प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pixabay
भारतीय दवा कंपनियों का मानना है कि ट्रंप शुल्क के कारण अतिरिक्त बोझ के अधिकांश हिस्से को अमेरिकी ग्राहकों के कंधों पर डाला जा सकता है। ऐसे में उनके मार्जिन पर शुल्क का अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। उद्योग के आंतरिक सूत्रों ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में सरकार दवाओं पर आयात शुल्क शून्य करने पर जोर देगी। अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका को होने वाले भारतीय दवा निर्यात के लिए जवाबी शुल्क भी शून्य हो सकता है।
इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस ने सरकार से पहले ही अनुरोध किया है कि मौजूदा 5-10 फीसदी आयात शुल्क को शून्य करने पर विचार किया जाए क्योंकि भारत 800 अरब डॉलर की दवा आयात करता है जबकि 8.7 अरब डॉलर की दवाओं का निर्यात करता है।
इस मुद्दे पर सरकार के साथ चर्चा में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अगर भारत से दवाओं के निर्यात पर शुल्क लगाया भी जाता है तो भी हमारे उत्पाद प्रतिस्पर्धी रहेंगे। शुल्क का असर अमेरिकी ग्राहकों की ओर सरकाने की गुंजाइश हमेशा बरकरार रहेगी। कोई भी अन्य देश हमारे जैसी लागत और गुणवत्ता पर जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध नहीं करा सकता।’ उन्होंने कहा कि भारतीय दवा कंपनियों द्वारा अमेरिका को विनिर्माण केंद्र बनाने की सीमित संभावना है।
उन्होंने कहा, ‘यदि हम अभी कोई दवा 1 डॉलर प्रति खुराक की लागत पर बना रहे हैं तो इसका निर्माण अमेरिका (जहां श्रम लागत भारत की तुलना में लगभग 10 गुना है) में करने पर खर्च में भारी इजाफा हो जाएगा। उसी दवा की कीमत 4-5 गुना बढ़ जाएगी।’ एचडीएफसी सिक्योरिटीज का मानना है कि निर्माण आधार अमेरिका में स्थानांतरित करना ऊंची परिचालन लागत और लंबी प्रक्रिया की वजह से आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है, क्योंकि इसमें करोड़ों डॉलर के निवेश की जरूरत होती है और किसी संयंत्र को चालू करने के लिए नियामकीय मंजूरियों में कई वर्ष का समय लग जाता है।
ब्रोकरेज फर्मों का यह भी मानना है कि फार्मा कंपनियां टैरिफ बढ़ोतरी का बोझ भुगतानकर्ताओं पर डालने पर ध्यान देंगी। भारतीय कंपनियां पहले से ही अमेरिकी जेनेरिक क्षेत्र में कम मार्जिन पर काम कर रही हैं और विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी उपभोक्ताओं या बीमा कंपनियों पर बोझ डाले बिना ऊंची लागत की भरपाई कर पाना आसान नहीं होगा।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज (केआईई) ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि फार्मा, खासकर जेनेरिक्स में किसी तरह के ऊंचे शुल्क बरकरार रहने की संभावना नहीं है, क्योंकि इससे अमेरिकी मरीजों पर खर्च बढ़ेगा और दवाओं की कमी हो जाएगी।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज का कहना है कि फार्मास्युटिकल पर जवाबी शुल्क लगने से अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की कीमतें बढ़ जाएंगी, जिससे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में मुद्रास्फीति बढ़ेगी और भारतीय फार्मा कंपनियों द्वारा कम मार्जिन वाले उत्पादों पर जोर देने से दवाओं की किल्लत हो जाएगी।
केआईई की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि दवा वितरक और भुगतानकर्ताओं को भी शुल्कों का दबाव झेलना पड़ेगा। दूसरी तरफ, अगर फार्मा टैरिफ सभी देशों के लिए लागू होते हैं, तो भारतीय फार्मा कंपनियों को उनके लागत लाभ के कारण बढ़त मिल सकती है। कुल मिलाकर, कई परिणाम सामने आ सकते हैं, लेकिन अल्पावधि में अनिश्चितता तय है।’
इसके अलावा, अमेरिका में वितरक और खुदरा विक्रेता मार्जिन काफी है, जो मूल्य वृद्धि को भी सहन कर सकता है। भारत के एक प्रमुख निर्यातक के प्रबंधक निदेशक ने बताया कि अगर कोई दवा किसी फार्मा फर्म द्वारा 1 डॉलर प्रति खुराक पर बेची जाती है, तो मरीज को इसे लगभग 10 डॉलर में खरीदना पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘हम निश्चित रूप से अमेरिका में आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ बातचीत करेंगे जिससे कि कुछ लागत आपूर्ति वहन की जा सके और मरीज को ज्यादा भुगतान न करना पड़े।’