वन लैपटॉप पर चाइल्ड (ओएलपीसी) को भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था में ज्यादा पसंद नहीं किया गया है। खासतौर पर जब देश में कम कीमत पर कंप्यूटर मुहैया करा कर शिक्षा व्यवस्था में मौजूद खामियों को दूर किया जा सकता हो।
एमआईटी के प्रोफेसर और वन लैपटॉप पर चाइल्ड के सहसंस्थापक निकोलस नीग्रोपोन्ट भारतीय बाजार के लिए निजी कंपनियों के साथ साझेदारी करने की योजना बना रहे हैं। निकोलस ने कंपनी को भारत में सफलता नहीं मिलने के कारणों के बारे में बात की हमारी संवाददाता शिवानी शिंदे से। मुख्य अंश:
कंपनी 100 डॉलर के लैपटॉप को 195 डॉलर की कीमत पर बेच रही हैं। क्या इसके दामों में कमी आने की संभावना है?
लैपटॉप की कीमत में कमी तो तभी आ सकती है जब हमें सब्सिडी मिले। भारत में इन लैपटॉप को असेंबल करना मुमकिन नहीं है। प्रत्येक लैपटॉप के निर्माण और मार्केटिंग में आने वाली कुल लागत में से 1.5 डॉलर तो असेंबलिंग में ही लग जाता है।
अगर हम भारत में कंप्यूटर असेंबलिंग करना शुरू कर देंगे तो यह लागत लगभग 20 डॉलर प्रति लैपटॉप हो जाएगी। हमने निर्माण संयंत्र को इस तरह लगाया है कि निर्माण लागत कम से कम आए। अभी तक भारत की अर्थव्यवस्था हमें इस संयंत्र को यहां लगाने की अनुमति नहीं देती है। इसलिए फिलहाल कीमतें कम नहीं हो सकतीं।
आपकी इस परियोजना को बाकी देशों में काफी सफलता मिली है। आप भारत में इस परियोजना से क्या उम्मीद करते हैं?
सफलता कई रूप में आती है। जैसे एक्सओ का इस्तेमाल करने वाले एक स्कूल में इसके इस्तेमाल के दूसरे ही साल में यहां दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में लगभग 100 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारत और चीन में अधिक जनसंख्या के हिसाब से समानता है। दोनों ही देशों को लगता है कि उनका घरेलू बाजार काफी बड़ा है इसीलिए उन्हें उरुगवे, पेरु, रवांडा और मंगोलिया जैसे देशों की तरह किसी के साथ करार करने की जरूरत नहीं है। इसीलिए चीन और भारत हमारे लिए कुछ मुश्किल देश साबित हुए हैं, लेकिन मैं इसे असफलता का नाम नहीं दूंगा।
भारत में हम वितरण के लिए निजी कंपनियों के साथ करार करने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए हम रिलायंस कम्युनिकेशंस से बातचीत कर रहे हैं। यह एक नई शुरुआत है और हम इसके जरिए इस बाजार में मौजूद संभावनाओं को देखेंगे। लेकिन अभी हम सिर्फ सरकार के साथ मिलकर ही कारोबार कर रहे हैं।
भारत और चीन जैसे देशों में लोगों तक मोबाइल की पहुंच कंप्यूटर की तुलना में काफी ज्यादा है। क्या आप अभी भी लैपटॉप को भारतीय बाजार में आगे बढ़ने के जरिए के तौर पर देखते हैं?
देखिए लोगों को समझना पड़ेगा कि मोबाइल से आप पढ़ाई नहीं कर सकते और न ही गंभीर मेल नहीं पढ़ सकते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि घर जाकर मोबाइल फोन को टीवी से कन्नेक्ट कर सकते हैं। लेकिन अभी भी काफी लोगों के पास टीवी नहीं है। मोबाइल फोन को आप कनेक्टिविटी के एक माध्यम के रूप में देख सकते हैं। लेकिन आप मोबाइल को शिक्षा का साधन नहीं बना सकते हैं।
इंटेल ओएलपीसी का साथ छोड़कर बाकी परियोजनाओं से जुड़ गया है। मुक्त बाजार के परिदृश्य में समझौतों को बरकरार रखना कितना मुश्किल काम हैं?
इंटेल अब पीछे छूट चुका है। इससे बस वह बाजार को असमंजस में डाल देते हैं। क्योंकि उनका और हमारा लक्षित जनसमूह एक नहीं है। उनका लक्ष्य शहरों में बसने वाले बड़े बच्चों और उन लोगों में हैं जिनके पास लैपटॉप खरीदने की क्षमता है। जबकि हमारा लक्ष्य तो ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले वे बच्चे हैं जो लैपटॉप खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकते। ऐसे समझौतों में साथ होने के बाद भी आप अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते हैं।