अर्थव्यवस्था

भारत ने WTO में यूरोपीय संघ के प्रस्ताव को रोका

WTO: भारत ने औद्योगिक नीति पर नियंत्रण बनाए रखा

Published by
असित रंजन मिश्र   
Last Updated- March 04, 2024 | 10:29 PM IST

भारत ने हाल में संपन्न विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति को अर्थव्यवस्थाओं की औद्योगिक नीति से जोड़ने पर विचार-विमर्श शुरू करने के यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रस्ताव को रोक दिया था।

भारत का तर्क था कि औद्योगिक नीति समवर्ती सूची में है और इस पर राज्य सरकारें नीति बनाती हैं, जो संभवतः अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर असर नहीं डाल सकती हैं। ऐसे में निर्यात सब्सिडी के विश्लेषण से इतर ऐसी किसी जांच की जरूरत नहीं है।

एक भारतीय वार्ताकार ने नाम न दिए जाने की शर्त पर बताया, ‘औद्योगिक नीति बहुत व्यापक विषय है। भारत में औद्योगिक नीति समवर्ती सूची में है, जिस पर केंद्र व राज्य सरकारों, दोनों को ही नीति बनाने का अधिकार है। ऐसे में अगर राज्य सरकारें औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने का फैसला करती हैं, तो उन्हें डब्ल्यूटीओ की जांच के दायरे में लाए जाने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? यह हो सकता है कि उस कारखाने से निर्यात न होता हो।’

अधिकारी ने कहा, ‘यूरोप कार्बन बनाने वाली औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व कर रहा है। अब यूरोपीय संघ चाहता है कि विकासशील देशों पर सीबीएएम (कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म) लागू किया जाए। सीबीएएम से बचने के लिए सरकारें उद्योगों को सब्सिडी दे सकती हैं। इसके लिए वे हमारी औद्योगिक नीतियों का अध्ययन करना चाहते हैं। उनका व्यापक मकसद तटीय उद्योगों को विकासशील देशों से दूर अपने यहां लौटाना है।’
यह प्रस्ताव मुख्य रूप से यूरोपीय संघ द्वारा लाया गया था।

भारत, दक्षिण अफ्रीका और यूरोपीय संघ ने इसे परिणाम दस्तावेज में शामिल किए जाने को लेकर सख्ती से बात की। लेकिन इसकी भाषा पर सहमति नहीं बन सकी, ऐसे में प्रस्ताव वापस ले लिया गया। भारत ने इस प्रस्ताव के विपरीत असर को लेकर इंडोनेशिया को भी समझाने की कवायद की।

अधिकारी ने कहा, ‘यूरोपीय संघ, चीन और उसके सरकारी उद्यमों को लक्षित करना चाहता है, ऐसे में उसे इस प्रस्ताव को ऐसा बनाना चाहिए कि यह भारत जैसे विकासशील देशों पर सीधे असर न डाले।’

अपनी वेबसाइट पर 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को लेकर यूरोपीय संघ ने कहा है, ‘यूरोपीय संघ को खेद है कि मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में व्यापार की प्रमुख चुनौतियों (व्यापार एवं औद्योगिक नीति, औद्योगीकरण के लिए नीतिगत संभावना, व्यापार और पर्यावरण) को लेकर संवाद की शुरुआत नहीं की जा सकी, जबकि यूरोपीय संघ और अन्य प्रमुख प्रतिनिधियों का व्यापक समर्थन था। भविष्य पर केंद्रित एजेंडे को कुछ देशों द्वारा रोक दिया जाना एक बड़ा झटका है, जिसने चुनौतियों के समाधान को लेकर डब्ल्यूटीओ की भूमिका कमजोर की है।

इन मसलों पर आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग जारी रहेगा जिससे इनका समाधान हो सके। यूपोपीय संघ इस सिलसिले में अपनी अग्रणी भूमिका जारी रखेगा।’ यूरोपीय संघ के एक अन्य प्रमुख एजेंडे ‘समावेशिता’ का भी भारत ने विरोध किया। इसमें एमएसएमई और महिला स्वामित्व वाले उद्यमों को प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव शामिल था।

अधिकारी ने कहा, ‘समावेशिता की परिभाषा अलग-अलग देशों के लिए अलग हो सकती है। हमने यूरोपीय संघ से कहा कि यह समस्या राष्ट्रीय नीति के दायरे में आती है। अगर आपको लगता है कि आपके समाज में कुछ भेदभाव है, तो कृपया इसे घरेलू स्तर पर हल करें। लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों के तहत प्रोत्साहन क्यों दिया जाए? हम भी इस समस्या का समाधान घरेलू कानून के तहत करने की कवायद कर रहे हैं।’

मंत्रिस्तरीय बैठक में इस प्रस्ताव पर अंतिम क्षण तक गहन बातचीत जारी रही। लेकिन इसे अंतिम दस्तावेजों में शामिल नहीं किया जा सका, क्योंकि भारत इससे सहमत नहीं था। अबूधाबी में 5 दिन तक चली गहन वार्ता के बावजूद मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में किसी प्रमुख मसले पर आम सहमति नहीं बन पाई।

First Published : March 4, 2024 | 10:29 PM IST