अर्थव्यवस्था

विकसित भारत के लिए अगले 10 साल तक 8% वृद्धि जरूरी

आर्थिक समीक्षा कहती है कि भारत को गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक वार्षिक स्तर पर 78.5 लाख नई नौकरियां पैदा करने का इंतजाम करना होगा।

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असित रंजन मिश्र   
Last Updated- January 31, 2025 | 11:09 PM IST

भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हासिल करने के लिए अगले एक या दो दशक तक लगातार औसतन लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करनी होगी। शुक्रवार को जारी आर्थिक समीक्षा 2024-25 में यह आकलन पेश किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘इस वृद्धि दर तक पहुंचने के लिए निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 35 प्रतिशत तक ले जानी होगी जो इस समय 31 प्रतिशत पर है। इसके अलावा विनिर्माण क्षेत्र को गति देने के साथ-साथ आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), रोबोटिक्स और बायोटेक्नोलॉजी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश बढ़ाना बहुत आवश्यक है।’

आर्थिक समीक्षा कहती है कि भारत को गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक वार्षिक स्तर पर 78.5 लाख नई नौकरियां पैदा करने का इंतजाम करना होगा। यही नहीं, 100 फीसदी साक्षरता, शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार के साथ भविष्य की जरूरतों के हिसाब से व्यापक स्तर पर तेजी से बेहतर बुनियादी ढांचा खड़ा करना पड़ेगा। हालांकि बीते साल जुलाई में नीति आयोग ने कहा था कि मध्यम आय जाल में फंसने से बचने, 18,000 डॉलर सालाना प्रति व्यक्ति आय के साथ विकसित राष्ट्र और 2047 तक 30 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को अगले 20-30 सालों तक 7 से 10 प्रतिशत के बीच वृद्धि दर बनाए रखने की जरूरत है।

समीक्षा में वित्त वर्ष 2026 के लिए 6.3 से 6.8 प्रतिशत के बीच वृद्धि दर रहने का अनुमान जाहिर किया गया है। समीक्षा कहती है, ‘यह अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुमान से मेल खाता है, जिसमें भारत की जीडीपी की वृद्धि दर को वित्त वर्ष 2026 से 30 के बीच लगभग 6.5 प्रतिशत रहने की बात कही गई है।’ राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वित्त वर्ष 2025 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया है।

घरेलू मोर्चे पर समीक्षा में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती मांग खपत के लिए अच्छा संकेत है। इसके अनुसार, ‘कारोबारी माहौल में सुधार की आस और सार्वजनिक पूंजीगत व्यय बढ़ने की वजह से निवेश गतिविधियों में तेजी आने की संभावना है। विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोगिता दीर्घावधि औसत से बेहतर बनी हुई है और निजी क्षेत्र से मिलने वाले धड़ाधड़ ऑर्डर ने तेज वृद्धि के संकेत दिए हैं। लेकिन, इस्पात जैसे क्षेत्रों में वैश्विक अतिरिक्त क्षमता बढ़ने से लाभ कम हो सकते हैं, जिससे मांग की तलाश में आक्रामक व्यापार नीतियां बन सकती हैं।’

समीक्षा इस बात पर भी जोर देती है कि भारत को जमीनी स्तर पर ढांचागत सुधारों और मध्यम अवधि वृद्धि अपेक्षा को पूरा करने के लिए नियमन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिस्पर्धा की क्षमता में सुधार लाना होगा। नई और उभरती वैश्विक वास्तविकता के बीच समीक्षा कहती है कि आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका आंतरिक स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना और विकास के घरेलू साधनों पर जोर देना है। साथ ही वैध आर्थिक गतिविधियों का पालन सुनिश्चित करने के लिए लोगों और संस्थानों की आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर देना होगा।

रिपोर्ट कहती है, ‘लाइसेंसिंग, निरीक्षण और अनुपालन आवश्यकताओं के बोझ से मुक्त होकर ही देश के लोग और छोटे उद्यम अपनी आकांक्षाओं के साथ विकास और रोजगार से जुड़ी गंभीर चुनौतियों से पार पा सकते हैं। नियमन के एजेंडे को आगे बढ़ाने की दिशा में पिछले दस वर्षों से काम चल रहा है, जिसकी आज सख्त जरूरत है।’
आर्थिक समीक्षा कहती है कि तेज आर्थिक वृद्धि दर केवल तभी पाई जा सकती है जब केंद्र और राज्य सरकारें सुधारों को लागू करने की प्रक्रिया जारी रखें ताकि छोटे और मझोले उद्यम लागत को काबू में रखते हुए कुशलतापूर्वक अपना संचालन कर सकें।

इसमें कहा गया है, ‘नियमों को तार्किक बनाया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए नियम कम से कम आवश्यक हों। सुधारों और आर्थिक नीतियों में पूरा जोर अब व्यवस्थित तरीके से विनियमन पर होना चाहिए।’ खेतान ऐंड कंपनी में साझेदार अतुल पांडेय कहते हैं कि आर्थिक समीक्षा खासकर नियामकीय अनुपालन बिंदु पर नियमों में ढील दिए जाने की जरूरत पर जोर देती है।

First Published : January 31, 2025 | 10:24 PM IST