देश का 1.5 लाख करोड़ रुपये के देसी दवा बाजार की स्थिति काफी हद तक सामान्य हो गई है और बाजार दोबारा वृद्घि की राह पर लौट आया है। मगर इस बाजार के लोगों का कहना है कि मात्रा के लिहाज से वृद्घि अब भी चिंता का विषय है।
मूल्य के लिहाज से देसी दवा बाजार महामारी से पहले के जून, 2019 के सतर से बहुत आगे चला गया है। यह बाजार जून, 2019 में करीब 1.3 लाख करोड़ रुपये का था, जो लॉकडाउन और महामारी के बाद भी पिछले साल जून में बढ़कर 1.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसके मुकाबले इस साल जून में बाजार 11.7 फीसदी बढ़ा, जिसमें कीमतों में 5.3 फीसदी वृद्धि और नए उत्पादों में 4.1 वृद्धि थी। लेकिन बिकी हुई दवाओं की मात्रा के मामले में वृद्घि केवल 2.3 फीसदी रही। देश की बड़ी दवा कंपनियों के शीर्ष संगठन इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, ‘दवा बाजार अन्य आर्थिक क्षेत्रों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। लेकिन मात्रा के लिहाज से वृद्घि केवल तीन फीसदी के करीब है। तीसरी लहर की आशंका में उतारचढ़ाव और चिंता देखी जा रही है। मरीजों का डॉक्टरों से परामर्श केवल को लेकर अस्थिरता और चिंता है। केवल 60-70 फीसदी मरीज डॉक्टरों से सलाह ले रहे हैं। पुरानी बीमारियों के मरीजों का डॉक्टरों से परामर्श बढ़ा है क्योंकि उन बीमारियों का लंबा असर होता है।’ आईपीए के सदस्यों की देसी बाजार में 60 फीसदी और देश के दवा निर्यात में करीब 80 फीसदी हिस्सेदारी है।
2020 के अप्रैल-जून में कड़े देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बिक्री में भारी गिरावट आई क्योंकि गंभीर रोगों के उपचार की एंटीबायोटिक्स जैसी दवाओं की बिक्री एकदम घट गई। पिछले साल मार्च में लोगों ने मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों की ढेर सारी दवा खरीद लीं ताकि लंबे समय तक उन्हें खरीदना नहीं पड़े। उस महीने बिक्री में नौ फीसदी वृद्धि रही थी। लेकिन अप्रैल में बिक्री अप्रैल, 2019 के मुकाबले 11.2 फीसदी घट गई। हालांकि कुल बिक्री में गिरावट के बावजूद दिल की बीमारी और मधुमेह की दवाएं खासी बिकीं और उनमें साल भर पहले के मुकाबले 5.9 फीसदी और 6.4 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई। मगर मार्च से मई के बीच भारतीय दवा बाजार की वृद्धि महज 3.6 फीसदी रही।
प्रभुदास लीलाधर में विश्लेषक सुरजीत पाल ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर और पिछले साल कम बिक्री के कारण अप्रैल और मई में बिक्री में तगड़ी वृद्धि देखी गई, जिसके बाद जून में देसी दवा बाजार की वृद्घि सामान्य हो गई। हाल ही में एक रिपोर्ट में पाल ने वृद्धि सामान्य होने की कई वजह बताई हैं, जिनमें मई में चरम पर पहुंचने के बाद कोविड-19 के मामलों में गिरावट, जून 2020 में भारतीय दवा बाजार की आपूर्ति शृंखला का काफी हद तक दुरुस्त रहना और संक्रमण-रोधी या गंभीर रोगों के उपचार के उत्पादों की साल भर पहले के मुकाबले तेज मांग रहना शामिल हैं।
कोविड से संबंधित उपचार और रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं भारतीय दवा बाजार की वृद्धि में अहम योगदान दे रही हैं। कोविड-19 की अधिक दवाएं बेचने वाली कंपनियों की वृद्घि से यह बात साफ है। उदाहरण के लिए ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स के पास कोविड-19 के उपचार के लिए खाई जाने वाली दवा फैविरिपराविर है, जिसकी जबरदस्त मांग रही है। इसीलिए कंपनी ने जून 2021 में बिक्री में 38.8 फीसदी और अप्रैल से जून 2021 के दौरान 105 फीसदी वृद्धि दर्ज की। सिप्ला ने जून में 19.9 फीसदी, कैडिला हल्थकेयर ने 12.5 फीसदी और डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज ने 11.2 फीसदी वृद्धि दर्ज की।
देसी दवा उद्योग के लिए अहम श्रेणी संक्रमण-रोधी दवाओं में पिछले साल गिरावट आई थी, लेकिन अब यह भी पटरी पर आता नजर आ रहा है। इसने जून में भारतीय दवा बाजार के मूल्य में 14 फीसदी योगदान दिया। एआईओसीडी अवाक्स की अध्यक्ष (बाजार अनुसंधान) शीतल सापले ने कहा कि गंभीर रोगों के उपचार की दवाओं की खपत खास मौसम में होने वाली बीमारियों पर निर्भर करती है। लॉकडाउन के दौरान मामला बिगड़ गया, जिस कारण वृद्घि में गिरावट रही। सापले ने कहा, ‘लॉकडाउन धीरे-धीरे हटने और टीकाकरण बढऩे से लोगों का भरोसा बढ़ा है। उन्होंने सामान्य दिनचर्या अपनानी शुरू कर दी है। इससे मौसमी बीमारियां लौट रही हैं और इन दवाओं की बिक्री सामान्य हो रही है।’