कामत समिति की राह नहीं आसान

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 3:39 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को एक-मुश्त पुनर्गठन पर केवी कामत समिति का गठन किया, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि समिति के लिए उन खामियों को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा जिनकी वजह से पिछले कई पुनर्गठन प्रयास विफल साबित हुए थे।
पुनर्गठन योजना का खासकर अपने रूढि़वादी रुख के लिए चर्चित पूर्व केंद्रीय बैंकरों द्वारा स्वागत किया गया है। उदाहरण के लिए, हाल में सेवानिवृत आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन (7 जून के रिजोल्यूशन सर्कुलर के मुख्य योजनाकारों में से एक) ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्होंने आरबीआई द्वारा घोषित समाधान प्रक्रिया पर पूरी तरह से अमल किया था।
केंद्रीय बैंक ने कहा है कि समिति के अन्य सदस्यों में एसबीआई के पूर्व प्रबंध निदेशक दिवाकर गुप्ता (जो एशियन डेवलपमेंट बैंक में उपाध्यक्ष का अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद 1 तिसंबर से इसमें प्रभावी तौर पर शामिल होंगे), टी एन मनोहरन (केनरा बैंक में चेयरमैन का कार्यकाल पूरा होने के बाद 14 अगस्त से इससे जुड़ेंगे), बैंकिंग विश्लेषक अश्विन पारेख और इंडियन बैंक एसोसिएशन के सीईओ सुनील मेहता सदस्य सचिव के तौर पर शामिल होंगे। रिजर्व बैंक ने गुरुवार को घोषणा की कि विशेषज्ञ समिति प्रमुख बैंकर और न्यू डेवलपमेंट बैंक के पूर्व प्रमुख के नेतृत्व में काम करेगी। यह समिति किसी अन्य व्यक्ति से परामर्श कर सकेगी और समाधान योजना में शामिल किए जाने
वाले जरूरी वित्तीय मानकों पर सुझाव दे सकेगी।
केंद्रीय बैंक ने कहा है कि समिति 1500 करोड़ रुपये की रकम वाले सभी खातों के वाणिज्यिक पहलुओं पर विचार किए बगैर समाधान योजना पर आगे बढ़ सकेगी। आरबीआई 30 दिन में इन बदलावों के साथ सिफारिशों को अधिसूचित करेगा।
विश्लेषकों का कहना है कि इस प्रक्रिया के लिए पर्याप्त समय नहीं है। जहां एक सदस्य 1 सितंबर के बाद इस समिति में प्रभावी रूप से शामिल हो रहा है और केंद्रीय बैंक इसे 30 दिन में अधिसूचित करने की बात कर रहा है, जिससे बैंकों के पास 31 दिसंबर तक पुनर्गठन के पहले चरण को पूरा करने के लिए काफी कम समय रह जाएगा।
पुनर्गठन प्रक्रिया के लिए बड़ी तादाद में कंपनियां आगे आएंगी। बिजनेस स्टैंडर्ड के एक विश्लेषण से पता चला  है कि अप्रैल-जून तिमाही के घोषित वित्तीय नतीजों से संकेत मिलता है कि परिचालन नुकसान दर्ज करने वाली या कमजोर ब्याज कवरेज अनुपात (आईसीआर) वाली कंपनियों का कॉरपोरेट उधारी में करीब 40 प्रतिशत का योगदान है। ये सभी कंपनियां निश्चित तौर पर राहत पाना चाहेंगी।
तब सिंडिकेट बैंक के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि बैंकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण सेफगार्ड 1  मार्च से पहले पिछली दो तिमाहियों में ऋणों की संभावित ‘एवर-ग्रीनिंग’ पर ध्यान देना होगा, जब खाते के दिशा-निर्देशों के अनुसार ‘स्टैंडर्ड’ माने जाएंगे।
एक अन्य वरिष्ठ बैंकर ने कहा कि पिछली पुनर्गठन योजनाओं के साथ समस्या यह थी कि प्रस्तावों की सही समीक्षा करने के लिए बैंकों के पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘इसलिए यदि एक बैंक कर्जदार के प्रस्ताव को ठुकरा देता है तो उसे अन्य बैंक को राजी करना और स्वीकृति हासिल करना आसान होता है।’

First Published : August 8, 2020 | 12:05 AM IST