सलाहकार फर्म मैकिंजी का एक दल 6 सितंबर 2001 को राजग सरकार के पास गया।
कंपनी के तत्कालीन वैश्विक मुख्य कार्य अधिकारी रजत गुप्ता की अगुआई वाले दल ने सरकार को बताया कि देश की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर बढ़ाकर 10 फीसदी कैसे की जाए।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गहरी सांस भरकर कहा, ‘वह तो ठीक है गुप्ता जी, लेकिन यह सब होगा कैसे?’ उस वक्त कई लोगों को वाजपेयी की बात अजीब लगी थी। लेकिन वाजपेयी सही थे। मैकिंजी और दूसरी प्रबंधन सलाहकार कंपनियां जो सबको दवा बांटती फिरती थीं, आज खुद बीमार पड़ गई हैं।
भारत में अपने गिरते कारोबार को बचाने के लिए खुद उन्हें किसी की सलाह की सख्त जरूरत है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने कंपनी रजिस्ट्रार के पास से जो आंकड़े इकट्ठा किए, उनके मुताबिक मैकिंजी 2004-05 से लगातार घाटे में रही है। उसने इस दरम्यान केवल 2006-07 में कुछ मुनाफा कमाया।
पिछले वित्त वर्ष में उसे 2.26 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जबकि उससे पिछले सालों में घाटा और भी ज्यादा था। इस बारे में पूछने पर मैकिंजी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारी वैश्विक नीति यही है कि हम अपने कामकाज पर बातचीत नहीं करते।’
दो दशक से भारत में काम करने वाली एक्सेंचर को ही लीजिए। 31 मार्च 2007 को समाप्त वित्त वर्ष में उसे कर अदायगी से पहले 18.6 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ था। उससे पिछले वित्त वर्ष में घाटा 48.8 करोड़ रुपये था। इसी तरह बेन ऐंड कंपनी को पिछले वित्त वर्ष में 15.9 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा।
हालांकि डेलॉयट और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की हालत कुछ बेहतर है। पिछले वित्त वर्ष में डेलॉयट को 15 लाख रुपये और उससे पिछले वित्त वर्ष में बोस्टन को 5 लाख रुपये का मुनाफा हुआ था। लेकिन कुछ साल पहले दोनों घाटे में ही थीं। जानकार मानते हैं कि ज्यादा कर्मचारी रखने और ज्यादा वेतन देने की वजह से कंपनियों की ये हालत हुई है।
दिग्गज सलाहकार कंपनियां घाटे में
मैकिंजी को वित्त वर्ष 08 में 2.26 करोड़ रु. का घाटा
एक्सेंचर को 2006-07 में 18.6 करोड़ रुपये का
ज्यादा कर्मचारी और ज्यादा वेतन हैं वजह
