केंद्र व राज्यों के बीच विभाजन वाले केंद्रीय कर में राज्य सरकारें अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर रही हैं, वहीं वैश्विक दरें कम होने के कारण पेट्रोल व डीजल पर उपकर बढ़ाकर जुटाए गए करीब 28,000 करोड़ रुपये केंद्र सरकार अपने पास रख सकती है। 16वें वित्त आयोग के साथ बातचीत में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) द्वारा संचालित राज्यों समेत विभिन्न राज्य सरकारों ने कर में अपनी हिस्सेदारी वर्तमान 41 प्रतिशत से बढ़ाकर 45-50 प्रतिशत करने तथा उपकर और अधिभार की सीमा तय करने या उन्हें भी साझा कर में शामिल करने की मांग की है।
केंद्र द्वारा पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क और वैश्विक ईंधन दरों के बीच संबंध को समझना थोड़ा पेचीदा है, क्योंकि यह एकमुश्त या एकसमान उपकर है। वैश्विक दरों में गिरावट के बीच यह कर लगाने से सरकार के राजस्व में कोई कमी नहीं आएगी।
सरकार इस उपकर से चालू वित्त वर्ष 2026 में 1.45 लाख करोड़ रुपये आने की उम्मीद कर रही है, जितना पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान में आने का अनुमान था। संभव है कि इसी वजह से पेट्रोल व डीजल पर 2 रुपये लीटर उपकर बढ़ाया गया है, जिससे वित्त वर्ष 2026 में इस उपकर से राजस्व बढ़ाया जा सके।
तमाम लोगों का तर्क है कि केंद्र सरकार राज्यों के साथ राजस्व के घाटे को साझा कर रही है। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार ने नई कर प्रणाली के तहत वित्त वर्ष 2026 में 12 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी को कर मुक्त कर दिया है, जो पहले 7 लाख रुपये थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि इसके व अन्य बदलावों की वजह से सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये प्रत्यक्ष कर छोड़ना पड़ेगा। शिक्षा और स्वास्थ्य उपकर को छोड़कर, इस राजस्व छूट का अधिकांश हिस्सा राज्यों के साथ साझा किया जाएगा।
बहरहाल कर की आवक में तेजी के कारण प्रत्यक्ष कर में 12.65 प्रतिशत वृद्धि के साथ वित्त वर्ष 2026 में 25.2 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2025 के संशोधित अनुमान के मुताबिक 22.4 लाख करोड़ रुपये राजस्व अनुमान लगाया गया था।