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बौध्दिक संपदा संचालन व्यवस्था को चाक-चौबंद करने की तैयारी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 5:26 PM IST

भारत सरकार वर्तमान बौध्दिक संपदा संचालन व्यवस्था को चाक चौबंद करने की योजना बना रही है।


इसमें दवा के क्षेत्र में काम कर रहे अंतरराष्ट्रीय कारोबारियों, खाद्य और सूचना तकनीक उद्योग द्वारा उठाए गए विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रखा जाएगा।उद्योग मंत्रालय से जुड़े विभिन्न मुद्दों से जुड़े बौध्दिक संपदा अधिकार के नोडल विभाग- औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन विभाग (डीआईपीपी) एक 300 करोड़ रुपये की लागत वाली महत्वाकांक्षी योजना की तैयारी में है।


इसमें इस मुद्दे से जुड़े सभी हिस्सेदार, कानून लागू करने वाली एजेंसियां, वैज्ञानिक, कंपनियां, विभिन्न मंत्रालय और बौध्दिक संपदा से जुड़े सामान्य लोग शामिल होंगे।उद्योग विभाग, अहमदाबाद में स्टेट-आफ-द-आर्ट ट्रेडमार्क रजिस्ट्री आफिस बनाने की भी योजना बना रहा है। साथ ही नई दिल्ली में मौजूद ट्रेडमार्क आफिस की भी आधारभूत ढांचे की क्षमता का विस्ताह किया जाएगा।


नागपुर में नेशनल इंस्टीच्यूट फार इंटेलएक्चुअल प्रापर्टी मैनेजमेंट की स्थापना की भी योजना बन रही है। यह 149 करोड़ रुपये की हाल ही में पेटेंट आफिस को पूरा किए जाने के  बाद की उच्च प्राथमिकताओं में शामिल है। यह कदम उठाए जाने का विचार उस समय आया जब बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने यह तथ्य सामने रखा कि भारत को  मौजूदा बौध्दिक संपदा संरक्षण के स्तर में सुधार करना चाहिए।


वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमारे यहां बौध्दिक संपदा से जुड़े सभी कानून मौजूद हैं। विश्व व्यापार संगठन से जुड़े समझौते के मुताबिक ही ये व्यापार से संबंधित बौध्दिक संपदा अधिकारों के विभिन्न पहलू (टीआरआईपीएस) के मुताबिक बने हैं। इन कानूनों को लागू करना ही अगला कदम होगा।’


किसी भी तरह के बाहरी दबावों से इनकार करते हुए अधिकारी ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशन ही एकमात्र नहीं हैं जो बौध्दिक संपदा अधिकार के मजबूत होने की इच्छा रखते हैं। ‘बौध्दिक संपदा कानून का मजबूत होना हमारे देश के हित में है। उदाहरण के लिए दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ फिल्म उद्योग बालीवुड भी सिनेमेटोग्राफी के लिए बौध्दिक संपदा अधिकार के प्रावधानों की शिकायत कर रहा है। इस समय इस तरह की फिल्मों और साउंड रिकार्डिंग के लिए अवधि 60 साल है।


वहीं लेखकों गीतकारों, संगीतकारों और कलात्मक कार्यों के लिए यह लेखक के जीवन पर्यंत और उसके बाद 60 साल तक के लिए है। इस तरह की समस्याओं जैसे कापीराइट एक्ट और अन्य बौध्दिक संपदा कानूनों पर हमें विचार करना है।’इस कड़ी में विभिन्न मंत्रालयों से विचार-विमर्श करने के लिए डीआईपीपी ने 13 मार्च को संबध्द मंत्रालयों और विभागों के साथ बैठक की थी, जिससे बौध्दिक संपदा के मामले में बेहतर तालमेल और समझ विकसित किया जा सके। इसका एकमात्र उद्देश्य था कि बौध्दिक संपदा कानूनों की मौजूदा स्थिति में बेहतरी लाई जा सके।


सूत्रों के मुताबिक, डीआईपीपी चाहता है कि वर्तमान में विभिन्न मंत्रालयों जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना और प्रसारण, केमिकल्स, पेट्रोकेमिकल्स और कृषि क्षेत्र के मौजूदा तमाम ज्वलंत मुद्दों और आने वाली चुनौतियों के मुताबिक बौध्दिक संपदा के नियमों को अद्यतन किया जाए।


वर्तमान मुद्दे जिन पर विचार विमर्श किया गया, उसमें आप्टिकल डिस्क लेजिस्लेशन (जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा उठाया गया), इंटरनेट पर कापीराइट (उच्च शिक्षा विभाग का लंबित मामला) और परम्परागत ज्ञान के संरक्षण जैसे मुद्दे शामिल रहे। डीआईपीपी परीक्षण के मुद्दे को बौध्दिक संपदा के लिए समस्या के रूप में नहीं देखता। डेटा प्रोटेक् शन पर भी इस बैठक में विचार किया गया।


सूत्रों ने कहा, ‘डेटा प्रोटेक्शन पर भी चर्चा हुई थी जो अक्सर बौध्दिक संपदा से जोड़कर देखा जाता है। पूर्व केमिकल सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति इस मामले को देख रही है और वह फार्मास्यूटिकल्स और एग्रोकेमिकल्स के  डेटा प्रोटेक्शन की विभिन्न धाराओं पर अपनी अनुशंसा देगी।


हम विचारों के आदान-प्रदान के साथ इन विभिन्न मुद्दों पर विचार कर रहे हैं।’ डेटा प्रोटेक्शन का मुद्दा मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल कंपनियों के लिए लंबे समय के लिए अब बहुत ही गंभीर बन गया है।

First Published : March 31, 2008 | 10:56 PM IST