भारत में साल 1997 में एलजी के सीधे साधे क्वांग रो किम के लिए राहें बहुत कठिन थी।
इस कोरियाई कंपनी को सभी ने जापानी दिग्गज कंपनियों के सामानों की नकल करने वाली कंपनी से ज्यादा कुछ भी नहीं समझा था। भारत में कंपनी को चंद्रकांत बिड़ला के साथ बनाए गये उपक्रम में भी खास सफलता नहीं मिल पाई थी। कंपनी लक्की गोल्डस्टार से एलजी बनने के बाद भी ग्राहकों को नहीं रिझा पा रही थी।
लेकिन किम ने कुछ सालों में ही असंभव से दिखने वाले काम को संभव कर दिखाया और एलजी को भारत की सबसे बड़ी कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनी बना दिया। उन्होंने कंपनी को एक वैश्विक ब्रांड में तब्दील कर दिया है। ऐसा ही कुछ किम के साथ भी हुआ है।
अभी किम वीडियोकॉन के मालिक धूत भाइयों के निशाने पर थे। धूत बंधु अंतरराष्ट्रीय बाजार में जल्द से जल्द अपनी पकड मजबूत करना चाहते हैं। भारतीय बाजार में भी वीडियोकॉन अपना पहले जैसा रुतबा हासिल करना चाहते हैं। कंपनी की योजना साल 2012 तक अपना कारोबार 160 अरब रुपये से बढ़ाकर 400 अरब रुपये करने की है। कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक बाजार में किम का कद काफी ऊंचा है।
भारतीय उपभोक्ताओं के दिमाग को समझने वाले व्यक्तियों की संख्या इस बाजार में काफी कम है। जितनी अच्छी तरह से किम भारतीय उपभोक्ताओं की जरूरतों को समझ सकते हैं शायद ही कोई और समझ पाये। एलजी किम के नेतृत्व में ही इस बाजार की अग्रणी कंपनी बनी थी। किम ने भारतीय बाजार की मांग पूरी करने के लिए उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में ज्यादा क्षमता वाले दो संयंत्र भी लगाये। इन संयंत्रों के लगने से कंपनी को कम लागत में ज्यादा उत्पादन करने में आसानी हुई।
किम ने एलजी के उत्पादों को भारतीय बाजारों के अनुकूल ढाला, जिससे कंपनी को भारतीय बाजार में पैठ बनाने में आसानी हुई। देश में एलजी के रिटेल स्टोर खुलवाने के लिए उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण भी किया है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक किम के पास समझौते करने की अनूठी काबिलियत है। किम के साथ काम कर चुके लोगों के अनुसार किम बातचीत करने में भले ही मृदुभाषी हो लेकिन जब बात काम की हो तो वो मुश्किल कामों को भी आसानी से निपटाने में माहिर हैं।
भारत में फिल्मों और क्रिकेट से ज्यादा कुछ भी नहीं बिकता यह बात किम की समझ में सबसे पहले आई थी। उन्होंने एलजी को ब्रांड बनाने के लिए क्रि केट की मदद ली। जब भारतीय एलजी के पास इसके लिए पूंजी की कमी थी तो किम ने कोरियाई एलजी से पूंजी का इंतजाम कराया। अब एलजी को उसी व्यक्ति से मुकाबला करना है जिसने भारत में उसकी नींव रखी और उसे सफलता के शिखर तक पहुंचाया।
अब सबकी निगाहें फिर से किम पर टिकी होंगी यह देखने के लिएए कि क्या फिर से किम अपना एलजी वाला जादू वीडियोकॉन के लिए भी चला पाते हैं। ऐसा होगा या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन एक बात तो तय है कि वीडियोकॉन अब पारिवारिक कंपनी नहीं रहेगी। बल्कि अब वीडियोकॉन व्यवसायी द्वारा संचालित कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक कंपनी बन जाएगी।
धूत बंधुओं ने किम को वीडियोकॉन के इलेक्ट्रॉनिक कारोबार के लिए घरेलू व अंतरराष्ट्रीय विस्तार और विलय करने के अधिकार भी दे दिये हैं। हाल ही में वीडियोकॉन ने फ्रांसीसी कंपनी थॉमस एसए के रंगीन पिक्चर टयूब कारोबार और स्वीडन कंपनी इलेक्ट्रोलक्स एबी की भारतीय इकाई का अधिग्रहण किया है। वीडियोकॉन ने मोटोरोला के मोबाइल कारोबार को खरीदने की मंशा भी जाहिर की है। इन अधिग्रहणों के लिए निवेश कंपनी की कमाई से ही किया जाएगा।
भारत में धूत बंधुओं के पास वो सब कुछ है जो कि बाजार में पकड़ बनाने के लिए जरूरी है- बड़े निर्माण संयंत्र, अच्छी ब्रांड (कंपनी इलेक्ट्रोलक्स और केलविनेटर के नाम से भी उपकरण बेचती है)। इसके अलावा कंपनी सेन्सुई, अकाई नाम से टेलीविजन भी बेचती है। इसके साथ ही कंपनी ‘नेक्स्ट’ नाम से मल्टीब्रांड रिटेल चेन भी चलाती है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या किम इन सभी सुविधाओं का फायदा उठाकर वीडियोकॉन के साथ भी उसी सफलता को दोहरा पाएंगे।