंग के निदेशक तकाहीरा ओगावा का कहना है कि राजकोषीय स्थिति आगे उठाए जाने वाले कदमों पर निर्भर करती है। पेश है ई-मेल से दिए साक्षात्कार के कुछ अंश:
इस समय विश्व की तमाम सरकारें अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सहायता राशि की घोषणा कर रही है और भारत के राजकोषीय घाटा के लिए भी मोटे तौर पर सरकार सहायता राशि ही जिम्मेदार है। इसे देखते हुए एस ऐंड पी के भारत के सॉवरिन रेटिंग को स्थाई से नकारात्मक करना कहां तक तर्कसंगत है?
हमारी रेटिंग मुख्य तौर पर कर्जों के भुगतान के समय पर पूरा नहीं हो पाने पर केंद्रित रही है। अगर हमें यह लगता है कि कर्ज के समय पर भुगतान नहीं होने का खतरा काफी बढ़ गया है तो फिर हमें रेटिंग निर्धारित करने का रास्ता चुनना पडता है। अगर स्थिति में गिरावट रेटिंग को परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त नहीं है लेकिन अगर फिर भी यह महत्वपूर्ण हुआ तो हम रेटिंग से जुड़े नजरिए में परिवर्तन कर सकते हैं।
एस ऐंड पी ने नई सरकार की वित्तीय नीति की घोषणा किए जाने तक इंतजार करना क्यों जरूरी नहीं समझा?
निश्चित तौर पर विश्व की लगभग सभी सरकारों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के लिए सहायता राशि की घोषणा की है जिससे उनकी वित्तीय हालत पर जरूर बुरा असर पड़ेगा, हालांकि यह विभिन्न देशों की वित्तीय स्थिति और उन पर कर्ज के बोझ पर निर्भर करता है।
दुर्भाग्य से भारत की वित्तीय स्थिति काफी दयनीय है, यद्यपि पिछले कुछ सालों में वित्तीय स्थिति में मजबूती जरूर देखने को मिली है लेकिन मौजूदा समय में यह पूरी तरह से तार-तार हो चुका है।
इसके अलावा वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल कीमतों में बढ़ोतरी को भारत की वित्तीय स्थिति से जोड़कर देखें तो हम पाएंगे कि अगर विश्व की अर्थव्यवस्था में अनुमानित समय से पहले सुधार आता है तो भी तेल की कीमतों में भी बढोतरी होगी। ऐसी हालत में भारत सरकार अगर मौजूदा ईंधन सब्सिडी में सुधार नहीं करती है तो इससे भारत की वित्तीय स्थिति पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा।
क्या भारत सरकार द्वारा पूर्ण बजट पेश करने के बाद एस ऐंड पी परिस्थिति की समीक्षा कर सकती है?
हम सॉवरिन की स्थिति की लागतार समीक्षा कर रहे हैं जिसके बारे में रेटिंग हम अर्थव्यवस्था की स्थिति, राजकोषीय स्थिति, महंगाई, बाहरी स्थिति और मुद्रा की कीमतों को ध्यान में रखकर देते हैं। आने वाली नई सरकार के द्वारा पेश किए जाने वाले पूर्ण बजट पर हम सावधानी पूर्वक नजर डालेंगे।
हालांकि वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की गति, डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति जैसे कई अन्य मुद्दे भी हैं जो सॉवरिन रेटिंग पर हमारे विचारों पर प्रभाव डाल सकते हैं। इसे देखते हुए आने वाली सरकार के पूर्ण बजट के अलावा भी कई मुद्दे होंगे जिन पर भविष्य में कड़ी नजर रखनी पड़ेगी।
क्या आपके इस कदम से भारतीय कंपनियों पर कोई असर पड़ सकता है?
भारतीय कंपनियों पर असर इस बात से ज्यादा पड़ता है कि सरकार किस तरह केकदम उठाती है। सरकार के राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होने से ब्याज की दरें तेजी से ऊपर जाएंगी जिससे कंपनियों को अपने बॉन्ड को उधार लेने या जारी करने की स्थिति में ज्यादा से ज्यादा ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा।
भारतीय सॉवरिन रेटिंग पर हमारे नजरिये में बदलाव से विश्व में भारतीय कंपनियों के बॉन्ड पर होने वाले मुनाफे में घरेलू और वैश्विक स्तर पर कमी आ सकती है। हालांकि उनकी अपनी आर्थिक स्थिति कैसी है, इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा।
भारतीय राजकोषीय घाटा विश्व के विकसित देशों के घाटे से किस तरह से अलग है जिनके बारे में आपने इस तरह की रेटिंग जारी नहीं की है?
मोटे तौर पर कहें तो जितने भी सॉवरिन के बारे में रेटिग देते हैं उन पर आर्थिक संकट का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से असर पडा है। कई ऐसे सॉवरिन हैं जिनकी रेटिंग पहले ही कम की गई है लेकिन जैसा कि हमने बताया कि यह उन सॉवरिन की वित्तीय स्थिति और अन्य बातों पर निर्भर करता है जिसके आधार पर हम रेटिंग जारी करते हैं।
चीन ने भी बड़ी सहायता राशि की घोषणा की है लेकिन इससे सॉवरिन रेटिंग पर कोई असर नहीं पडा है क्योंकि उन पर कर्ज का बोझ बहुत कम है।