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भू-राजनीतिक तनाव कम होने से दाम में नरमी की आस: अरुण अलगप्पन

Coromandel International कच्चे माल की दीर्घकालिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बैकवर्ड एकीकरण पर बड़ा दांव लगा रही है।

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शाइन जेकब   
Last Updated- March 03, 2024 | 11:24 PM IST

चेन्नई के मुरुगप्पा समूह का हिस्सा और कृषि समाधान क्षेत्र की प्रमुख कंपनी कोरोमंडल इंटरनैशनल कच्चे माल की दीर्घकालिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बैकवर्ड एकीकरण पर बड़ा दांव लगा रही है। कंपनी के कार्यकारी उपाध्यक्ष और मुरुगप्पा परिवार के सदस्य अरुण अलगप्पन ने शाइन जैकब के साथ बातचीत में मौजूदा वैश्विक बाजार, विस्तार योजनाओं और जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बारे में चर्चा की। उनसे बातचीत …

क्या आपको लगता है कि प​श्चिम ए​शिया की चिंताओं और रूस पर प्रतिबंधों के कारण वै​श्विक बाजार में जिंसों के दामों में अनिश्चितता और अस्थिरता का आप पर असर पड़ रहा है?

एक समस्या लाल सागर का संकट है। जिन क्षेत्रों में हम खरीदारी कर रहे हैं उनमें से अधिकांश में ढुलाई का समय 19 दिन से बढ़कर 37 दिन हो गया है। इस बात से भी फर्क पड़ता है कि आप सामग्री कहां से ले रहे हैं। कोरोमंडल वास्तव में पूर्व और पश्चिम से काफी सामग्री ले रही है। हालांकि सामग्री की कमी कोई मसला नहीं है लेकिन लागत और जिंस की कीमतें 20 से 25 प्रतिशत बढ़ गई हैं। अगर भू-राजनीतिक तनाव कम होता है तो हम इन कीमतों में कुछ कमी देखेंगे।

पिछले वित्त वर्ष के दौरान आपका राजस्व करीब 29,000 करोड़ रुपये और लाभ 2,013 करोड़ रुपये रहा था। अलबत्ता इस साल अब तक आपके राजस्व में 25 प्रतिशत और

करोपरांत लाभ में 16 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। इसके प्रमुख कारण क्या रहे?

इसका संबंध पूरी तरह से कच्चे माल की कीमतों से है। पिछली दफा कच्चे माल के दाम सर्वकालिक शीर्ष स्तर पर थे। टर्नओवर ऐसी चीज नहीं होती है, जिससे उर्वरक कारोबार का आकलन किया जा सके। यह ऐसी चीज है, जिसे कई अन्य कारकों के जरिए नियंत्रित किया जाता है। जैसे ही कीमतें कम हुईं, सरकार एनबीएस (पोषक तत्व आधारित सब्सिडी) की दरें भी कम कर दीं। जब आप ऐसा करते हैं तो राजस्व कम हो जाएगा। भारत में विनिर्माताओं के लिए यह बहुत कठिन समय रहा है।

बैकवर्ड एकीकरण की क्या योजना है, क्योंकि इससे प्रमुख कच्चे माल की दीर्घकालिक आपूर्ति सुनिश्चित होती है?

सरकार का इरादा आत्मनिर्भर बनने का है। इसी के मद्देनजर हमने आयात के बजाय बैकवर्ड एकीकरण के बारे में सोचा। किसी समय हम भारत का तकरीबन 60 से 65 प्रतिशत सल्फ्यूरिक एसिड खरीदा करते थे। अब हमने पिछले साल विशाखापत्तनम में करीब 400 करोड़ रुपये से लेकर 450 करोड़ रुपये तक के निवेश से एक बड़ा संयंत्र बनाया है।

इससे अब हमारी जरूरत कम हो गई है। पिछले दो से तीन वर्षों में हम विस्तार पर 2,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुके हैं, खास तौर पर बैकवर्ड के तहत। वर्तमान में काकीनाडा में फॉस्फोरिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड परियोजना में लगभग 1,050 करोड़ रुपये का भारी निवेश हो सकता है। हमने खदानों में भी निवेश शुरू कर दिया है।

सरकार डीएपी (डाइ अमोनियम फॉस्फेट), एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) और ऐसे सभी उर्वरक, जिन्हें एनबीएस की मदद मिलती है, उन्हें मूल्य नियंत्रण के तहत ले आई है। आप इस कदम को किस तरह देखते हैं?

इसी बीच इसमें तेज इजाफा होने लगा है। सरकार मूल्य स्थिरता बनाए रखना चाहती थी क्योंकि यह कृषि उत्पाद है। सीमा निर्धारण से ज्यादा, मैं कहूंगा कि वे किसानों के लिए कीमतें स्थिर करना चाहते थे। अगर कृषि लागत इस तरह से चलती है तो अंतिम उत्पाद भी अस्थिर स्थिति से गुजरने लगता है। इसलिए बेहतर होगा कि उस स्तर पर इसे सीमित कर दिया जाए। सरकार ने मूल्य स्थिरता के मामले में अच्छा काम किया है।

प्रत्येक श्रेणी में आपके विकास लक्ष्य क्या हैं?

उर्वरकों में फ्रंटएंड में निवेश करने से पहले हमें अपने बैकएंड को और ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है। हम इस समय सभी श्रे​णियों में 20 प्रतिशत सीएजीआर की उम्मीद कर रहे हैं। खुदरा में हम दूसरे राज्यों में जाकर स्टोर संख्या बढ़ा रहे हैं। जैव क्षेत्र में हम उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार करने पर विचार कर रहे हैं। हमारा विशेष पोषक तत्व कारोबार लगातार बढ़ रहा है।

First Published : March 3, 2024 | 10:18 PM IST