इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कार्पोरेशन (इफको) और नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (एनएफएल) जैसी बड़ी खाद कंपनियां इस समय उत्पादन के लिए पूंजी की समस्या से जूझ रही हैं।
फर्टिलाइजर बॉन्डों की उन्हें बाजार में उचित प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है।कंपनियों के लिए तत्काल पूंजी जुटाने के लिए बॉन्डों की मजबूरन बिक्री करनी पड़ रही है। बॉन्डों को 5-7 प्रतिशत डिस्काउंट पर बेंचना पड़ रहा है या पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों से उधार लेना पड़ रहा है। इससे यह भी डर बना हुआ है कि उधारी लेने से वित्त वर्ष 2007-08 का कंपनी का लेखा जोखा भी गड़बड़ हो जाएगा।
इफको और एनएफएल के 75,00 करोड़ की सब्सिडी को पूरा करने के लिए सरकार ने नकद धन न देकर बॉन्ड जारी किया है। ये बॉन्ड दिसंबर 2007 और फरवरी 2008 में दो चरणों में जारी किए गए हैं। इफको, जो देश की सबसे बड़ी खाद कंपनी है, के हिस्से में 1676 करोड़ रुपये का फर्टिलाइजर बॉन्ड आया है। कंपनी ने पहले चरण के बॉन्डों को 1.5 प्रतिशत के घाटे के साथ 1,030 करोड़ रुपये में बेंचा, लेकिन दूसरे चरण में वह उतनी भाग्यशाली नहीं रही।
646 करोड़ रुपये के फर्टिलाइजर बॉन्ड पर उसे 5-7 प्रतिशत डिस्काउंट देना पड़ रहा है। कंपनी को बैलेंस बनाए रखने के लिए इसकी बिक्री रोकनी पड़ रही है। इफको के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक कंपनी को चालू रखने के खर्च को पूरा करने के लिए उधारी का सहारा लेना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘कच्चे माल की कीमतें बहुत बढ़ गईं हैं।
हमें काम करने के लिए तत्काल धन की जरूरत है। बॉन्डों को 5-7 प्रतिशत घाटे पर बेचने की बजाय हमें अतिरिक्त कर्ज लेना पड़ रहा है। इससे हमारे क्रेडिट रेटिंग पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।’
सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी कंपनी एनएफएल को भी काम करने के लिए धन की जरूरत को पूरा करने के लिए उधारी का सहारा लेना पड़ रहा है। कंपनी ने 5 प्रतिशत से अधिक के डिस्काउंट पर बॉन्डों की बिक्री कर हाल ही में 44 करोड़ रुपया जुटाया है। कंपनी ने फर्टिलाइजर विभाग को बॉन्डों को घाटे पर बेचने से हो रही क्षति को पूरा करने के लिए पत्र भी लिखा है।
एनएफएल के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने 724 करोड़ रुपये के बॉन्ड की बिक्री की है, लेकिन वर्तमान हालात में रिजर्व बैंक के मानकों के मुताबिक हमें इनकी बिक्री पर 36 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हम चाहते हैं कि हमारे इस घाटे को सरकार पेंडिंग सब्सिडी में शामिल कर ले।’
फर्टिलाइजर कंपनियां यह भी कह रही हैं कि सरकार ने पहले चरण में 7 दिसंबर 2007 को 3890 करोड रुपये का बॉन्ड 8.30 प्रतिशत ब्याज दर पर 15 साल के लिए जारी किया था, उसके प्रति लोगों में कुछ आकर्षण था। वहीं 18 फरवरी 2008 को जारी किए गए 3,610 करोड़ रुपये के बॉन्ड के प्रति लोगों में र्कोई आकर्षण नजर नहीं आ रहा है। दूसरे चरण के लिए जारी बॉन्डों का काल 18 साल है और उस पर 7.95 प्रतिशत ब्याज दिया जाना है।
डीसीएम श्रीराम कालोनाइजर्स लिमिटेड के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अजय श्रीराम का कहना है, ‘संयंत्रों को चलाने के लिए अगर नगद धनराशि नहीं मिलती है तो ये बॉन्ड मुसीबत जैसे ही हैं। हमारे जैसे विनिर्माताओं को कच्चे माल के लिए पैसे की जरूरत होती है और बॉन्डों की मेच्योरिटी का समय लंबा होता है। अगर कंपनी इन बॉन्डों को बेचना चाहती है तो उसे घाटा उठाना पड़ता है, क्योंकि बाजार में इसकी मांग कम है।
अगर नगद घन की कमी बनी रही तो संयंत्रों को बंद करना पड़ेगा। इससे खाद की उपलब्धता प्रभावित होगी। बॉन्ड, कुल प्राप्तियों के 10 प्रतिशत से ज्यादा के नहीं होने चाहिए, 90 प्रतिशत भुगतान नगद दिए जाने चाहिए।’ छोटी खाद कंपनियां जैसे कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड और कृभको श्याम फर्टिलाइजर्स लिमिटेड भी इसी तरह की समस्या का सामना कर रही हैं। उन्हें भी कंपनी के संचालन की जरूरतों को पूरा करने के लिए नगदी की जरूरत है, जिसके चलते बॉन्डों को घाटे में बेचना पड़ रहा है।
फर्टिलाइजर कंपनियों के दर्द की दास्तां
खाद कंपनियां पूंजी की समस्या से जूझ रही हैं।
सब्सिडी के बदले सरकार द्वारा जारी बॉन्डों को 5-7 प्रतिशत डिस्काउंट पर बेचना पड़ रहा है।
सरकार ने दो चरणों में जारी किए 75,00 करोड़ रुपये के फर्टिलाइजर बॉन्ड।
फर्टिलाइजर कंपनियों के मुताबिक पहले चरण के बॉन्डों के प्रति रहा खरीदारों में उत्साह, लेकिन दूसरे से निराशा।