वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के लेनदारों ने ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) अधिनियम की धारा 12ए के तहत ऋण समाधान के लिए कंपनी के प्रवर्तकों की ओर से जमा कराए गए आवेदन पर विचार करने के लिए अपनी सहमति जताई है। आईबीसी की धारा 12ए के तहत ऋण समाधान के लिए मामला नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में दर्ज होने के बाद डिफॉल्टर को बकाये के पुनर्भुगतान और कंपनी पर नियंत्रण बरकरार रखने के लिए एक और अवसर दिया गया। हालांकि यह प्रस्ताव पर 90 फीसदी लेनदारों की सहमति पर निर्भर करता है।
यदि लेनदार वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के प्रवर्तकों द्वारा दिए गए प्रस्ताव पर अपनी सहमति देते हैं तो यह आईबीसी की धारा 12ए के तहत लेनदारों द्वारा किया गया एक बड़ा ऋण पुनर्गठन होगा। लेनदारों को अपने बकायेदार कंपनियों से औसतन 45 फीसदी बकाया ही हासिल हो पा रहा है।
वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के प्रवर्तक धूत परिवार ने अगले कुछ वर्षों में लेनदारों को 31,300 करोड़ रुपये चुकाने की पेशकश की थी। प्रवर्तकों ने सबसे पहले एनसीएलटी के मुंबई पीठ में इसके लिए याचिका दायर की है। इस पर लेनदारों ने अपने जवाब में कहा है कि वे मध्य अक्टूबर में होने वाली लेनदारों की समिति (सीओसी) की बैठक में धूत के आवेदन पर विचार करेंगे।
वीडियोकॉन के प्रवर्तकों ने रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को दिए आने आवेदन में कहा है कि उनका ऋण समाधान आवेदन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बताए गए आईबीसी के सामान्य सिद्धांतों का अनुपालन करता है जिसके तहत मुख्य तौर पर जीईएम यानी सभी हितधारकों के लिए चिंता, रोजगार और अधिकतम मूल्य पर जोर देता है।
कोरोनावायरस वैश्विक महामारी के कारण वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के प्रस्ताव ने कुछ ही प्रमुख निवेशकों को आकर्षित किया लेकिन इसके बावजूद बैंक कंपनी को परिसमापन में भेजने पर विचार कर रहे थे जिसका मतलब साफ है कि उसकी परिसंपत्तियों को बेचकर बकाये की वसूली करना। दिलचस्प है कि जब 2017 में 40 से अधिक कंपनियों को ऋण समाधान के लिए एनसीएलटी में भेजने के लिए आरबीआई का आदेश आया था तो वीडियोकॉन ने अपना ऋण समाधान प्रस्ताव लगभग तैयार कर लिया था। उसे भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की सहायक इकाई एसबीआई कैप द्वारा तैयार किया गया था।
पिछले ऋण समाधान प्रस्ताव के अनुसार, बैंकों को 27,500 करोड़ रुपये के बकाये (नवंबर 2017 तक) की वसूली होने की उम्मीद थी। समूह द्वारा रकम की कोई हेराफेरी न किए जाने के लिए फोरेंसिक ऑडिटरों द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद संयुक्त लेनदार फोरम ने नवंबर 2017 में उस प्रस्ताव के लिए अपनी सहमति दी थी। एसबीआई कैप की योजना वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के ऋण को दो हिस्से में बांटने की थी: 15,000 करोड़ रुपये का कूपन (मूलधन का 55 फीसदी) और गैर-कूपन श्रेणी में 12,257 करोड़ रुपये। इसके अलावा 4,032 करोड़ रुपये के बकाये ब्याज को भी गैर-कूपन श्रेणी में रखा गया था।