अमेरिकी राष्ट्रपति के सभी देशों पर समान टैरिफ लगाने के ऐलान से केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन को 500 अरब डॉलर मूल्य तक बढ़ाने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। खास यह कि 2030 तक 200 अरब डॉलर अकेले इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात से आने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 33 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। इंजीनियरिंग और पेट्रोलियम उत्पादों के बाद अप्रैल और नवंबर 2024 के बीच सबसे अधिक 22.54 अरब डॉलर के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद तीसरी सबसे अधिक निर्यात की जाने वाली वस्तु है।
सरकार के साथ चर्चा के मकसद से विस्तृत विश्लेषण में एकत्र किए जा रहे उद्योग अनुमानों के मुताबिक भारत में लगभग 477 हार्मोनाइज्ड सिस्टम (एचएस) कोड वस्तुओं के अंतर्गत सभी इलेक्ट्रॉनिक्स आयात पर औसत शुल्क 9 प्रतिशत से अधिक लगता है। तुलनात्मक रूप से अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक्स आयात पर औसत टैरिफ केवल 1 प्रतिशत है और लगभग 80 प्रतिशत वस्तुएं शून्य शुल्क श्रेणी में आती हैं। परिणामस्वरूप अमेरिका के मुकाबले इलेक्ट्रॉनिक्स पर भारत का औसत टैरिफ 8 प्रतिशत अधिक है। यदि सरकार अमेरिका को इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव से बचना चाहती है तो उसे सभी उत्पादों पर टैरिफ के इस अंतर को कम करना होगा।
अमेरिका को इस समय टेलीकम्युनिकेशन उत्पाद, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे टेलीविजन, लैपटॉप, सर्वर, हियरेबल्स, वियरेबल्स के साथ-साथ सोलर पैनल आदि निर्यात किए जा रहे हैं, जिसमें एचएस कोड पर आधारित मोबाइल उपकरणों ने निर्यात के मामे में गैर-औद्योगिक डायमंड को पीछे छोड़ दिया है। सोलर पैनल निर्यात के लिए भी अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। भारत से कुल सोलर पैनल निर्यात में 97 प्रतिशत माल अमेरिका जाता है।