भारत की सॉवरिन रेटिंग बढ़ाए जाने के बाद एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स में एशिया के सॉवरिन एवं अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त रेटिंग्स के निदेशक यी फार्न फुआ ने जूम कॉल पर असित रंजन मिश्र को रेटिंग को लेकर किए गए फैसले की वजहों के बारे में बात की। प्रमुख अंश:
भारत को लेकर आपकी पिछली समीक्षा के बाद इस बार मूल रूप से क्या बदलाव हुआ है, जिसकी वजह से सॉवरिन रेटिंग अपग्रेड की गई?
जैसा कि आप जानते हैं, पिछले साल हमने भारत के परिदृश्य को बदलकर सकारात्मक कर दिया था। इसकी व्यापक वजह यह है कि हमने पाया कि वित्तीय समेकन को लेकर साफतौर पर पहल हुई थी। हमारा यह भी मानना है कि जीडीपी वृद्धि बहुत बेहतर है और इससे राजकोषीय गणित को समर्थन मिलेगा। हमने यह भी संज्ञान में लिया है कि सरकार बुनियादी ढांचे पर व्यय बढ़ा रही है, जिससे अर्थव्यवस्था को आगे और मदद मिलेगी।
सरकार के व्यय की सुधरती गुणवत्ता को देखते हुए हमारा मानना है कि यह भविष्य की आर्थिक उन्नति के लिए अच्छा संकेत है। इन कारकों ने लगातार अपनी भूमिका निभाई है। इस साल हम घाटा कम करने को लेकर सरकार को अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाते हुए देख रहे हैं। आप देख सकते हैं कि केंद्र का घाटा तेजी से कम हो रहा है। वहीं जीडीपी वृद्धि मजबूत बनी हुई है। साथ ही हमने यह भी देखा कि इस समय मौद्रिक नीति भी अधिक अनुकूल है। अगर एक दशक पहले से तुलना करें तो पिछले 3 से 4 साल में महंगाई दर उल्लेखनीय रूप से कम हुई है।
मुझे लगता है कि यह रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति ढांचे का प्रमाण है, जिससे लाभ हुआ है। हमारा मानना है कि ये सभी कारक मिलकर भारत के ऋण मानकों को सकारात्मक दिशा देने में मदद कर रहे हैं।
भारत की सॉवरिन रेटिंग को लेकर कुछ बुनियादी अवरोध रहे हैं, जैसा कि एसऐंडपी सहित विभिन्न रेटिंग एजेंसियों ने उल्लेख किया है, जिसमें कम प्रति व्यक्ति आय, उच्च ऋण-जीडीपी अनुपात और ज्यादा ब्याज दरें शामिल हैं। क्या इन बुनियादी मानदंडों पर आपका दृष्टिकोण बदल गया है?
हां, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। यह सभी कारक अभी मौजूद हैं। रेटिंग के लिए शायद अभी ये कमजोर क्षेत्र बने हुए हैं। प्रति व्यक्ति जीडीपी की कमी के मोर्चे पर हमने भारत के आर्थिक स्कोरिंग में औसत से ऊपर की वृद्धि दर का समायोजन लागू किया है। इसलिए भारत को कम आय वाले देश के रूप में आंकने के बजाय, हम जिस तरह से भारत का आकलन करते हैं, वह वास्तव में 15,000 डॉलर प्रति व्यक्ति के ब्रैकेट जैसा है। इसलिए हम इस आर्थिक मोर्चे पर संदेह का लाभ दे सकते हैं। राजकोषीय मोर्चे पर आप बिल्कुल सही हैं।
हमारे मानदंडों और मैट्रिक्स में भारत के राजकोषीय आंकड़े अभी भी कमजोर पक्ष को उजागर करेंगे। लेकिन हम इस हकीकत को भी देख रहे हैं कि भारत के लिए ऋण प्रोफाइल बहुत अनुकूल है, सरकार के ऊपर विदेशी मुद्रा का कोई ऋण नहीं है। राजकोषीय घाटा अधिक है, लेकिन मजबूत जीडीपी वृद्धि के कारण ऋण का बोझ नहीं बढ़ेगा। दरअसल तेज वृद्धि के कारण सरकार का ऋण-जीडीपी अनुपात धीरे धीरे घट रहा है।
भारत सरकार की शिकायत रही है कि विभिन्न रेटिंग एजेंसियों द्वारा सॉवरिन रेटिंग उतनी नहीं की जाती है, जितनी होनी चाहिए। तो क्या रेटिंग बढ़ाए जाने को सामान्यीकरण की दिशा में एक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए या यह अर्थव्यवस्था में मूलभूत परिवर्तनों के कारण है?
निश्चित रूप से यह इस तथ्य को स्वीकार करने जैसा है कि जमीनी स्तर पर बुनियादी सुधार हुए हैं। वहीं अगर आप भारत की अर्थव्यवस्था को देखें तो यह ऊपर और नीचे जाने के कई चक्रों से गुजरी है। लेकिन कोई दबाव नहीं दिखा, क्योंकि बुनियाद मजबूत है। सरकार सुधार लागू कर रही है।
मुझे लगता है कि क्रेडिट मैट्रिक्स वाकई स्थिर रहे हैं। इसलिए अगर आप इसे इस नजरिए से देखें, तो यह सुधार इस बात की भी मान्यता है कि इन सुधारों का फायदा हुआ है और आगे भी मिलता रहेगा।
एसऐंडपी का कहना है कि अमेरिकी शुल्क के असर का प्रबंधन हो सकता है, लेकिन शुल्क इस समय 50 प्रतिशत पहुंच गया है और अमेरिका अभी इसे और बढ़ाने की धमकी दे रहा है। ऐसे में आपको कितना भरोसा है कि भारत इसका प्रबंधन कर लेगा?
ईमानदारी से कहें तो शुल्क का मसला अभी तेजी से बदल रहा है। इस समय सही असर का आकलन बहुत कठिन है। लेकिन शुल्क कम होगा या नहीं, इसके बारे में हम नहीं जानते। लेकिन अपग्रेड की दिशा में आगे बढ़ने की वजह यह है कि भारत की बुनियादी धारणा बहुत मजबूत है। वृद्धि की रफ्तार मजबूत है, जिसके चलते शुल्क के व्यवधान से निपटा जा सकता है।
आपके हिसाब से सरकार को और क्या सुधार करने की जरूरत है?
बेशक, हम सरकार को सलाह नहीं दे सकते और न ही उन्हें बता सकते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि सरकार जो कर रही है और जिस दिशा में आगे बढ़ रही है, हमारे लिए उत्साहजनक संकेत हैं। घाटे में कटौती और सरकारी खर्च की गुणवत्ता में सुधार महत्त्वपूर्ण है। हमने बजट में देखा कि सरकार सब्सिडी से धन हटाकर बुनियादी ढांचे पर निवेश कर रही है। यह सब हमारे लिए आशाजनक संकेत हैं। कुछ साल पहले किया गया जीएसटी सुधार भी महत्त्वपूर्ण है।
आप देख सकते हैं कि इसकी वजह से सरकार को अब अधिक राजस्व मिल रहा है। कर का दायरा भी व्यापक हुआ है। सरकार जो भी कदम उठा रही है, अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अहम है।