एक तरफ आईपीएल का खुमार चरम पर है, दूसरी ओर बीते 15 मार्च को ही मुंबई इंडियंस ने दिल्ली कैपिटल्स को आठ रनों से हराकर महिला प्रीमियर लीग (डब्ल्यूपीएल) का खिताब अपने नाम किया। मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में खेला गया फाइनल मैच ही नहीं, इस लीग के अन्य मुकाबले भी बेहद करीबी रहे, जिससे खिलाडि़यों और दर्शकों के बीच इन मुकाबलों का रोमांच बना रहा। महिला क्रिकेट की प्रीमियर लीग के इस सीजन में बड़ी संख्या में दर्शक स्टेडियम में मैच देखने पहुंचे, जो भारत में महिला क्रिकेट के प्रमुख मंच के रूप में डब्ल्यूपीएल की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।
दो साल पहले 2023 में लॉन्च डब्ल्यूपीएल देश में महिला खेलों के लिए महत्त्वपूर्ण मोड़ रहा। इसमें 5 फ्रेंचाइजी टीमें शामिल हुईं जिन्होंने महिला खिलाडि़यों पर रिकॉर्ड बोलियां लगाईं। यही नहीं, पुरुष लीग यानी आईपीएल की तरह ही कथित तौर पर 951 करोड़ रुपये के मीडिया अधिकार करार भी हुआ। इससे लीग ने महिला क्रिकेट के लिए वाणिज्यिक व्यवहार्यता और संस्थागत समर्थन दोनों मोर्चों पर अवसरों के द्वार खोल दिए।
भारतीय महिला खेलों में डब्ल्यूपीएल की सफलता एक दुर्लभ घटना है क्योंकि क्रिकेट से परे भागीदारी, पहचान और भुगतान में असमानताओं की शिकायतें आम रहती हैं। ओलिंपिक खेलों में ऐसी शिकायतें सबसे स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। वर्ष 2004 और 2020 के बीच ओलिंपिक में वैश्विक स्तर पर महिलाओं की भागीदारी 38.2 प्रतिशत से बढ़कर 48.7 प्रतिशत हो गई है। भारत ने भी इस मामले में काफी तरक्की की है।
वर्ष 2004 में भारतीय ओलिंपिक दल में 38 प्रतिशत महिला एथलीट शामिल थीं। वर्ष 2012 में यह हिस्सेदारी गिरकर 28 प्रतिशत ही रही। इसके बाद 2016 में फिर महिला एथलीटों की संख्या बढ़कर 44.44 प्रतिशत हो गई और 2020 में यह भागीदारी 47.69 प्रतिशत तक पहुंच गई।
खास बात यह है कि ओलिंपिक में अपने कम प्रतिनिधित्व के बावजूद भारतीय महिला एथलीट अधिक पदक जीतकर लाती हैं। वर्ष 1996 से 2020 ओलिंपिक तक महिलाओं के लिए पदकों के मामले में सफलता दर 3.1 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि पुरुषों के लिए यह केवल 2.0 प्रतिशत ही रही। देश में खिलाड़ियों की लिंग आधारित औसत कमाई पर कोई आंकड़ा आसानी से उपलब्ध नहीं है। सबसे लोकप्रिय खेल माने जाने वाले क्रिकेट में कमाई का विश्लेषण करके एक मोटा-मोटा अनुमान लगाया जा सकता है।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने 2022 में पुरुष और महिला क्रिकेटरों के लिए समान भुगतान की घोषणा की थी। इसमें टेस्ट मैच के लिए 15 लाख रुपये, एक दिवसीय मैच के लिए 6 लाख रुपये और टी20 के लिए 3 लाख रुपये निर्धारित किए गए। बोर्ड की तरफ से सुधारों का यह कदम ऐतिहासिक रहा, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर भेदभाव कायम रहा।
बोर्ड के साथ अनुबंधित खिलाडि़यों के लिए सभी ग्रेड में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को मिलने वाली राशि काफी कम है। ग्रेड ए अनुबंध में एक पुरुष सालाना 5 करोड़ रुपये कमाता है, वहीं एक महिला को 0.5 करोड़ रुपये ही मिलते हैं। ग्रेड बी में पुरुष खिलाड़ी की कमाई जहां 3 करोड़ रुपये हैं, वहीं इस वर्ग में महिला खिलाड़ी को मात्र 0.3 करोड़ रुपये ही मिलते हैं। ग्रेड सी (1 करोड़ रुपये बनाम 0.1 करोड़ रुपये) स्तर तक भी यह अंतर जारी है, जो लगातार 900 प्रतिशत अंतर है।