आईएलऐंडएफएस फाइनैंशियल सर्विसेज (IL&FS Financial Services- IL&FS Financial) के पूर्व ऑडिटरों बीएसआर ऐंड एसोसिएट्स (BSR & Associates) और डेलॉयट हस्किन्स ऐंड सेल्स (Deloitte Haskins and Sells) को अदालत के फैसले से झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (NCLT) और मुंबई की विशेष अदालत के समक्ष इन दोनों फर्मों के खिलाफ चल रही कार्यवाही रद्द करने का बंबई उच्च न्यायालय का आदेश आज खारिज कर दिया।
इस आदेश के साथ ही शीर्ष न्यायालय ने कंपनी कानून, 2013 की धारा 140 (5) की वैधानिक वैधता को भी बरकरार रखा है। कानून की धारा ऑडिटरों को हटाने और इस्तीफे से संबंधित है तथा धोखाधड़ी या फर्जीवाड़े के लिए उकसाने या सांठगांठ के मामले में इसके तहत ऑडिटरों पर 5 साल का प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय के अभियोजन को खारिज करने वाले बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द किया जाता है। धारा 140 (5) न तो पक्षपातपूर्ण है और न ही मनमानी है तथा/या यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(जी) का उल्लंघन भी नहीं करती।’
गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) कंपनी मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाला बहु-आयामी संगठन है, जो सफेदपोश अपराधों/धोखाधड़ी का पता लगाने और मुकादमा चलाने या अभियोजन की सिफारिश करता है।
मंत्रालय ने दोनों फर्मों को IL&FS के ऑडिटर की जिम्मेदारी से हटाने की मांग की थी और दिवालिया हो चुके IL&FS ग्रुप में वित्तीय अनियमितता में उनकी भूमिका के लिए उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू की थी।
हालांकि इन फर्मों का तर्क था कि मंत्रालय द्वारा हटाए जाने की मांग से काफी पहले ही उन्होंने IL&FS के ऑडिटर का जिम्मा छोड़ दिया था। उन्होंने कंपनी कानून की धारा 140(5) की वैधानिकता को भी चुनौती दी थी।
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शीर्ष अदालत ने कहा कि ऑडिटरों को इन सब से स्वतंत्र रहना चाहिए। अदालत ने कहा, ‘जब कंपनी कानून 2009 लागू किया गया था जो इसमें ऑडिटरों के लिए सख्त जिम्मेदारी तय की गई थी। इसमें ऑडिट और ऑडिटरों के लिए कड़े प्रावधान के सुझाव थे।’
अदालत ने उल्लेख किया कि बंबई उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण गलत था। धारा 140(5) के तहत कार्यवाही शुरू होने के बाद ऑडिटर के इस्तीफे का मतलब यह नहीं है कि ऑडिटर के खिलाफ कार्यवाही समाप्त हो जाएगी।
अदालत ने कहा कि धारा 140(5) के पहले भाग के तहत शुरू की गई पूछताछ/कार्यवाही को तार्किक अंजाम तक पहुंचना चाहिए। अगर उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा जाता है तो जब भी उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की जाएगी तब ऑडिटर इस्तीफा दे देंगे।
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न्यायाधिकरण द्वारा उनके इस्तीफे के बावजूद अंतिम आदेश पारित किया जाना चाहिए ताकि यह पता लग सके कि उन्होंने धोखाधड़ी या सांठगांठ तो नहीं की थी। अदालत ने यह भी कहा कि ऑडिटरों को एनसीएलटी के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए थे।