अर्थव्यवस्था

अंबानी-अदाणी की जंग: कच्छ के रेगिस्तान में हरित ऊर्जा को लेकर अरबपतियों में होड़, रिपोर्ट में दावा

दोनों उद्योगपतियों के पास इस इलाके में करीब 5 लाख एकड़ जमीन है, यह इतनी बड़ी है कि दोनों समूह 100 गीगावाट से ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा कर सकते हैं

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देव चटर्जी   
Last Updated- September 15, 2025 | 6:17 PM IST

भारत के दो सबसे बड़े उद्योगपति, मुकेश अंबानी और गौतम अदाणी, गुजरात के कच्छ जिले में बंजर नमक की जमीनों को देश की सबसे बड़ी हरित ऊर्जा परियोजनाओं का केंद्र बनाने की होड़ में हैं। बर्नस्टीन रिसर्च की एक नई रिपोर्ट में इसे “Reign of Kutch” नाम दिया गया है। दोनों उद्योगपतियों के पास इस इलाके में करीब 5 लाख एकड़ जमीन है। यह इतनी बड़ी है कि दोनों समूह 100 गीगावाट से ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा कर सकते हैं। यह जापान की कुल बिजली क्षमता के बराबर है। लेकिन, दोनों की रणनीति एक-दूसरे से काफी अलग है।

अलग-अलग रास्ते, एक ही मंजिल

मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज, जो पहले तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स के लिए जानी जाती थी, अब हरित ऊर्जा की ओर बढ़ रही है। कंपनी 20 गीगावाट का सौर मॉड्यूल प्लांट बना रही है, जिसमें आधुनिक हेटरोजंक्शन (HJT) तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावा, 40 गीगावाट-घंटे की बैटरी फैक्ट्री भी शुरू की जा रही है, जिसे भविष्य में 100 गीगावाट-घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। रिलायंस का लक्ष्य 2032 तक हर साल 30 लाख टन हरी हाइड्रोजन बनाने का है। कंपनी अपनी डिजिटल योजनाओं को भी हरित ऊर्जा से जोड़ रही है। मेटा और गूगल के साथ मिलकर वह कई गीगावाट के डेटा सेंटर बना रही है, जो पूरी तरह नवीकरणीय ऊर्जा पर चलेंगे।

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दूसरी ओर, गौतम अदाणी की अदाणी ग्रुप पारंपरिक बिजली क्षेत्र में अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रही है। अदाणी ग्रीन एनर्जी के पास बिजली खरीद समझौतों (PPAs) की बड़ी लिस्ट है। अदाणी ट्रांसमिशन देश का सबसे बड़ा निजी ट्रांसमिशन नेटवर्क चलाता है। इसके साथ ही, अदाणी अपने अदाणीकॉनेक्स वेंचर के जरिए डेटा सेंटर भी बना रहा है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की जरूरतों को पूरा करेगा।  

छोटी कंपनियों पर खतरा

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दोनों ग्रुप्स की बड़ी योजनाएं छोटी कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। सोलर मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भारी उथल-पुथल हो सकती है। अगर आयात पर सख्ती बढ़ी, तो रिलायंस और अदाणी मिलकर वेफर क्षमता का लगभग आधा और पॉलीसिलिकॉन का 90 फीसदी हिस्सा अपने कब्जे में कर सकते हैं। वारी एनर्जीज और प्रीमियर एनर्जीज जैसी छोटी कंपनियों का टिकना मुश्किल हो सकता है। रिलायंस की बैटरी प्रोजक्ट्स भी दूसरों को पीछे छोड़ सकती हैं, क्योंकि यह अकेली कंपनी है जो पूरी तरह बैटरी स्टोरेज पर ध्यान दे रही है। कई छोटी कंपनियां अपने सेल प्लांट के लिए फंड जुटाने की कोशिश में IPO ला रही हैं।  

हालांकि, दोनों समूहों के सामने चुनौतियां भी हैं। रिलायंस के पास अभी सिर्फ 3 गीगावाट का ट्रांसमिशन कनेक्शन है, और 2030 तक नए कनेक्शन मिलना मुश्किल है। ऐसे में कंपनी को ग्रिड खरीदना पड़ सकता है या हाइड्रोजन को ऑनसाइट बनाकर ट्रांसपोर्ट करना होगा। हाइड्रोजन का खर्च भी एक समस्या है। वैश्विक स्तर पर 2040 से पहले इसकी लागत 2 डॉलर प्रति किलो से कम होने की उम्मीद नहीं है, जिसके चलते यह सेक्टर सरकारी सब्सिडी पर निर्भर रहेगा। वहीं, अदाणी की कोयला आधारित पुरानी परियोजनाएं उनकी हरित ऊर्जा की रफ्तार को धीमा कर सकती हैं।  

दोनों समूहों की योजनाएं भारत के हरित भविष्य के लिए अहम हैं। रिलायंस अगर अपने हाइड्रोजन लक्ष्य पूरे करता है, तो उसे 2030 तक हर साल 7-8 अरब डॉलर की कमाई हो सकती है। सोलर और स्टोरेज से 5-6 अरब डॉलर और जुड़ सकते हैं। अदाणी का ट्रांसमिशन और PPAs पर कब्जा उन्हें भारत के नवीकरणीय ऊर्जा रोलआउट का मुख्य कर्ता-धर्ता बनाता है।

First Published : September 15, 2025 | 6:17 PM IST