अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को अंतिम रूप देते समय भारत को कठिन रियायतें देने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है। इसलिए अमेरिका के प्रस्तावित पारस्परिक शुल्क से निपटने के लिए उसे ‘शून्य के लिए शून्य’ टैरिफ रणनीति का प्रस्ताव रखना चाहिए। इसमें ऐसे उत्पादों को चिह्नित किया जा सकता है जहां अमेरिकी आयात पर शुल्क समाप्त करने की गुंजाइश दिखती हो। यह बात शुक्रवार को दिल्ली स्थित शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने अपनी रिपोर्ट में कही।
भारतीय नीति निर्माताओं को घरेलू स्तर पर नुकसान से बचते हुए उत्पादों की सूची भी तैयार करनी चाहिए और अधिकांश कृषि उत्पादों को इस समझौते से बाहर रखना चाहिए। अपनी रिपोर्ट में जीटीआरआई ने यह भी कहा कि इस सूची पर अमेरिका के साथ पारस्परिक शुल्क लागू किए जाने की घोषणा से पूर्व अप्रैल से पहले-पहले चर्चा हो जानी चाहिए। इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि यह रणनीति मुक्त व्यापार समझौते के समान होनी चाहिए और यदि अमेरिका इसे स्वीकार करे तो भारत के लिए पारस्परिक शुल्क बहुत कम या शून्य भी हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार ‘शून्य के लिए शून्य’ शुल्क रणनीति विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का उल्लंघन करती है, लेकिन यह पूर्ण एफटीए पर बातचीत करने की तुलना में कम हानिकारक है, जो भारत के लिए कुछ मुश्किल रियायतें देने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है जिनमें अमेरिकी फर्मों के लिए सरकारी खरीद के रास्ते खोलना, कृषि सब्सिडी कम करना पेटेंट नियमों को नरम करना और डेटा प्रवाह बाधाओं को हटाना जैसे मुद्दे शामिल हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारत के लिए इन सभी मामलों में आगे बढ़ना आसान नहीं होगा।
इस तरह की सूची तैयार करते समय भारत जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों को दी जाने वाली एफटीए शुल्क का प्रस्ताव रख सकता है।
यदि अमेरिका ‘शून्य के लिए शून्य’ प्रस्ताव को नकार देता है तो इसका मतलब यह होगा कि अमेरिकी सरकार के लिए टैरिफ मुख्य मुद्दा नहीं है बल्कि वह अन्य क्षेत्रों में रियायतों के लिए भारत पर दबाव बनाना चाहता है। ऐसी स्थिति में भारत को समझौता करने से इनकार कर देना चाहिए और चीन से सबक लेते हुए अतार्किक मांगों को बेझिझक ठुकरा देना चाहिए।
चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समान शुल्क की प्रकृति अभी स्पष्ट नहीं है। यह नहीं पता कि यह उत्पाद आधारित होगी या क्षेत्रवार या फिर देश के स्तर पर। इसे देखते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यदि यह उत्पाद के स्तर पर लागू हुई तो इसका प्रभाव सीमित होगा, क्योंकि भारत और अमेरिका एक जैसे उत्पादों का व्यापार नहीं करते। लेकिन यदि यह विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर लगाया गया तो संपूर्ण उद्योग जगत को गंभीर उथल-पुथल का सामना करना पड़ सकता है।’