कुमार मंगलम मंगलम बिड़ला ने वोडाफोन आइडिया (वी) के गैर कार्यकारी निदेशक और गैर कार्यकारी चेयरमैन का पद छोड़ दिया है। कंपनी ने बुधवार को यह जानकारी दी। वी ने कहा कि आदित्य बिड़ला समूह की ओर से नामित हिमांशु कपानिया को गैर-कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त किया गया है। ये बदलाव ऐसे समय में हो रहे हैं, जब वी को अपना वजूद बचाने के लिए कड़ी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
कंपनी ने स्टॉक एक्सचेंजों को दी सूचना में कहा, ‘वोडाफोन आइडिया के निदेशक मंडल ने आज अपनी बैठक में कुमार मंगलम बिड़ला के गैर कार्यकारी निदेशक और गैर कार्यकारी चेयरमैन पद छोडऩे के अनुरोध को चार अगस्त, 2021 को कामकाजी घंटों की समाप्ति से स्वीकार कर लिया।’ गौरतलब है कि कुमार मंगलम बिड़ला ने हाल ही में अपनी 27 फीसदी हिस्सेदारी मुफ्त में ऋणदाताओं को देने की पेशकश की थी। इस बीच बैंंकिंग सूत्र यह भी जानकारी दे रहे हैं कि केवल आदित्य बिड़ला समूह ही नहीं वोडाफोन आइडिया में 45 फीसदी हिस्सेदारी की मालिक वोडाफोन पीएलसी भी अपनी हिस्सेदारी भारतीय बैंकों/वित्तीय संस्थानों या सरकार के स्वामित्व वाली बीएसएनएल को मुफ्त में देने को तैयार है, बशर्ते कि वे इस दूरसंचार कंपनी के अधिग्रहण के लिए तैयार हों। ऋणदाताओं ने कहा कि वोडाफोन आइडिया को उबारा जाना चाहिए और अगर बीएसएनएल इस कंपनी का अधिग्रहण करती है तो बीएसएनएल-वी के विलय से बनी कंपनी द्वारा चुकाई जाने वाली सरकारी बकाया राशि महज एक खाता प्रविष्टि रह जाएगी। इस घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘हम बहुत से विकल्पों पर विचार कर रहे हैं क्योंकि दोनों प्रवर्तक ऋणदाताओं या बीएसएनएल को मुफ्त में अपनी हिस्सेदारी देने को तैयार हैं।’
आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला के अपनी 27 फीसदी हिस्सेदारी ऋणदाताओं को मुफ्त में देने की पेशकश के बाद वी के शेयर 18.5 फीसदी लुढ़क गए, जिससे कंपनी का बाजार मूल्य 17,327 करोड़ रुपये रह गया। ऋणदाताओं का वी पर 25,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जबकि कंपनी की शेष देनदारी एजीआर (समायोजित सकल राजस्व) भुगतान जैसे सरकारी बकायों की है। बैंक ऋणों समेत वी की कुल देनदारी 1.8 लाख करोड़ रुपये है।
जब आदित्य बिड़ला समूह और वोडाफोन पीएलसी के प्रवक्ताओं से संपर्क किया गया तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। पिछले साल सितंबर में एजीआर बकाये पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला कंपनी के खिलाफ आने के बाद उसका वित्तीय गणित बिगड़ गया, जिसके बाद दोनों प्रवर्तकों ने कंपनी में और पैसा नहीं लगाने का फैसला किया। दूरसंचार विभाग के शुरुआती आकलन के आधार पर वित्त वर्ष 2016-17 तक वी पर कुल एजीआर बकाया 58,250 करोड़ रुपये हो गया। वी की तरफ से एजीआर की दोबारा गणना की अपील सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले महीने खारिज कर दी।
ऋणदाताओं ने कहा कि बीएसएनल को कंपनी का अधिग्रहण करने के लिए कहने और ऋणदाताओं के अपने कर्ज को इक्विटी में बदलकर अपने ऋणों को पुनर्गठित करने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। सूत्रों ने कहा, ‘दोनों प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी मुफ्त में दे रहे हैं और बैंक ऋणों के पुनर्गठन से बीएसएनएल के लिए कंपनी का अधिग्रहण करना आसान होगा। वी के 27 करोड़ ग्राहक हैं और पूरे देश में नेटवर्क है। इसके अलावा यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बहुत से कर्मचारियों को रोजगार मुहैया करा रही है।’ कंपनी ने पिछले साल सितंबर में अतिरिक्त 25,000 करोड़ रुपये जुटाने की घोषणा की थी, लेकिन सरकार की तरफ से मदद नहीं दिए जाने के कारण निवेशक आगे नहीं आ रहे हैं।