संचार सेवा प्रदाताओं (टीपीएस) के लिए सरकार ज्यादा सख्त सेवा की गुणवत्ता (क्यूओएस) के मानक के लिए आधार तैयार कर रही है। इसका मकसद ऐसे समय में दूरसंचार सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना है, जब देश तेजी से 5जी तकनीक अपना रहा है। अधिकारियों ने कहा कि दूरसंचार विभाग (डीओटी) जल्द ही इस सिलसिले में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को परामर्श पत्र भेजेगा, जिसमें ज्यादा संख्या में क्यूओएस मानक शामिल होंगे।
एक अधिकारी ने कहा, ‘इस मसले पर शुरुआती चर्चा पहले ही पूरी कर ली गई है। विभाग जल्द ही ट्राई को औपचारिक प्रस्ताव भेजेगा।’ उन्होंने कहा कि ट्राई की ओर से इस पर राय मिलने के बाद कार्यकारी आदेश के माध्यम से बहुप्रतीक्षित अद्यतन मानकों की घोषणा की जाएगी।
ट्राई ऐक्ट 1997 में नियामक को कार्यकारी शक्तियों के माध्यम से अधिकार दिया गया है कि वह क्यूओएस सुनिश्चित करे, समय समय पर इसकी समीक्षा करे और ग्राहकों के हितों की रक्षा करे। इसने आखिरी बार परामर्श पत्र 2016 में जारी किया था, जिसमें सेलुलर मोबाइल टेलीफोन सेवाओं के सेवा की गुणवत्ता की समीक्षा की गई थी।
सेवा की गुणवत्ता के नए मानकों में प्रभावी तरीके से कॉल ड्रॉप, खराब आवाज और खराब डेटा कनेक्टिविटी को खत्म करने की कवायद होगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे समय में, जब भारत में 5जी तकनीक को लाने की जोरदार कवायद चल रही है और टीएसपी अपने बुनियादी ढांचे को दुरुस्त कर रही हैं, यह अस्वीकार्य है कि गुणवत्ता को लेकर बड़े पैमाने पर शिकायतें आएं. यहां तक कि बड़े शहरी इलाकों में भी गुणवत्ता की शिकायत आ रही है।’
बहरहाल इस मसले के समाधान की कई कोशिशों के बावजूद सरकार मौजूदा मानकों के तहत इस पर कार्रवाई करने में सक्षम नहीं रही है। इसकी वजह यह है कि टीएसपी ज्यादातर क्यूओएस मानकों का पालन करते हैं और पूरे सेवा क्षेत्र में औसत प्रदर्शन आ जाता है, भले ही बड़ी संख्या में ग्राहक खराब गुणवत्ता की शिकायत कर रहे हैं। मौजूदा मानकों में नेटवर्क की उपलब्धता, कनेक्शन लगाने के लिए पहुंच, कनेक्शन का आसान रखरखाव, इंटरकनेक्शन कंजेशन के प्वाइंट और कुछ अन्य सहायक मानक शामिल हैं। ट्राई ने इसके लिए न्यूनतम मानक तय किया है। ट्राई ने इस प्रदर्शन का पहले उल्लेख किया कि क्यूओएस को लेकर पूरे सेवा क्षेत्र का औसत ग्राहकों के अनुभव से अलग तस्वीर पेश कर सकता है और कुछ इलाकों में सेवाओं का बहुत बुरा हाल हो सकता है।
परिणामस्वरूप और ज्यादा व्यापक मानकों के साथ सख्त नियम बनाने का सुझाव डीओटी ने दिया है। बहरहाल अधिकारियों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है कि क्या इसे लेकर सख्ती बरती जाएगी या नहीं। 2015 में कॉल ड्रॉप की समस्या बहुत बड़ी थी और नियामक ने कॉल ड्रॉप पर एक रुपये हर्जाना देना अनिवार्य कर दिया था। यह धनराशि कॉल करने वाले ग्राहक के खाते में जानी थी, जो एक दिन में 3 कॉल ड्रॉप तक सीमित था। लेकिन टीएसपी द्वारा उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई और न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। इसकी जगह न्यायालय ने ट्राई से कहा कि वह तार्किक और गैर बाध्यकारी तरीके से काम करे।