दूरसंचार विभाग ने आज सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसने कंपनियों से 40,000 करोड़ रुपये के एकबारगी स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) की वसूली के मामले में एक न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अप्रैल 2019 में अपील दायर की थी, मगर अभी वह सोच रहा है कि अपील पर आगे बढ़ा जाए या नहीं। विभाग अदालत से सरकार को तीन सप्ताह देने का आग्रह किया ताकि सरकार सोच-समझकर फैसला ले सके कि दूरसंचार विवाद निपटारा एवं अपील न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील आगे बढ़ाई जाए या नहीं। यह सुनकर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई 19 नवंबर तक टाल दी।
दूरसंचार विभाग का यह कदम अहम है क्योंकि इससे पहली बार स्पष्ट संकेत मिला है कि सरकार दूरसंचार कंपनियों के साथ अदालतों में बड़ी तादाद में लंबित मामले निपटाना चाहती है। सूत्रों के मुताबिक केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही ऐसे 200 से अधिक मामले चल रहे हैं। दूरसंचार विभाग के वर्ष 2018 के आकलन में कहा गया था कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में 2,800 से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें दूरसंचार विभाग की वित्तीय मांग और उसे दूरसंचार कंपनियों की चुनौती, अधिसूचनाओं की व्याख्या के विवाद और निचली अदालतों के फैसलों को पलटने से संबंधित कानून तथा अपील शामिल हैं।
दूरसंचार विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामे में कहा कि उसने क्षेत्र के वित्तीय संकट को देखते हुए पुनर्विचार का फैसला लिया है। उसने कहा कि सरकार के उपायों के बावजूद ज्यादातर कंपनियों को वित्तीय घाटा हो रहा है। विभाग ने अदालत को बताया कि कैबिनेट ने सितंबर में दूरसंचार पैकेज को मंजूरी दी है ताकि कंपनियां ठीक से अपना परिचालन कर सकें और इस क्षेत्र में एकाधिकार की स्थिति आने से रोकी जाए। विभाग ने यह भी कहा कि इंडियन बैंक एसोसिएशन ने भी सरकार को लिखा है कि दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिकूल घटनाक्रम से केवल दो कंपनियों का दबदबा कायम हो सकता है, प्रतिस्पद्र्घा खत्म हो सकती है और बैंकिंग प्रणाली पर बुरा असर पड़ सकता है, जिसका इस क्षेत्र में मोटा पैसा बकाया है।
दूरसंचार विभाग में काम कर चुके अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने पहले अदालत के बाहर इन मामलों के निपटारे की कोई कोशिश नहीं की। इन मामलों से जुड़े वकीलों का कहना है कि विभाग का तरीका टकराव का था। लेकिन दूरसंचार विभाग के पूर्व अधिकारियों का कहना है कि यह मंत्रालय घोटालों में फंसा हुआ था, इसलिए इस बात का डर था कि अदालत के बाहर कोई निपटारा सीएजी या अन्य किसी सरकारी एजेंसी की जांच के घेरे में आ सकता है। सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर समीर चुघ ने कहा कि अब दूरसंचार विभाग अपने रुख में बदलाव लाते हुए मुकदमेबाजी कम करने के लिए ऐसे मामले ‘विवाद से विश्वास’ जैसी योजनाओं के जरिये निपटाने पर विचार कर रहा है। यह कदम इस बढ़ते विवादास्पद मुद्दे के समाधान हेतु बुनियादी बदलाव हो सकता है। यह मामला उस समय विकट हो गया, जब सर्वोच्च न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों को एजीआर बकाया, ब्याज एवं ब्याज पर जुर्माना चुकाने का आदेश दिया। इस फैसले से बहुत सी दूरसंचार कंपनियां घुटनों पर आ गईं।
