महामारी के दौरान निवेश बहुत कम रहने से जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई की खातिर सरकार नया निवेश पाने के लिए अपनी उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना पर दांव लगा रही है। पात्र कंपनियों के वादों के आधार पर 13 पीएलआई योजनाएं पहले ही शुरू हो चुकी हैं। सरकार का अनुमान है कि इनसे वित्त वर्ष 2025 तक करीब 30 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश आएगा।
जेफरीज ने वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर निवेश का सालाना आधार पर विभाजन किया है। इसका कहना है कि पीएलआई योजना के पहले दो वर्षों- वित्त वर्ष 2022 और 2023 में करीब 10 अरब डॉलर का नया होगा। शुरुआती साल यानी वित्त वर्ष 2022 में निवेश केवल 2 अरब डॉलर ही रहेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि जिन बड़ी पीएलआई योजनाओं में कंपनियों का चयन किया गया है या जिनमें चयन प्रक्रिया चल रही है, वे दूसरी लहर और अन्य लहर के डर के कारण अपने पहले वित्त वर्ष (2021-22) का ज्यादातर समय गंवा चुकी हैं।
इसके अलावा उनमें से ज्यादातर में वित्त वर्ष 2022 से नया निवेश शुरू होगा। शेष निवेश वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 में होगा।
कंपनियों की घोषणा के आधार पर इस्पात क्षेत्र में बड़ी कंपनियों ने वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2024 के बीच पूंजीगत व्यय पर पिछले तीन वर्षों के मुकाबले 2.5 गुना खर्च करने और 78,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के नए निवेश की योजना बनाई है। सरकार खुद पीएलआई योजना के जरिये स्पेशियलिटी स्टील में 40,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद कर रही है। सरकार ने इस क्षेत्र की पीएलआई योजना के लिए 6,322 करोड़ रुपये रखे हैं।
पीएलआई के अलावा भी डेटा सेंटर जैसे उच्च तकनीक वाले क्षेत्र हैं, जिनमें निवेश आना है। रियल एस्टेट सलाहकार जेएलएल इंडिया का कहना है कि कंपनियां पहले ही 2023 तक क्षमता को बढ़ाकर 1 गीगावाट करने का वादा कर चुकी हैं। विशेष रूप से उन स्थितियों में, जब महामारी से डिजिटलीकरण बढ़ा है और आगे 5जी सेवाएं भी शुरू होने वाली हैं।
कंपनियां क्षमता उपयोग के आधार पर ही नए निवेश का फैसला करती हैं। कोविड-19 की दूसरी लहर से क्षमता में बढ़ोतरी बुरी तरह प्रभावित हुई थी।
लेकिन अच्छी खबर यह है कि क्षमता का उपयोग धीरे-धीरे कोविड से पहले के समय के नजदीक पहुंच रहा है। फिक्की-जेफरीज के आकलन के मुताबिक वाहन, पूंजीगत उत्पाद, सीमेंट, रसायन एवं उर्वरक, धातु एवं धातु उत्पाद और कपड़े सहित सभी उद्योगों का औसत क्षमता उपयोग महामारी से पहले दिसंबर 2019 में 73 फीसदी था। यह दिसंबर 2020 में बढ़कर 76 फीसदी हो गया, लेकिन दूसरी लहर के बाद जून 2021 तिमाही में गिरकर 72 फीसदी पर आ गया।
हालांकि वाहन, पूंजीगत उत्पाद और सीमेंट जैसे बहुत से क्षेत्रों में औसत क्षमता उपयोग दिसंबर 2019 के कोविड से पहले के स्तरों के ऊपर पहुंच चुका है।
बड़ी गिरावट टिकाऊ उपभोक्ता सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स में आई है। इनमें क्षमता उपयोग दूसरी लहर से पहले 85 फीसदी था, जो इस साल जून में घटकर 60 फीसदी पर आ गया। इस गिरावट की एक मुख्य वजह सेमीकंडक्टर चिप की किल्लत थी।