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6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की कमी से 5जी विस्तार में बाधा

6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम मिडबैंड स्पेक्ट्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे अभी तक इस्तेमाल नहीं किया जा सका था।

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शुभायन चक्रवर्ती   
Last Updated- May 20, 2025 | 11:16 PM IST

दूरसंचार कंपनियां, दूरसंचार विभाग (डीओटी) के ताजा मसौदा नियम को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। इन नियमों में 6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम के निचले स्तर को वाई-फाई ब्रॉडबैंड के लिए बिना लाइसेंस के इस्तेमाल करने की छूट दी गई है। दूरसंचार कंपनियों के सूत्रों का कहना है कि इससे 5जी के विस्तार में बड़ी बाधा आएगी।

सूत्रों का कहना है कि मोबाइल फोन के लिए स्पेक्ट्रम की कमी के कारण, भारती एयरटेल को पिछले साल 5जी ट्रैफिक में हुई बढ़ोतरी को पूरा करने के लिए अपने मिड-बैंड स्पेक्ट्रम का फिर से इस्तेमाल करना पड़ा था। वहीं रिलायंस जियो ने 3.5 गीगाहर्ट्ज के दायरे में अतिरिक्त स्पेक्ट्रम की मांग की है।

6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम मिडबैंड स्पेक्ट्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे अभी तक इस्तेमाल नहीं किया जा सका था। यह स्पेक्ट्रम, सिग्नल कवरेज और क्षमता के बीच सबसे बेहतर संतुलन बनाता है। इस स्पेक्ट्रम के लिए दूरसंचार परिचालकों और तकनीकी कंपनियों के बीच लंबे समय से खींचतान चलती रही है। लेकिन

सोमवार को विभाग ने नए ड्राफ्ट नियमों में कहा कि निचले स्तर के 6गीगाहर्ट्ज (5925-6425 मेगाहर्ट्ज) बैंड  में कम पावर वाले इनडोर और बेहद कम पावर वाले आउटडोर वायरलेस उपकरणों को लगाने, चलाने या इस्तेमाल करने के लिए पहले से किसी तरह की अनुमति या फिर फ्रीक्वेंसी असाइनमेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी।

एक निजी क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर 5जी कवरेज के लिए 6गीगाहर्ट्ज बैंड तक पहुंच महत्वपूर्ण है जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है। हम इस मुद्दे को डीओटी के सामने फिर से उठाएंगे।’

सरकार 30 दिनों के भीतर इन मसौदा नियमों पर विचार करेगी लेकिन उससे पहले दूरसंचार कंपनियां उन्हें अपनी आपत्ति लिखकर बताएंगी। अधिकारी ने वैश्विक मोबाइल उद्योग संस्था जीएसएम एसोसिएशन (जीएसएमए) की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि 6गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करके भारत 5जी नेटवर्क को लगाने में 10 अरब डॉलर की सालाना बचत कर सकता है।

दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि भारत को ‘आईएमटी-2020’ उपयोगकर्ता अनुभव के अंतरराष्ट्रीय मानक को पूरा करने के लिए, मिड बैंड में खासतौर पर 6 गीगाहर्ट्ज बैंड में कुल 2 गीगाहर्ट्ज रेडियो तरंगों को आवंटित करने के लिए कम से कम 1200 मेगाहर्ट्ज अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली करने की जरूरत है।

सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) का अनुमान है कि इससे घनी आबादी वाले शहरों में डाउनलिंक पर 100 मेगाबिट प्रति सेकंड (एमबीपीएस) और अपलिंक पर 50 एमबीपीएस की डेटा दरें सुनिश्चित होंगी। सीओएआई के सदस्यों में रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया शामिल हैं।

एक दूरसंचार कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘जियो का तरीका वैश्विक स्तर की कई दूरसंचार कंपनियों के अनुरूप है। कई देशों ने 6गीगाहर्ट्ज का अधिकांश या पूरा हिस्सा वाईफाई 6ई और वाईफाई 7 जैसे बिना लाइसेंस वाले उपयोग के लिए आरक्षित रखा है इसलिए परिचालकों ने 5जी नेटवर्क के लिए मिड बैंड स्पेक्ट्रम (3.3-3.8 गीगाहर्ट्ज ) या सी-बैंड पर ध्यान केंद्रित किया है।’

दिसंबर 2023 में इंटरनैशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन (आईटीयू) ने लाइसेंस वाले मोबाइल परिचालन के लिए 6.425-7.125 गीगाहर्ट्ज को अलग किया था। यह फैसला हर तीन-चार साल में होने वाले 10वें वर्ल्ड रेडियोकम्युनिकेशन कॉन्फ्रेंस में लिया गया था जिसमें रेडियो स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों की समीक्षा और संशोधन किया जाता है। बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जैसे कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने पहले ही पूरे 6गीगाहर्ट्ज बैंड (5925-7125 मेगाहर्ट्ज) को बिना लाइसेंस वाले इस्तेमाल के लिए आवंटित किया है। पूरे बैंड को वाईफाई इस्तेमाल के लिए खोलने के बाद ब्राजील ने बाद में नीतियों में बदलाव किया है ताकि बैंड के ऊपरी स्तर का इस्तेमाल मोबाइल फोन के लिए हो। ब्रिटेन में बैंड के ऊपरी स्तर के इस्तेमाल के लिए फैसला लेने पर विचार-विमर्श जारी है।

First Published : May 20, 2025 | 10:54 PM IST