अपने प्लेटफॉर्म से कुछ सामग्री हटाने के भारत सरकार के निर्देश के खिलाफ ट्विटर अदालत पहुंच गई है। इस सोशल मीडिया कंपनी ने इसके खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय में न्यायिक समीक्षा की याचिका डाली है। यह कदम उठाने से पहले ही कंपनी ने ट्विटर प्लेटफॉर्म से कुछ सामग्री हटाने के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के नोटिस का पालन कर लिया है।
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी कौन सी सामग्री हटाए जाने की न्यायिक समीक्षा चाहती है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्विटर ने अपने अनुरोध में कहा है कि वह उन मामलों में न्यायिक समीक्षा चाहती है, जिनमें सामग्री हटाए जाने का आदेश उसे भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की प्रक्रियागत जरूरतों के अनुरूप नहीं लगता।
ट्विटर को याचिका के संबंध में एक ईमेल भेजा गया लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ‘बेहद सशक्त माध्यम’ बताते हुए कहा कि इसके लिए भारत समेत दुनिया भर में एक पारिस्थितिकी खड़ी की जा रही है। दुनिया भर में यह सवाल काफी मौजूं हो चुका है कि इसे किस तरह जवाबदेह बनाया जाए। पहला कदम स्व-नियमन है। समाज पर नुकसानदेह असर डालने वाली किसी भी सामग्री को हटाया जाना चाहिए। फिर उद्योग नियमन और उसके बाद जाकर सरकारी नियमन का स्थान आता है।
ट्विटर अपने प्लेटफॉर्म से सामग्री हटाने में समय लगा रही थी, जिसके कारण उसके और सरकार के बीच मतभेद हो गए थे। 27 जून को इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर इंक के मुख्य अनुपालन अधिकारी को नोटिस जारी करते हुए कहा कि उसे 4 जुलाई तक विभिन्न सामग्री हटाने संबंधी नोटिस पर अमल करने का ‘अंतिम अवसर’ दिया जा रहा है। साथ ही चेतावनी भी दी गई कि नोटिस का पालन नहीं करने पर कंपनी को सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम 2000 के तहत मध्यवर्ती कंपनी के रूप में बचने का मौका नहीं मिलेगा।
मई में सरकार ने ट्विटर से कहा था कि वह खालिस्तान और कश्मीर से जुड़ी सामग्री के खिलाफ कदम उठाए। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक सरकार ने ट्विटर से कहा था कि वह पत्रकारों, राजनेताओं और किसान आंदोलन के समर्थकों के 60 खाते और ट्वीट हटाए।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने उस समय बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया था कि ट्विटर आईटी अधिनियम की धारा 69 (ए) के तहत कई नोटिस जारी होने के बाद भी ऐसी सामग्री हटाने में नाकाम रही थी। सोशल मीडिया कंपनी अनुपालन नहीं होने पर समय-समय पर भेजे गए नोटिसों पर कदम नहीं उठा सकी।
अधिनियम की धारा 69(ए) के अनुसार सरकार के पास विशेष परिस्थितियों में किसी सूचना तक जनता की पहुंच सीमित करने का निर्देश देने का अधिकार है। वह देश की संप्रभुता, अखंडता और रक्षा, देश की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मित्रवत संबंध या लोक व्यवस्था के हित में इंटरनेट से कोई भी डिजिटल सामग्री हटाने को कह सकती है। इस बीच सरकार ने यह प्रस्ताव भी रखा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के ऐसे कदमों से पीड़ित होने वालों की अपील पर सुनवाई के लिए एक शिकायत अपील समिति भी गठित की जा सकती है।
