दवा निर्माता कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज लिमिटेड ने मलेरिया की नई मिश्रित दवा का क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे चारण की शुरुआत कर दी है।
यह दवा आट्रोरोलेन मैलिएट और पिपराक्वीन फास्फेट का मिश्रण है। जानकारों का कहना है कि इससे विकासशील देशों में मलेरिया के इलाज में काफी सुविधा होगी। कंपनी ने भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड के लिए इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया है।
कंपनी का कहना है यह दवा 2010 तक बाजार में आ सकती है। उल्लेखनीय है कि रैनबैक्सी एमएमवी के साथ मिलकर मलेरियारोधी दवा का विकास कर रही है। इसके लिए कंपनी की ओर से वर्ष 2003 में एमएमवी के साथ साझा किया गया था।
रैनबैक्सी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक मालविंदर मोहन सिंह ने कहा कि हम यह दवा विकासशील देशों को लक्ष्य कर विकसित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा इरादा पी. फाल्सीपरुम मलेरिया के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध कराना है।
कंपनी की ओर से कहा है कि बाजार में इस समय मलेरियारोधक जो विकल्प मौजूद हैं, मच्छरों ने उनसे प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली है। ऐसे में मलेरिया रोधक दवाएं प्रभावी साबित नहीं हो रही हैं। यही नहीं, जो अन्य विकल्प मौजूद हैं, वे काफी महंगे हैं, जिसका इस्तेमाल सभी रोगी नहीं कर पाते हैं।
कंपनी का कहना है कि इस दवा को भारत समेत अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया पैसिफिक में इस दवा का वितरण किया जा सकता है। सिंह ने कहा कि हमे इस बात की खुशी है कि हमने इस दवा का तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है। हमने हमेशा से ऐसी दवाओं का विकास करने का प्रयास किया है, जो प्रभावी होने के साथ आम आदमी की पहुंच में हो।
