उद्योग

सरसों की कम उपज की समस्या हल कर सकता है नैनो सल्फर

टेरी के वैज्ञानिकों का दावा, नैनो सल्फर से सरसों की पैदावार में 30-40% तक बढ़ोतरी संभव

Published by
संजीब मुखर्जी   
Last Updated- April 22, 2025 | 10:53 PM IST

क्या भारत की तिलहन की आत्मनिर्भरता की यात्रा में इसकी कम पैदावार की चिरकालिक समस्या को नैनो सल्फर के व्यापक इस्तेमाल से हल किया जा सकता है? इस बारे में टेरी के वैज्ञानिकों का दावा है कि यह संभव है। टेरी के वैज्ञानिकों का दावा है कि उनका विकसित नैनो सल्फर का (नियमित) उपयोग करने से सरसों की पैदावार 1,156 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से 30-40 प्रतिशत बढ़कर 1,559 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (करीब 3.7 टन प्रति हेक्टेयर) हो जाती है और इसमें तेल की मात्रा 28-30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। अभी तक आनुवांशिक रूप संशोधित सरसों डीएमएच -11 की विभिन्न परीक्षण स्थलों पर किए गए परीक्षण में प्रति हेक्टेयर औसत उपज 10 से 40 प्रतिशत बढ़ी है।

रिपोर्ट बताती है कि सरसों की मौजूदा किस्में प्रति हेक्टेयर औसतन 1-1.8 प्रतिशत उपज देती हैं। टेरी में वाणिज्यिक उत्पादन की सहायक निदेशक पुष्पलता सिंह के अनुसार, ‘हमारे शोध से जानकारी मिली है कि नैनो सल्फर का पारंपरिक (गैर आनुवांशिक रूप से संशोधित) किस्मों पर उपयोग करने की स्थिति में डीएमएच-11 की तरह पैदावार वृद्धि देती है।’

नैनो सल्फर की दक्षता को जांचने के लिए सरसों का चयन किया गया था। इसका कारण यह था कि मृदा में सल्फर उपस्थित होने पर सरसों की उच्च पैदावार हासिल करने में मदद मिलती है और फसल में तेल की मात्रा अधिक होती है। सिंह ने बताया, ‘सरसों में तेल की मात्रा को बेहतर करने के लिए सल्फर की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।’

टेरी के अध्ययन के अनुसार सरसों की फसल पर नैनो सल्फर का इस्तेमाल करने पर पौधे की ऊंचाई, शाखाएं, क्लोरोफिल की मात्रा, जैविक उपज में वृद्धि होती है। इसका इस्तेमाल 50 प्रतिशत पारंपरिक सल्फर खाद की जगह ले लेता है और इससे किसानों को 12,000 रुपये प्रति एकड़ तक की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। टेरी में नैनो रसायनों के शोध का नेतृत्व करने वाली सिंह ने बताया कि हरियाणा के गुरुग्राम में रबी सत्र 2023-24 में सरसों (ब्रैसिका जंकिया) की भारत की दो किस्मों पर जैव प्रभावकारिता पर अध्ययन करने के लिए परीक्षण किए गए थे।

First Published : April 22, 2025 | 10:49 PM IST