प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) ने कर्नाटक उच्च न्यायालय से कहा है कि केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा जारी कंटेंट को ब्लॉक करने और हटाने की सूचनाएं ‘बिना सोचे-समझे’ जारी की जा रही हैं। एक्स के मुताबिक ये आदेश संबंधित मंत्रालयों द्वारा अवैध जानकारी से निपटने के उद्देश्य से नहीं बल्कि सरकार और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जारी किए जा रहे हैं। इनका उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए में निहित सुरक्षा उपायों को दरकिनार करना है।
मंगलवार को एक संशोधित याचिका में एक्स ने कहा कि मंत्रालय ने कई केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और विभिन्न क्षेत्रों के पुलिस महानिदेशकों को कंटेंट हटाने का एक टेंपलेट प्रदान किया है ताकि ब्लॉक करने के आदेश जारी किए जा सकें। उसके मुताबिक ये आदेश सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत तय प्रक्रियाओं के अंतर्गत नहीं दिए जा रहे हैं। एक्स ने अपनी याचिका में गृह मंत्रालय के सहयोग पोर्टल को ‘सेंसरशिप पोर्टल’ करार दिया है। उसका कहना है कि यह अवैध है क्योंकि यह एक अर्द्ध न्यायिक संस्था तैयार करता है और साथ ही न्यायिक कार्यों का अतिक्रमण भी करता है।
उसने कहा कि इस पोर्टल की अर्द्धन्यायिक प्रक्रियाओं के तहत कोई भी केंद्रीय या राज्य का अधिकारी अपनी मर्जी से यह निर्धारित कर सकता है कि सूचना अवैध है और वह हटाने का आदेश जारी कर सकता है।
एक्स का तर्क है कि यह पोर्टल मनमाना, अस्पष्ट और संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (वाक एवं अभिव्यक्ति की आजादी) का उल्लंघन करता है।
एक्स ने यह भी कहा कि आईटी नियम 2021 का नियम 3(1)(डी) असंवैधानिक था क्योंकि यह मूल कानून यानी सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम द्वारा तय सीमाओं का अतिक्रमण करता है। इस प्रकार वह उन तय सिद्धांतों का उल्लंघन करता है जिनका अधीनस्थ कानून अतिक्रमण नहीं कर सकते हैं।
आईटी नियम 2021 का नियम 3(1)(डी) कहता है कि यदि किसी इंटरमीडियरी को किसी अवैध सामग्री के बारे में न्यायालय के आदेश या उपयुक्त सरकारी प्राधिकारी या उसकी एजेंसी से सूचना मिलती है तो उसे आईटी अधिनियम की धारा 79 (3)(बी) के तहत उस सामग्री को होस्ट, संग्रहीत या प्रकाशित नहीं करना चाहिए।