दवा कंपनियों की बिक्री सितंबर में एक बार फिर सुधर गई, लेकिन दिलचस्प यह है कि इस बढ़ोतरी की अगुआई कीमत में हुए इजाफे ने की। महामारी के दौरान जब आम लोग अस्पताल और क्लिनिक जाने से परहेज कर रहे थे तब दवाओं की नई पर्ची की रफ्तार सुस्त हो गई थी, ऐसे में देसी बाजार में मात्रात्मक बिक्री की रफ्तार भी घट गई। हालांकि आंकड़ों पर गहराई से नजर डालने से पता चलता है कि मात्रात्मक बिक्री की रफ्तार भी धीमी पड़ रही है और यह सितंबर में सालाना आधार पर 4 फीसदी घटी जबकि अगस्त में इसमें 9.2 फीसदी की गिरावट आई थी।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने कहा कि सितंबर तिमाही में मात्रात्मक बिक्री की रफ्तार सालाना आधार पर 6.5 फीसदी घटी जबकि कीमत में बढ़ोतरी की रफ्तार 4.6 फीसदी रही। एडलवाइस सिक्योरिटीज के विश्लेषक कुणाल रेनडेरिया ने भी हालिया नोट में कहा है कि तिमाही का मार्जिन कीमत में बढ़ोतरी से आगे जाएगा। उन्होंने कहा, मात्रात्मक बिक्री की रफ्तार को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में कीमत में एक अंक की बढ़त से मार्जिन में इजाफा होने की उम्मीद है।
आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची से बाहर की दवाओं पर कंपनियों को सालाना 10 फीसदी तक कीमत बढ़ोतरी की अनुमति है। आवश्यक दवाओं की कीमत बढ़ोतरी थोक मूल्य सूचकांक से तय होती है।
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ काम कर चुके उद्योग के दिग्गज ने कहा, हालांकि ज्यादातर फर्में कीमत में 10 फीसदी सालाना बढ़ोतरी का भार ग्राहकों पर नहीं डाल पाते क्योंंकि प्रतिस्पर्धा से कीमतें नियंत्रण में रहती है। जब तक कि किसी कंपनी का अहम ब्रांड या बाजार में जमा जमाया ब्रांड नहीं होता, कोई भी सामान्य तौर पर बढ़ोतरी का भार ग्राहकों पर नहीं डालता।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने भी कहा कि गैर-आवश्यक दवाओं की कीमत बढ़ोतरी सालाना आधार प र 4.8 फीसदी रही, वहीं आवश्यक दवाओं की कीमतों में 3.6 फीसदी का इजाफा हुआ। ग्लेनमार्क, अजंता फार्मा और सिप्ला जैसी कंपनियों ने उच्च बढ़ोतरी दर्ज की।
ग्लेनमार्क अपनी एंटी-वायरल दवा फेविपिराविर की मांग पर सवार है। ऐसे में ग्लेनमार्क ने उद्योग की एक और प्रवृत्ति को पलट दिया और इस तरह से फेविपिराविर के दम पर क्रॉनिक दवाओं के बजाय एक्यूट थेरेपी की रफ्तार ज्यादा तेज रही।
अन्य कंपनियों की एक्यूट थेरेपी की बिक्री क्रॉनिक दवाओं से कमजोर रही है। क्रॉनिक दवाओं मसलन दिल व मधुमेह के इलाज की दवाएं आदि देसी बाजार की रफ्तार में योगदान कर रही है क्योंंकि दवाओं की नई पर्ची करीब-करीब बंद है। देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी सन फार्मा ने सितंबर की बिक्री में 1.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की।