एमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और पेटीएम जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों ने सभी उत्पादों पर उनके मूल देश का नाम सूचीबद्ध करने के लिए तकनीकी उपायों पर काम शुरू कर दिया है, जिससे उपभोक्ता अपने अनुसार जरूरी निर्णय ले सकें। उद्योग से जुड़े अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह एक बहुत बड़ा काम है जिसमें डेटा इक_ा करना और इसे ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस के साथ समायोजित करना होगा। एमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और पेटीएम, सिर्फ चार प्लेटफार्मों पर कम से कम 60 करोड़ उत्पाद सूचीबद्ध हैं।
उद्योग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों ने प्रौद्योगिकी विकास पर काम करना शुरू कर दिया है जिसमें बड़े स्तर पर कोडिंग, एल्गोरिदम एवं डेटाबेस आदि पर काम किया जाएगा। इस सुविधा के तहत उपभोक्ताओं को मूल देश के आधार पर उत्पादों को खरीदने का विकल्प चुनने का विकल्प मिलेगा। फिलहाल, उपभोक्ता कीमतें, छूट, डिलिवरी तिथि, रेटिंग और समीक्षाओं जैसे विवरणों के आधार पर उत्पाद खरीद सकते हैं। एक ई-कॉमर्स कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘विक्रेताओं द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर एल्गोरिदम के जरिये उपभोक्ता इस विकल्प को चुन सकेंगे कि वे चीनी उत्पाद खरीदना चाहते हैं या नहीं। उदाहरण के लिए, जब कोई उपभोक्ता आईफोन खरीदना चाहता है, तो एल्गोरिदम उसे बताएगा कि स्क्रीन पर दिखाए जा रहे फोन में से कौन से फोन चीन या अन्य देशों में बने हैं।’
सरकार द्वारा ऑनलाइन रिटेलरों को दिशानिर्देश जारी करने के बाद यह कवायद शुरू की गई है, जिसमें कहा गया था कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर सूचीबद्ध नए उत्पादों के लिए 1 अगस्त 2020 से तथा पुराने मौजूदा उत्पादों के लिए 1 अक्टूबर 2020 से उत्पादों के साथ उन्हें बनाने वाले देश का नाम भी प्रदर्शित करना होगा।
यह निर्देश भारत में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की बढ़ती मांग के बीच आया है, जिसे केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान से भी गति मिली। ई-कॉमर्स कंपनियों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उन्होंने सरकार से इसका अनुपालन करने के लिए कम से कम 3-5 महीने का अनुरोध किया है।
उद्योग से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘यह आम व्यापार की तरह नहीं है। इंजीनियर घर से काम कर रहे हैं और इस तरह की तकनीक विकसित करने के लिए उन्हें समय चाहिए।’
कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों ने इस समस्या से निपटने में मदद करने के लिए विक्रेताओं के लिए कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना बनाई है। फ्लिपकार्ट ने चुनिंदा उत्पाद लिस्टिंग पर ‘मूल देश’ प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है।
ई-कॉमर्स उद्योग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि उत्पादों के लिए मूल देश का निर्धारण करने के लिए पूरी आपूर्ति शृंखला की जांच करना और उस जानकारी को बाज़ार में फीड करना होगा तथा इसकी नैतिकता बनाए रखने का काम विक्रेता द्वारा किया जाएगा। हालांकि यह एक चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि विक्रेताओं को बाजार के स्थानों पर सूचीबद्ध लाखों नए एवं मौजूदा उत्पादों के लिए मूल देश की जानकारी मैन्युअल तरीके से दर्ज करनी होगी।
एक व्यक्ति ने कहा, ‘मार्केटप्लेस पर अधिकांश विक्रेता वास्तव में सामान के पुनर्विक्रेता हैं और किसी सामान को किसी विशेष देश से आने का प्रमाण देते समय वे बहुत बड़ा जोखिम उठाएंगे।’
उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने ई-कॉमर्स कंपनियों को विधिक माप विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियमावली, 2011का अनुपालन करने के लिए कहा था। साल 2017 में इन नियमों में संशोधन किया गया था जिसमें ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए उत्पादों के विवरण की अनिवार्य घोषणा भी शामिल है। ई-कॉमर्स उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि सभी उत्पादों के लिए मूल देश जैसा कोई अंतर्निहित कानून नहीं है। उन्होंने कहा कि विधिक माप विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियमावली पैकेट बंद सामानों पर ही लागू होती है, न कि गैर-ब्रांड वाले सामानों पर। इसके अलावा, कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों ने पहले से ही विक्रेताओं को आयातित वस्तुओं के लिए मूल देश के विवरण को प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया था।
टेकलेगिस एडवोकेट्स ऐंड सोलिसिटर्स के मैनेजिंग पार्टनर सलमान वारिस ने कहा कि विक्रेताओं द्वारा दी गई जानकारी को प्रमाणित करने से जुड़ी चुनौतियां मौजूद हैं। डीपीआईआईटी ने भी इस सप्ताह के शुरू में लगभग 30 ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ हुई बैठक के दौरान ये सीमाएं देखी हैं। वारिस ने कहा, ‘इस कारण सरकार द्वारा अभी तक कोई आधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं की गई है और डीपीआईआईटी अभी भी परामर्श की प्रक्रिया में है। साथ ही, ‘मूल देश’ की परिभाषा को लेकर भी नियमों में अस्पष्टता है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि ‘मूल देश’ शब्द की अपनी अपनी कई व्याख्याएं हो सकती हैं। किसी उत्पाद के कई हिस्से एक देश में बन सकते हैं और उन्हें जोड़कर अंतिम उत्पाद बनाने का काम दूसरे देश में किया जा सकता है। अधिकांश विक्रेता इन सभी हिस्सों या उत्पाद के मूल देश के बारे में आसानी से नहीं जान पाएंगे।
पैकेज्ड कमोडिटी नियमावली 2017 के तहत ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के लिए प्रिंसिपल डिस्प्ले पैनल की एक इमेज दिखाना अनिवार्य किया गया था, जो किसी उत्पाद की पैकेजिंग का हिस्सा है या इस जानकारी को टेक्स्ट के तौर पर शामिल करते है। कुछ उपभोक्ताओं का कहना है कि प्रिंसिपल डिस्प्ले पैनल की इमेज उत्पाद की जानकारी खोजने के लिए सबसे अच्छी विधि होगी। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इससे न सिर्फ ‘विक्रेताओं पर अनुपालन बोझ’ बढ़ेगा, बल्कि ई-कॉमर्स वेबसाइटों या ऐप की गति भी धीमी हो जाएगी। थोक में उत्पाद खरीदने वाले विक्रेताओं को तस्वीरें लेने के लिए पूरे कार्टन को खोलना होगा। साथ ही, कुछ मामलों में, जब तक वे अन्य आपूर्तिकर्ताओं से उत्पाद प्राप्त नहीं करते, तब तक वे तस्वीरें नहीं ले सकेंगे।